कट्टरता समाज में आपसी भाईचारे को खत्म कर रही है!

Lucknow
Suyash Mishra
Suyash Mishra

क्या आज मानवता से बढ़कर कोई धर्म हो गया है? आखिर कौन सा धर्म मानवता का कत्ल करने की इजाजत देता है। अगर धरती पर ऐसा कोई भी धर्म है तो ऐसे हजार ईश निंदा के आरोप झेलकर मैं खुद उस धर्म का विरोध करना चाहूंगा। फिर इसके लिए चाहे मुझपर हजार रासुका ही क्यों न लग जाएं। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आपस में सब भाई भाई ये नारा देने वाले देश के लोगों में इतनी नफरत। जो लोग असहिष्णुता की हमेशा दुहाई देते रहे वह आज असहिष्णुता की पराकाष्टा पर मौन हो गए। आखिर क्यों? एक हिंदू की मौत पर मौन सहमति।

कहते हैं अल्लाह के घर देर है अंधेर नहीं है। अगर यह सच है तो वो सब गुनाह की राह पर हैं जो आज चुप हैं। कमलेश तिवारी के कातिलों को न तो भारतीय न्याय व्यवस्था पर यकीन है और न ही भारतीय दंड संहिता पर। ये सभी तालिबानी कट्टरता को मानते हैं और इनकी जगह भारत नहीं है। ये वो लोग हैं जो मानवता के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। हम यह बिल्कुल नहीं कहते कि इसे हिंदू मुस्लिम के चश्में से देखा जाए, लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि यह कट्टरता न सिर्फ समुदाय विशेष के लिए बल्कि पूरी मानवता के लिए खतरा है और इसका मिलकर विरोध करना चाहिए। फिर यह चाहे किसी भी समुदाय में क्यों न हो।

कमलेश तिवारी को मुस्लिम संगठनों द्वारा साल 2015 में फांसी देने की मांग हुई थी। यहां तक तो ठीक था, लेकिन उसी दौरान एक मौलाना द्वारा कैमरे पर कमलेश तिवारी का सर काटने का ऐलान किया गया, लेकिन इस पर सभी मौन थे, जितना बड़ा गुनाह उस वक्त कमलेश तिवारी का था उतना ही उन मौलाना का भी। बावजूद इसके कमलेश तिवारी पर रासुका के तहत कार्रवाई हुई उन्हें जेल भेजा गया और उस मौलाना पर कोई ऐसी कार्रवाई नहीं हुई क्यों? अगर उस वक्त तिवारी के बयान पर विरोध जताने के साथ साथ मौलाना के बयान पर खुद मुस्लिम समुदाय आपत्ति जताता तो शायद ​आज स्थिति और होती पर इतना साहस जुटाने की हिम्मत कौन करता। वह अलग बात है कि कमलेश तिवारी के बयान को जस्टिफाई नहीं किया जा सकता, लेकिन गला काटने वाले को ईनाम देने वालों का बयान भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

ये पहली बार नहीं है और शायद आखिरी बार भी नहीं है। समाज में ऐसे हेट क्राइम अब आम हो चले हैं कभी जाति के नाम पर कभी मजहब के नाम पर कभी धर्म के नाम पर। क्या कमलेश तिवारी ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ऐसे बयान दिए। हालही में दिल्ली में गाड़ी खड़ी करने के विवाद में एक समुदाय विशेष के लोगों द्वारा मंदिर में घुसकर मूर्तियों को तोड़ दिया गया। मंदिर की मूर्तियों पर पेशाब तक कर दी गई क्या यह अपराध छम्य था। लेकिन इसकी सजा मौत तो नहीं। हिंदू देवी देवताओं की नग्न तस्वीर बनाकर कोई भी देश में रहा जा सकता है, लेकिन धर्म विशेष पर टिप्पणी करने की सजा मौत क्यों? क्या इसे कट्टरता की पराकाष्ठा, असहिष्णुता या फिर हेट क्राइम नहीं कहेंगे। या यह सिर्फ एक आम अपराध है जो अक्सर होता रहता है।

आज हम फिर योगी सरकार को कोस रहे हैं, पर क्या सिर्फ सरकार या पुलिस इसमें दोषी है या फिर कट्टर विचारधारा। जबसे कमलेश तिवारी की हत्या हुई तबसे सोशल मीडिया पर कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए जा रहे हैं, योगी सरकार से जवाब मांगे जा रहे हैं पर क्या इसके लिए सिर्फ सरकार या पुलिस दोषी है या फिर कट्टर विचारधारा। कुछ लोग कह रहे हैं कि कमलेश ने मोहम्मद साहब पर टिप्पणी क्यों की? पर वह तब मौन रहते हैं जब भारत माता को डायन कहने वाले अट्टहास करते हैं, वह तब चुप रहते हैं जब भारत तेरे टुकड़े होंगे इंंसा अल्लाह इंसा अल्लाह कहने वाले राजनीतिक सपना लेकर उनके दरवाजों पर जाते हैं। बिगड़ते समाज की यही तस्वीर है। हमने आज मानवता को दरकिनार करके धर्म, जाति में खुद को कैद कर लिया है।
—सुयश मिश्रा
7007096037