कुशीनगर पुलिस ने 31 साल बाद मनाया श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव, SP ने तोड़ी ब्लैक डे की परंपरा

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उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में 31 साल बाद पुलिस विभाग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया गया. 1994 में जन्माष्टमी की रात एक भयावह मुठभेड़ में छह पुलिसकर्मियों और एक नाविक की शहादत के बाद से यह त्योहार पुलिस थानों में नहीं मनाया जाता था. इस घटना को कुशीनगर पुलिस “ब्लैक डे” के रूप में याद करती थी.

इस साल पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार मिश्रा ने इस परंपरा को तोड़ते हुए सभी थानों और पुलिस लाइन में जन्माष्टमी उत्सव मनाने का ऐतिहासिक फैसला लिया है.

क्या है 1994की त्रासदी ? पचरुखिया मुठभेड़

29 अगस्त 1994 को कुशीनगर (तत्कालीन पडरौना) में नवगठित जिले के पहले जन्माष्टमी उत्सव की तैयारियां चल रही थीं. इसी दौरान पडरौना कोतवाली पुलिस को सूचना मिली कि जंगल पार्टी के कुख्यात डकैत बेचू मास्टर और रामप्यारे कुशवाहा उर्फ सिपाही पचरुखिया गांव के ग्राम प्रधान राधाकृष्ण गुप्त के घर डकैती और उनकी हत्या की योजना बना रहे हैं. उस समय बिहार और यूपी में जंगल पार्टी आतंक का पर्याय थी.

इस सूचना के आधार पर तत्कालीन कोतवाल योगेंद्र प्रताप सिंह ने एसपी बुद्धचंद को सूचित किया. एसपी के निर्देश पर दो टीमें गठित की गईं. पहली टीम का नेतृत्व सीओ पडरौना आरपी सिंह ने किया, जिसमें सीओ हाटा गंगानाथ त्रिपाठी, दारोगा योगेंद्र सिंह, और आरक्षी मनिराम चौधरी, राम अचल चौधरी, सुरेंद्र कुशवाहा, विनोद सिंह, और ब्रह्मदेव पांडेय शामिल थे.

दूसरी टीम का नेतृत्व तरयासुजान के थानाध्यक्ष अनिल पांडेय ने किया, जिसमें एसओ कुबेरस्थान राजेंद्र यादव, दारोगा अंगद राय, और आरक्षी लालजी यादव, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्त, श्यामा शंकर राय, अनिल सिंह, और नागेंद्र पांडेय शामिल थे.

बांसी नदी पर मुठभेड़ और शहादत

रात साढ़े नौ बजे दूसरी टीम बांसी नदी के किनारे पहुंची. सूचना मिली कि डकैत पचरुखिया गांव में नदी के दूसरी ओर छिपे हैं. स्थानीय नाविक भुखल की मदद से पुलिसकर्मी डेंगी से नदी पार करने लगे. पहली खेप में सीओ और कुछ पुलिसकर्मी वापस आ गए, लेकिन दूसरी टीम के नाव पर सवार होते ही डकैतों ने बम विस्फोट और ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. गोली लगने से नाविक भुखल और सिपाही विश्वनाथ यादव घायल हो गए, जिससे नाव अनियंत्रित होकर डूब गई. इस हमले में एसओ अनिल पांडेय, एसओ राजेंद्र यादव, आरक्षी नागेंद्र पांडेय, खेदन सिंह, विश्वनाथ यादव, परशुराम गुप्त, और नाविक भुखल शहीद हो गए. दारोगा अंगद राय, लालजी यादव, श्यामा शंकर राय, और अनिल सिंह सुरक्षित बच निकले.

इस घटना ने पूरे जिले को शोक में डुबो दिया. पुलिस के हथियार और कारतूस तो बरामद हुए, लेकिन अनिल पांडेय की पिस्तौल आज तक नहीं मिली. इसके बाद कुशीनगर पुलिस ने जन्माष्टमी को ब्लैक डे के रूप में मानना शुरू कर दिया और थानों में यह त्योहार मनाना बंद कर दिया.

31साल बाद परंपरा की वापसी

एसपी संतोष कुमार मिश्रा ने इस साल ब्लैक डे की परंपरा को समाप्त करने का फैसला लिया. उन्होंने कहा कि भगवान का जन्मोत्सव मनाने में कोई अपशकुन नहीं है. हमारे छह वीर जवानों ने ड्यूटी के दौरान बलिदान दिया, लेकिन अब समय है कि हम इस दुख को सकारात्मक ऊर्जा में बदलें. उनके निर्देश पर पुलिस लाइन और सभी थानों में जन्माष्टमी उत्सव की तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गईं. पडरौना कोतवाली सहित सभी थानों में स्थानीय लोगों को निमंत्रण दिए गए हैं, और उत्सव को भव्य रूप से मनाया गया.