(www.arya-tv.com)‘अगर हमारे लड़के मिलिटेंट थे, तो उनकी मौत का हमें कोई गम नहीं। हमें उनकी बॉडी भी नहींचाहिए। लेकिन, अगर वो मिलिटेंट नहीं थे तो हमें उनकी बॉडी भी चाहिए और जिम्मेदारों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई भी। हमें भी तो पता चले कि महज एक रात में कोई कैसे मिलिटेंट बन सकता है?’ यह दर्द शिफत जान का है। वो मोहम्मद अबरार की मां हैं। 18 जुलाई को शोपियां में जिन तीन लड़कों का एनकाउंटर हुआ है, उनमें 16 साल का अबरार भी शामिल था। उसके अलावा दो और लड़के थे, एक 21 साल का इम्तियाज अहमद और 25 साल का अबरार अहमद। आर्मी ने इन्हें मिलिटेंट बताया था। हालांकि, अब इस मामले में हाई लेवल कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी चल रही है।
- एनकाउंटर में मारा गया मोहम्मद अबरार 16 साल का था, तीनों के खिलाफ आज तक कोई एफआईआर तक दर्ज नहीं हुई, कैसे मान लें कि वो आतंकी थे
- परिवार ने कहा, जो जिम्मेदार हैं, उन्हें सामने लाया जाए, अगर हमारे बच्चे आतंकी थे तो हम उनकी डेडबॉडी तक नहीं मांगेंगे
तीनों लड़कों के एनकाउंटर के 36 दिन बाद भी अभी तक परिवारों को कोई ऐसा सबूत नहीं दिया गया है, जिससे यह साबित हो कि यह तीनों मिलिटेंट थे। ये लोग आपस में रिश्ते में थे। शोपियां में काम की तलाश में सबसे पहले इम्तियाज अहमद गया था। करीब एक महीने बाद उसने मोहम्मद अबरार और अबरार अहमद को भी आने को कहा। ये लोग 16 जुलाई को शोपियां गए। 17 जुलाई को इन्होंने परिवार को फोन पर बताया कि हम सही-सलामत पहुंच गए हैं। कमरा भी ले लिया है। फिर इन लोगों का फोन बंद हो गया और 18 जुलाई को हुए एनकाउंटर में मार दिए गए।
परिवार को इनकी मौत की खबर 9 अगस्त को तब मिली, जब एनकाउंटर की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। अबरार अहमद के पिता को एक मीडियाकर्मी ने फोन पर फोटो दिखाई, तो तुरंत समझ गए कि यह उनके लड़के ही हैं। 10 जुलाई को परिजनों ने थाने में मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करवाई।
11 अगस्त को इन लोगों के परिजन डीजीपी दिलबाग सिंह, एसएसपी चंदन कोहली और एएसपी लियाकत अली से मिले थे। 13 अगस्त को पुलिस ने डीएनए कलेक्ट किया। यह सिर्फ इनकी पहचान की पुष्टि करेगा। हालांकि, परिजन फोटो देखकर समझ चुके हैं कि यह उनके ही लड़के हैं। इसलिए डीएनए रिपोर्ट वही आएगी।
परिजनों को डीएनए रिपोर्ट से ज्यादा इंतजार उस रिपोर्ट के आने का है, जो 18 जुलाई को हुए एनकाउंटर का सच सामने लाए। पुलिस ने किन सबूतों के आधार पर मारा? पूछताछ क्यों नहीं की? मिलिटेंट हैं, इसकी पुष्टि कैसे की? ऐसे तमाम सवाल परिजनों के मन में चल रहे हैं। इन लोगों को तो अभी तक यह भी नहीं पता कि बच्चों की डेडबॉडी आखिर रखी कहां है? उसे दफना दिया गया है या कहीं रखा गया है? 13 अगस्त को परिजनों से कहा गया था कि दस-बारह दिन में डीएनए की जांच रिपोर्ट आ जाएगी और एनकाउंटर की सच्चाई भी। अभी इन दोनों ही चीजों का इंतजार है।
थाने में मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करवाने वाले नसीब ने बताया कि जब लड़कों के फोन बंद आए तो हमें लगा कि अभी कोरोना का दौर चल रहा है। ऐसा हो सकता है कि इन लोगों को क्वारैंटाइन कर दिया गया हो। इसलिए हमने भी बार-बार फोन नहीं किया और कहीं रिपोर्ट भी दर्ज नहीं करवाई।
अबरार अहमद के पिता पहाड़ी पर मवेशी चराने गए थे। हर साल गांव के लोग मवेशियों को लेकर ऊपर ही जाते हैं, क्योंकि नीचे जानवरों को खिलाने को कुछ नहीं होता। वो 9 अगस्त को गांव लौटे। तभी उन्हें एक मीडियाकर्मी मिला। जिसने फोन पर वायरल हो रही तस्वीरें दिखाईं। फोटो देखते ही समझ गए कि एनकाउंटर में मारे गए लड़के हमारे हैं। जबकि, मोहम्मद अबरार के पिता तो अभी भारत लौटे भी नहीं हैं। वो सऊदी अरब में हैं। वहीं मजदूरी करते हैं। लॉकडाउन के पहले से ही वहां हैं। 9 अगस्त को जब फोटो सामने आईं तो पूरे गांव में आग की तरह फैल गई। घरों में आसपास के लोगों की भीड़ लग गई, क्योंकि लड़कों का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड नहीं रहा। पढ़ने-लिखने और कामकाज वाले रहे हैं, इसलिए हर किसी को इस खबर ने चौंका दिया।