जानिए किसानों के विरोध पर क्या है सरकार की सलाह और राय

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 (www.arya-tv.com) किसान आंदोलन के पूरे प्रकरण की असलियत को जानने के लिये गत साढ़े छह वर्षों के दौरान सरकार के क्रियाकलापों की निष्पक्ष समीक्षा करें तो पाते हैं कि इस परिस्थिति के जिम्मेदार वह स्वयं हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने किसानों को फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत को डेढ़ गुना करने वाली स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू करने का वादा किया। एक वर्ष से अधिक बीतने तक वचन पूरा नहीं किया। 2015 में कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसके उत्तर में केंद्र सरकार ने एक शपथपत्र दाखिल कर कहा कि सरकार के पास उपलब्ध वित्तीय संसाधनों में इसे क्रियान्वित करना संभव ही नहीं है। 2016 में सरकार ने कहा कि 2022 तक किसानों की आय दोगुना कर दी जायेगी। परंतु कैसे, इसका विवरण आज तक नहीं दिया।

2019 के लोकसभा चुनाव को निकट आता देख 2018 की दूसरी छमाही में रबी की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करते समय दावा किया कि हमने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश को लागू कर दिया। शीघ्र ही इस दावे की भी कलई खुल गयी जब यह पता चला कि लागत के सी-2 स्तर पर नहीं बल्कि उसके निचले स्तर ए-2+पारिवारिक मजदूरी के ऊपर 50 फीसद जोड़ा गया है। इन सब घटनाओं से किसान के मन में सरकार की नीयत के प्रति शंकाएं और अविश्वास उपजना स्वाभाविक था।