भाई की दर्दनाक मौत के बाद जग्गू दादा बने थे जैकी

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(www.arya-tv.com) जैकी श्रॉफ 64 साल के हो गए हैं। 2 फरवरी 1957 को साउथ मुंबई के ग्रांट रोड स्थित एक साधारण सी चॉल में जयकिशन (जैकी) श्रॉफ का जन्म हुआ था। उनके पिता गुजराती थे, जबकि मां का मूल कजाकिस्तान का था। जैकी श्रॉफ की लाइफ की कई ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते होंगे।

नाम के पीछे दर्दनाक कहानी

जैकी के जग्गू दादा नाम के पीछे दर्दनाक कहानी छुपी हुई है। सिमी ग्रेवाल के चैट शो में कुछ साल पहले जैकी ने कहा था, “मेरा एक बड़ा भाई था, जिसकी 17 साल की उम्र में मौत गई। उस वक्त मैं 10 साल का था। मेरा भाई हमारी चॉल का असली जग्गू दादा था। जब भी हमारी बस्ती के लोगों को जरूरत पड़ती थी, वह मदद के लिए तैयार रहता था।

जैकी ने आगे कहा, ’17 साल की उम्र में एक दिन जब उसने समुद्र में एक आदमी को डूबते देखा तो उसे बचाने के लिए पानी में छलांग लगा दी। उसे तैरना नहीं आता था, इसलिए वह भी डूबने लगा। तब मैंने एक केबल लाइन उसकी ओर फेंकी। उसने केबल पकड़ भी ली। लेकिन कुछ सेकंड बाद ही वह हाथ से फिसल गई। मैं तब छोटा था और बहुत डर गया था। मैं खड़े होकर उसे डूबते देखता रहा। इसके बाद मैंने तय किया कि मैं भी अपनी बस्ती के लोगों की रक्षा अपने भाई की तरह ही करूंगा और फिर मैं जग्गू दादा बन गया।’ जैकी के मुताबिक, उनके भाई मिल वर्कर थे और मौत से एक महीने पहले ही उनकी जॉब लगी थी।

पिता रईस पर्ल ट्रेडर परिवार से ताल्लुक रखते थे

जैकी श्रॉफ की मानें तो उनके पिता रईस पर्ल ट्रेडर परिवार से ताल्लुक रखते थे। लेकिन पिता के भाई और एक अन्य आदमी ने पार्टनरशिप में कुछ काम शुरू किया और तगड़ा घाटा लगा। जैकी के पिता पर इल्जाम लगाकर उन्हें घर से निकाल दिया गया।

जैकी कहते हैं, “इसके बाद वे मालाबार हिल स्थित तीन बत्ती में एक कमरे में रहने लगे, जहां मेरा जन्म हुआ। सालों पहले मैंने पेरेंट्स को खो दिया। पहले पिता की मौत हुई और उसके बाद मां को खो दिया। दोनों आखिर तक मेरे साथ रहे। जैकी कहते हैं, “हर दिन शॉवर लेने के बाद मैं अपनी मां की फोटो को छूता हूं और उनकी फोटो को सूरज दिखाता हूं। क्योंकि वे हर सुबह सूर्य आराधना करती थीं।”

फिल्म रिलीज और इलेक्शंस का इंतजार किया करते थे

एक इंटरव्यू के दौरान जैकी श्रॉफ ने बताया था कि बचपन में फिल्म रिलीज और इलेक्शंस का इंतजार किया करते थे। ताकि दोस्तों के साथ दीवारों पर पोस्टर्स चिपका सके। दोपहर तक यह काम करने के बदले उन्हें चार आना मिला करता था। जैकी ने यह भी बताया था कि एक्स्ट्रा इनकम के लिए वे 15 अगस्त और 26 जनवरी पर उन लोगों के बीच जाकर मूंगफली और चना बेचा करते थे, जो परेड और झंडा वंदन के लिए आते थे। पूरे सप्ताह वे इन पैसों को बचाते थे और रविवार को चंदू हलवाई के यहां से जलेबी खरीदकर खाते थे।