वाराणसी (www.arya-tv.com) काशी शिव और शक्ति दोनों की नगरी है। शक्ति स्वरूप में यहां खुद अन्नपूर्णेश्वरी विराजमान हैं। बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ के आंगन में उनका स्थान है। इसमें काशीपुराधिपति अन्नपूर्णेश्वरी के सामने याचक रूप में नजर आते हैं। माता के दरबार में दर्शन-पूजन के विधान तो वर्षपर्यंत होते हैं, लेकिन धनतेरस से लेकर अन्नकूट तक साल के चार दिन प्रथम तल स्थित स्वर्ण अन्नपूर्णा दरबार के पट खुलते हैं और श्रद्धालु अन्न-धन का प्रसाद पाकर विभोर हो जाते हैं।
शास्त्रीय मान्यता है कि मार्गशीर्ष (अगहन) शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर ही मां पार्वती अन्नपूर्णा स्वरूप में प्रकट हुईं। इस मान्यता के तहत अगहन पूर्णिमा पर अन्नपूर्णा जयंती के विधान पूरे किए जाते हैं। इस बार यह तिथि 30 दिसंबर को पड़ रही है। माना जाता है कि तिथि विशेष पर आराधना से अन्नपूर्णेश्वरी प्रसन्न होती हैं और वर्षपर्यंत अन्न-धन की कमी नहीं रहती है। काशी में अन्नपूर्णा और सेवाधर्मिता की शास्त्रीय कथाएं कोरोना काल में भी साफ नजर आईं जब संकट के बाद भी हर एक की रसोई अन्न से आबाद रही। श्रीकाशी विश्नवनाथ मंदिर स्थित अन्नपूर्णेश्वरी दरबार में अन्नपूर्णा जयंती पर भोर में भगवती को पंचामृत स्नान कराया जाएगा। नूतन वस्त्राभूषण धारण कराकर पूजा-आरती की जाएगी। मध्याह्न भोग आरती से पहले मां की पंचपुष्प शृंगार झांकी सजाई जाएगी। उन्हें कच्चे अन्न का भोग भी अर्पित किया जाएगा। महंत रामेश्वरपुरी संत समाज को अंगवस्त्रम और दक्षिण प्रदान कर विदाई देंगे।
न्नपूर्णा जयंती के दिन काशी में अन्न की देवी मां अन्नपूर्णा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। घरों में रसोई को साफ कर गंगाजल से शुद्धि की जाती है। नए अन्न का पकवान (गुड़ और चावल की खीर ) बनाकर भगवती को अर्पित किया जाता है। बीएचयू ज्योतिष विभागाध्यक्ष प्रो. विनय कुमार पांडेय के अनुसार शास्त्रीय मान्यता है कि सतयुग में प्राण हड्डियों में, त्रेता युग में रुधिर तो द्वापर में शरीर के मांस में बसता रहा है, लेकिन कलियुग में प्राण अन्न में बसते हैं। अत: अन्न का विशेष महत्व है। भारत में प्राचीन काल से ही समय-समय पर प्रकृति को आभार व्यक्त करने के लिए व्रत रखा जाता है। उसी में से एक वर्तमान में प्रचलित अन्नपूर्णा जयंती है। जो सर्वदा अदृश्य रहकर चराचर जीवों को नित्य प्रति आहार प्रदान कर रहीं हैं, वही माता अन्नपूर्णेश्वरी देवी हैं। अति प्राचीन काल से किसान नवान्न का पूजन करता है। कृषक के यहां अन्न जब घर में आ जाता है तब उसके द्वारा अन्न भंडार (अन्नपूर्णा) का पूजन किया जाता है। कृषकों की इसी सफलता को सनातन धर्म में अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मान्यता है।