(www.arya-tv.com) दर्प से चमकता चेहरा और आवाज में स्वाभिमान भरी खनक। इन सबके पीछे वह जुनून, जिसने उनके सपनों को मुस्कान दी। बात बड़ी इसलिए है, क्योंकि अधिसंख्य ने उन गांव-कस्बों में ही रहकर सफलता की उड़ान भरी, जहां बड़े शहरों की तरह हर सुविधा नहीं मौजूद थी। यह सफलता संकेत है बदलते समाज का, जहां बेटियों की सीमाएं चूल्हे-चौके, चूड़ी-बिंदी और डोली से कहीं आगे हैं। बदलाव का यह सफर कोई एक दिन का नहीं है, बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती सोच ने जैसे आने वाली उम्मीदों का रंग और गहरा कर दिया हो। वह साल 1994 था, जब बिहार में 1640 दारोगा की बहाली में सिर्फ 53 महिलाएं थीं।
यह साल 2021 है, जब 1586 पदों में 596 पर महिलाएं काबिज हुईं। इसमें बिहार सरकार की भी बड़ी भूमिका रही, जिसमें आधी आबादी को सशक्त करने की परिकल्पना के साथ महिलाओं के लिए 35 फीसद का आरक्षण भी तय किया गया, पर उससे भी आगे बढ़कर इन लोगों ने 37 फीसद पदों पर कब्जा जमा लिया। यह यूं ही नहीं था, हर एक की सफलता के साथ प्रेरक कहानी जुड़ी है।
सोफिया के सपनों पर नहीं लगी बंदिश: यह बदलाव की नई बयार है कि आज बेटियां कानून की रखवाली के लिए बेखौफ निकल पड़ी हैं। छह बहनों व दो भाइयों के बीच सबसे छोटी सोफिया कैमूर जिले के कुदरा की रहने वाली हैं। पिता मो. सलीम अंसारी का 2016 में इंतकाल हुआ तो जैसे सोफिया के सपने टूटने लगे, पर फैक्ट्री में काम करने वाले बड़े भाई मो. सलील अंसारी ने संबल दिया।
यह बदलते समाज की सोच थी, जहां बहन के सपनों पर बंदिश नहीं लगी। सोफिया कहती हैं, गृह प्रखंड के ही सरकारी स्कूल-कालेज में पढ़ाई की। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, किसी बड़े शहर में जाने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। वर्ष 2010 में नौवीं कक्षा में थी तो सरकार की बेटियों के लिए योजना के तहत साइकिल मिल गई। स्कूल का सफर आसान हो गया। वर्ष 2011 में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास करने पर सरकार से दस हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि मिली। इसके बाद मुड़कर नहीं देखा, आज दारोगा भी बन गई।
बढ़ाया पिता का मान: बेशक परिवार में चाहत एक बेटे की रही और घर में बेटियां ही बेटियां हो गईं, लेकिन बेटियों ने समाज की लीक को तोड़ा। उन पर जल्दी से जल्दी विवाह के लिए दबाव बना, लेकिन उन्होंने अपने आजाद वजूद को चुना। रिटायर बैंक मैनेजर उदय कृष्ण और विमला गुप्ता के परिवार की झोली में ईश्वर ने पांच बेटियां डाल दीं, लेकिन आज पटना के आशियाना नगर के निकट बैंक आफ इंडिया हाउसिंग कालोनी स्थित उनके घर की रौनक देखते ही बनती है।
इंटर और ग्रेजुएशन दोनों प्रथम श्रेणी से पास कर दिखाया। बीपीएससी की परीक्षा में महज दो अंकों से चूक गईं। पांच साल छोटी बहन प्रगति कुमारी भी ग्रेजुएशन कर चुकी थीं। वर्ष 2018 में दारोगा के लिए रिक्तियां निकलीं। उन्होंने भी साथ में फार्म भरा। संयोग से दोनों बहनें साथ चयनित हो गईं। इससे परिवार और समाज का नजरिया बदल गया। पिता ने जब कहा कि आज तक खानदान में किसी ने सरकारी नौकरी नहीं की, बेटियों ने वह कर दिखाया तो आंखें भर आईं। हालांकि गांव की फिजां भी बदल चुकी थी। काफी लड़कियां साइकिल से स्कूल जाने लगी थीं। समाज की सोच में आए बदलाव के कारण छोटी बहन प्रगति के लिए राह थोड़ी आसान हो गई थी।