अभिषेक राय
(www.arya-tv.com) पिछले कुछ वर्षों का मेडिकल डेटा उठाकर देखें तो पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर कई प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है। नॉन कम्युनिकेबल डिजीज जैसे कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और श्वसन संबंधी बीमारियों के कारण स्वास्थ्य क्षेत्र पर दबाव तो बढ़ा ही है साथ ही कई प्रकार की संक्रामक बीमारियां भी विशेषज्ञों की टेंशन बढ़ाती जा रही हैं। विशेषतौर पर भारतीय आबादी में बढ़ते संक्रामक रोगों के खतरे को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञ गंभीर चिंता व्यक्त करते हैं. इसी से संबंधित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की हालिया रिपोर्ट काफी चिंता बढ़ाने वाली है। इसमें कहा गया है कि भारत में हर नौ में से एक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की संक्रामक बीमारी का शिकार पाया जा रहा है। ये निश्चित ही गंभीर चिंता वाली बात है। देश में कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों जैसे हेपेटाइटिस ए, इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम, हर्पीज, श्वसन बीमारियों का खतरा देखा जा रहा है जिसको लेकर विशेषज्ञों ने सावधान किया है।
भारत में संक्रामक बीमारियों का खतरा
भारत में संक्रामक बीमारियों के खतरे को समझने के लिए आईसीएमआर ने 4.5 लाख रोगियों के सैंपल टेस्ट किए जिनमें से 11.1 प्रतिशत में संक्रमण की पुष्टि हुई। ये लोग एक्यूट या किसी तरह की जानलेवा संक्रामक बीमारी का शिकार थे। जिन पांच रोगाणुओं को सबसे ज्यादा रिपोर्ट किया गया उनमें इन्फ्लूएंजा ए, डेंगू, हेपेटाइटिस ए, नोरोवायरस और हर्पीज प्रमुख हैं। इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण तीव्र श्वसन संक्रमण, डेंगू वायरस के कारण तीव्र और रक्तस्रावी बुखार, हेपेटाइटिस-ए के कारण पीलिया और लिवर से संबंधित समस्याएं, नोरोवायरस के कारण दस्त रोग और हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस (एचएसवी) के कारण इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
रिपोर्ट में क्या पता चला?
आईसीएमआर की रिपोर्ट के अनुसार, संक्रामक रोगों का प्रसार लगातार बढ़ता जा रहा है। ये पहली तिमाही में 10.7 प्रतिशत से बढ़कर 2025 की दूसरी तिमाही में 11.5 प्रतिशत हो गया। आईसीएमआर के वायरस रिसर्च एंड डायग्नोस्टिक लेबोरेटरी (वीआरडीएल) नेटवर्क के अनुसार, जनवरी से मार्च के बीच 2.28 लाख सैंपलों में से 24,502 (10.7 प्रतिशत) में रोगाणु पाए गए। अप्रैल से जून 2025 तक 2.26 लाख सैंपल्स में से 26,055 (11.5 प्रतिशत) में रोगाणु पाए गए। इस प्रकार, संक्रमण दर पिछली तिमाही की तुलना में 0.8 प्रतिशत अंक बढ़ गई। ये आंकड़े संकेत देते हैं कि अगर समय रहते व्यापक उपाय न किए गए तो आने वाले वर्षों में खतरा और भी बढ़ सकता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के अनुसार, वैसे तो यह वृद्धि बहुत बड़ी नहीं कही जा सकती है, लेकिन इसे कम करके आंकना भी ठीक नहीं है। यह मौसमी बीमारियों और उभरते संक्रमणों के लिए एक चेतावनी है। यदि हम संक्रमण दर में तिमाही बदलावों पर नजर रखना जारी रखें, तो भविष्य में होने वाली महामारियों को समय रहते रोका जा सकता है। आईसीएमआर की रिपोर्ट में पाया गया कि इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच 191 रोग समूहों की जांच की गई। इसमें मम्प्स, खसरा, रूबेला, डेंगू, चिकनगुनिया, रोटावायरस, नोरोवायरस, वैरिसेला जोस्टर वायरस, एपस्टीन-बार वायरस (ईबीवी) और एस्ट्रोवायरस जैसे संक्रामक रोगों की पहचान की गई।
क्यों बढ़ती जा रही हैं ये बीमारियां
विशेषज्ञों का मानना है कि नए रोगाणुओं के कारण कई घातक बीमारियों का खतरा देखा जा रहा है। स्वच्छता का ध्यान न रखने तथा अत्यधिक भीड़भाड़ वाली परिस्थितियों के कारण इनके तेजी से प्रसार का खतरा रहता है। विशेषज्ञ इन संक्रामक बीमारियों के प्रकोप के लिए मुख्य रूप से मानवीय और कुछ पर्यावरणीय कारकों को जिम्मेदार मानते हैं, जिनमें तेजी से बढ़ता शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती जनसंख्या और कई सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियां शामिल हैं, जिन्होंने नए रोगाणुओं को अनुकूल वातावरण तैयार किया है। अस्वच्छता, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा और मानव-पशु संपर्क में वृद्धि जैसे कारकों के कारण भी संक्रामक बीमारियां अब काफी आम हो गई हैं।
