(www.arya-tv.com)ब्रिटेन के नॉर्थ वेल्स में मंकीपॉक्स से संक्रमित होने के दो मामले मिले हैं। वेल्स के स्वास्थ्य अधिकारियों ने दोनों मरीजों के ब्रिटेन के बाहर संक्रमित होने की आशंका जताई है। मरीजों की मॉनिटरिंग की जा रही और संक्रमण कैसे फैला, पता लगाया जा रहा है। अधिकारियों का कहना है, मरीजों से स्वस्थ लोगों में संक्रमण फैलने का खतरा कम है।
क्या है मंकीपॉक्स वायरस
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, मंकीपॉक्स एक जूनोटिक वायरल डिजीज है। यानी ये वायरस संक्रमित जानवर से इंसानों में पहुंचता है। इसके ज्यादातर मामले सेंट्रल और पश्चिमी अफ्रीका के वर्षावनों में पाए जाते हैं। मंकीपॉक्स का वायरस संक्रमित संक्रमित जानवर के ब्लड, पसीना या लार के सम्पर्क में आने पर इंसान में फैलता है। एक्सपर्ट के मुताबिक, मंकीपॉक्स का वायरस स्मॉलपॉक्स के समूह से ताल्लुक रखता है।
ये लक्षण दिखे तो अलर्ट हो जाएं
मंकीपॉक्स के लक्षण स्मॉलपॉक्स की तरह ही होते हैं। अगर स्किन पर छाले व रैशेज, बुखार, सिरदर्द, बैकपैन, मांसपेशियों में दर्द और थकान महसूस हो तो अलर्ट हो जाएं। ये मंकीपॉक्स के वायरस से संक्रमित होने का इशारा है।
संक्रमण के 1 से 5वें दिन बाद दिखते हैं चकत्ते
ब्रिटेन की स्वास्थ्य एजेंसी एनएचएस का कहना है, संक्रमण के 1 से 5 दिन के बाद स्किन पर चकत्ते दिखते हैं। यही इसका शुरुआती लक्षण होता है। इन चकत्तों की शुरुआत चेहरे से होती है, धीरे-धीरे ये शरीर के दूसरे हिस्सों तक फैल जाते हैं। ये चकत्ते धीरे-धीरे छालों में तब्दील होने लगते है और इनमें लिक्विड भर जाता है।
11 फीसदी तक रहता है मौत का खतरा
WHO के मुताबिक, मंकीपॉक्स के मामले में मौत का खतरा 11 फीसदी तक रहता है। स्मॉलपॉक्स से सुरक्षा के लिए ‘वैक्सीनिया इम्यून ग्लोब्यूलिन’ नाम का टीका लगाया जाता है। एक ही समूह का वायरस होने के कारण मंकीपॉक्स के संक्रमण से बचाने के लिए भी यही वैक्सीन मरीज को लगाई जाती है।
1970 में पहली बार इस वायरस का पता लगा था
पहली बार इस वायरस का पता 1970 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक के कॉन्गो में लगा था। इसके बाद धीरे-धीरे दुनिया के कई देशों में फैला। 2003 में पहली बार अमेरिका में इसके मामले सामने आए।