(www.arya-tv.com) आखिरकार हरियाणा सरकार ने गठबंधन में शामिल जननायक जनता पार्टी की बहुप्रतीक्षित मांग पर निजी क्षेत्र की नौकरियों में हरियाणा के युवाओं को कोटा देने की राह प्रशस्त कर दी है। राज्य के युवाओं को प्राइवेट क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण का वादा करने वाला ‘स्थानीय उम्मीदवारों के हरियाणा राज्य रोजगार विधेयक-2020 को बृहस्पतिवार को विधानसभा में मंजूरी दे दी गई।
यद्यपि इसमें हर जिले से दस फीसदी उम्मीदवारों को भर्ती का विकल्प देने की बात कही गई है। साथ ही सेवा प्रदाता कंपनी को इस बात की छूट भी होगी कि यदि विशेष श्रेणी के उद्योग के लिये उपयुक्त स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं है तो इस बात के लिये कंपनी श्रम विभाग को सूचित कर सकती है। उम्मीदवारों के पास राज्य में रहने का प्रमाणपत्र होना भी जरूरी है।
ये सुविधा केवल पचास हजार से कम वेतन वाली नौकरियों के लिये ही उपलब्ध होगी, शेष पच्चीस फीसदी पदों के लिये अन्य राज्यों के प्रत्याशी आवेदन कर सकते हैं। निस्संदेह यह जजपा का राजनीतिक एजेंडा था और चुनाव के दौरान हरियाणा के लाखों युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था, जिसके लिये पार्टी अपनी पीठ ठोक भी रही है। मगर इस प्रावधान से कई किंतु-परंतु भी जुड़े हैं। जानकार बता रहे हैं कि हरियाणा के स्थानीय उम्मीदवारों को नौकरियों में वरीयता प्रदान करने की व्यवस्था से संविधान के कई प्रावधानों का उल्लंघन भी हो सकता है, जो कानून के समक्ष समानता से जुड़ा है।
साथ ही किसी भी पेशे से जुडऩे व व्यवसाय करने के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने वाले प्रावधान का भी सवाल है, जिसके लिये राज्य सरकार को इस विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना होगा। बहरहाल, स्थानीय उम्मीदवारों के हरियाणा राज्य रोजगार विधेयक ने राज्य के बेरोजगार युवाओं में नई उम्मीद तो जगायी है। खासकर कोरोना काल में बेरोजगारी की दर में आई अप्रत्याशित तेजी के दौर में।
दरअसल, प्रस्तावित कानून का मकसद राज्य में स्थित निजी कंपनियों, न्यासों तथा फर्मों में 75 फीसदी रोजगार देने का प्रावधान है। उल्लंघन करने पर आर्थिक जुर्माना और सब्सिडी खत्म करने की व्यवस्था भी है। साथ ही विशेष किस्म के रोजगारों के लिये प्रशिक्षित करने की भी व्यवस्था की गई है। यह प्रस्तावित कानून उन कंपनियों व रोजगार प्रदाता संस्था पर लागू होगा जहां दस से अधिक कर्मचारी हैं।
लेकिन यह नियम पहले से कार्यरत कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा बल्कि अधिसूचना जारी होने की तिथि के बाद की जानी वाली भर्तियों पर ही लागू होगा। साथ ही कानून के क्रियान्वयन की जवाबदेही श्रम विभाग को दी गई है। इसके अलावा कंपनियों तथा आउट सोर्सिंग कंपनी को उसके यहां कार्यरत लोगों की विस्तृत जानकारी सरकार के पोर्टल पर अनिवार्य रूप से पंजीकृत करवानी होगी। ऐसे ही निर्धारित मानकों पर खरा नहीं उतरने वाले उम्मीदवारों की जानकारी श्रम विभाग को देनी होगी।
इसके उपरांत श्रम विभाग आवदेकों को प्रशिक्षण देने अथवा अन्य राज्यों के युवाओं को रोजगार देने की अनुमति प्रदान करेगा। सरकार की सोच है कि सख्त कानून से राज्य के युवाओं के रोजगार के अवसरों में विस्तार होगा। इसके साथ ही नौकरी प्रदान करने वाली संस्था को प्रत्येक तिमाही में कर्मचारियों की नफरी संबंधित पोर्टल पर दर्ज करवानी होगी। निस्संदेह, हरियाणा के युवाओं को रोजगार पाने का हक है, लेकिन चिंता इस बात की भी है कि कहीं अन्य राज्यों में इसी तरह की होड़ न लग जाये।
यदि सभी राज्यों में राजनीतिक दल अपने एजेंडे को पूरा करने की प्रतिस्पर्धा में शामिल होंगे तो देश के संघीय ढांचे से जुड़े प्रश्न सामने आयेंगे। निस्संदेह रोजगार पाना किसी भी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है, जिसे राज्य की सीमाओं में बांधने से कई तरह की विसंगतियां पैदा हो सकती हैं। निजी क्षेत्र के उद्यमी रोजगार के क्षेत्र में अपनी जरूरतों और प्रतिस्पर्धा में योग्य प्रत्याशियों की तलाश के लिये अन्य विकल्पों का चयन कर सकते हैं। निस्संदेह, स्पर्धा और स्वतंत्र प्रतियोगिता प्रतिभाओं के लिये नये अवसर सृजित करती है। इसके अलावा सरकार को पहले रिक्त पड़े सरकारी पदों को भरने को प्राथमिकता देनी चाहिए।