संघर्षों की आंच में तप कर ही कोई सोना बनता है -उमाकांत

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(www.arya-tv.com) संघर्षों के बिना किसी कलाकार को पहचान नहीं मिलती। और सिर्फ कलाकार को ही नहीं सफलता का मूल मंत्र ही संघर्ष है ये दुनिया किसी को यूँ ही नहीं पहचानती,अपनी पहचान स्वयं बनानी पड़ती है ऐसे ही एक कलाकार जिन्हे पूर्व मुख्यमंत्री मायावती  जी ने एक बार नहीं ५ बार पुरस्कृत किया और जिनके लिखे और कम्पोज़ किये गीतों से लखनऊ महोत्सव की शुरुवात हुई। उन उमा कांत त्रिपाठी से बात चीत के कुछ सम्पादित अंश आर्य टीवी के पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं जिनसे एक कलाकार के जीवन का संघर्ष स्पष्ट झलकता है ।

आज बात एक पुराने कलाकार उमा कांत की करते हैं। उनकी ज़िन्दगी के कुछ राज़ आपके साथ शेयर करते हैं,उम्मीद है अच्छा लगेगा ।
बात 1980 से शुरू करते हैं,उसने हाई स्कूल किसी तरह पास किया और कुछ परिस्थितियों के कारण उमा कांत को  अपने नाना के यहाँ रहना पड़ा, उम्र18 की दिमाग में उलझन कोई रास्ता नहीं दिखाई सूझ रहा था।घर वालों की नजरों में एक नाकारा फालतू बन कर दिनरात इधर उधर भटकते हुए एक दिन किसी जन्मदिन के अवसर पर अनमने मन से एक संगीत कार्यक्रम देखने के संयोग ने उसके जीवन को एक दिशा दिखाई ।अब मन में एक नन्हे कलाकार ने करवट बदली।अगले ही दिन बांसुरी बजाने वाले कलाकार के घर जाकर कुछ सीखने की इच्छा व्यक्त की लेकिन उन्होंने कहा 50 रुपये लाओ तब ही कुछ सिखाएंगे ,लाचार होकर हाथ जोड़कर कहा की अपना शिष्य बना लो लेकिन पैसा हमारे पास नहीं है लेकिन कठोर हृदय नहीं पसीजा ।उमा का पढ़ने में मन नहीं लगता था लेकिन संगीत सीखने के लिए पैसा चाहिये वो तो था नहीं, फिर किस्मत रंग लाई और उनके मामा जी के मित्र बाबू मस्तराम श्रीवास्तव जी के स्नेह से गाना बजाना शुरू हो गया

हरदोई के कलाकारों का ग्रुप भारतीय कला मन्दिर बन गया । दिन रात गाना बजाना शुरू।कड़ी मेहनत और कुछ सीखने के जुनून ने एक आशा की किरण दिखाई ,लोगों बीच मे सुगबुगाहट होने लगी गायकी में रंग आने लगा। पहला कार्यक्रम घर के पास  ही सम्पन्न हुआ 50रुपये पेमेंट मिला खुशी का ठिकाना ही नहीं औरअब कार्यक्रमों का सिलसिला शुरू हो गया था और दायरा भी हरदोई से बाहर बढ़ने लगा। चार पैसे मिलने से घर वालों को लगा चलो अब सही राह पर आ गया फिर किसी के सुझाव से लखनऊ पहुँचे ,आल इण्डिया रेडियो में फॉर्म भरने के साथ हीलोकसंगीत के एक जाने माने कलाकार साथ ही आकाशवाणी में कार्यरत श्री बलदेव प्रसाद से  से मुलाकात ने जैसे नवोदित कलाकार के जीवन को नई रफ्तार दी बहुत कुछ सीखने का अवसर मिलाऔर खूब मन लगाकर सीखा उसके मृदुल स्वभाव ने सबको आकर्षित किया ,अब उसके द्वारा गए गीत रेडियो औऱ दूरदर्शन पर लोगों का मनोरंजन करने लगे।
कार्यक्रमों की भागदौड़ संगीत का रियाज औरबड़े बड़े शौकीन लोगों के यहाँ म्यूजिक सिटिंग का सिलसिला रोजाना देर रात घर वापसी ननिहाल में सबके कष्ट का कारण था लेकिन उसके उत्साहको कमजोर नहीं करना चाहते थे।

एक दिन उन्होंने कहा हरदोई में रह कर कुँए के मेंढक बनने से अच्छा है लखनऊ जा कर संगीत की विधिवत शिक्षा ग्रहण
करो। मन को धक्का लगा कई दिन सोचविचार हुआ आखिर एक दिन मन वहाँ की झूठी वाहवाही से बहुत उचटने लगा ।उमा कांत ने लखनऊ आकर बीoएo में प्रवेश के साथ ही भातखण्डे संगीत महाविद्यालय में प्रवेश लिया और विशारद करते हुए कार्यक्रमों पर भी ध्यान था। अब इन्फॉर्मेशन विभाग और गीत एवं नाटक प्रभाग के प्रायोजित कार्यक्रमों में बहुत व्यस्त रहने लगे।
लेकिन ऊपर वाले ने कुछ और सोच लिया था और 6 सितम्बर1996 को  बीमारी से लड़ते हुए पत्नी  परलोक सिधार गयीं। आँखों में अंधेरा छा गया, छोटे छोटे बच्चे बृद्ध माता पिता क्या किया जाए, कार्यक्रमों पर रोक लग गयी सदा हंसी ठिठोली करने वाला व्यक्ति गुमसुम रहने लगा।कुछ दिन बाद अचानक एक सहपाठी ने एक स्कूल में संगीत शिक्षक की नौकरी करने का आग्रह किया,बहुत विचार के बाद एक स्वच्छंद कलाकार अब संगीत शिक्षक बन गया

तीन साल शाखा पर बच्चों को संगीत सिखाया और अब उन्हें हेड ऑफिस भेज दिया गया शायद कुछ नई जिम्मेदारी निभाने के लिए।अब तो वहां पर गीत ,नाटक,प्रहसन सब कुछ शाखाओं के बच्चों के लिए लिखने लगे नयी नयी धुने बना के कार्यक्रम सम्पादित करने लगे। अनेकों कविताओं का लेखन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 2008 से2013 तक पूर्व मुख्यमंत्रीमायावती  द्वारा पांच बार नक़द पुरस्कार मिला 2004से2014 तक लखनऊ महोत्सव में प्रथम दिवस पर ही तैयार की गई स्क्रिप्ट पर स्कूलके बच्चों द्वारा कार्यक्रमों को संपादित करने का अवसरऔर A I R द्वारा आयोजित मोदी जी के स्वच्छता मिशन के लिये गीत की रचना के लिये UP में प्रथम India में द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ

FM Radio के लिये अनेकों promo ,play ,स्लोगन ,गीतों की रिकॉर्डिंग songs coposing का अवसर भी मिला
2001 से 2022 में  रिटायर होने तक उमाकांत अब प्रति रविवार को विश्व एकता सत्संग में विविध गीत,लोकगीत और भजनों की प्रस्तुति
करते हैं उम्र के इस पड़ाव पर भी संगीत साधना में निरत रहते हैं वह चुनाव के गीतों का लेखन हो या धुन कंपोज़ करना उमाकांन्त की संगीत यात्रा जारी है  अब सेवानिवृत्त होकर भी गीत लेखन ,भजन लेखन,नाटक आदि प्राइवेट स्टूडियो में
रिकॉर्डिंग आदि में व्यस्त रहना ही मुख्य दिनचर्या है।