(www.arya-tv.com) ‘भारत कभी सांप-सपेरों का देश माना जाता था, लेकिन IT सेक्टर ने देश की पुरानी पहचान को बदल दिया। अब पूरे विश्व में पहुंचने के लिए, पूरी दुनिया को अपना बनाने के लिए सबसे बेहतर रास्ता योग है। काश ऐसा होता कि विश्व में भारत की पहचान बनाने के लिए योग को एक रास्ता बना लिया गया होता।’
नरेंद्र मोदी ने ये बात 28 मई 2013 को कही थी, तब वो प्रधानमंत्री नहीं थे। BJP ने उन्हें 2014 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। 12 महीने बाद मई 2014 में नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। उनके प्रधानमंत्री बनने के करीब 7 महीने बाद यूनाइटेड नेशन में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव पास हुआ।
राजीव गांधी की कल्चरल डिप्लोमेसी को PM मोदी ने योग से आगे बढ़ाया
साल 1985 की बात है। दुनिया में भारत को नई पहचान देने के लिए राजीव गांधी ने अमेरिका में ‘फेस्टिवल ऑफ इंडिया’ के नाम से एक कार्यक्रम की शुरुआत की। इसका मकसद ये था कि भारत के अलग-अलग कल्चर और त्योहारों के बारे में दुनिया को पता चले।
जून 1985 में इसी योजना के तहत फ्रांस की राजधानी पेरिस में राजीव गांधी ने एक भव्य प्रोग्राम कराया। इसमें पतंग उड़ाने के कार्यक्रम से लेकर भारतीय फिल्में दिखाने और खाने तक को शामिल किया गया था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें पेरिस के 2 लाख लोग शामिल हुए थे। राजीव गांधी ने कहा था- पेरिस में सब कुछ है, पर आज हम यहां पूरे भारत को लेकर आए हैं।
विदेश मामलों के एक्सपर्ट्स ने राजीव के इस प्रयास को तब भारत की कल्चरल डिप्लोमेसी बताया था। करीब 29 साल बाद एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया में भारत को नई पहचान देने के लिए योग को कल्चरल डिप्लोमेसी के तौर पर इस्तेमाल किया। 2022 में दुनिया के 192 देशों ने योग दिवस को सेलिब्रेट कर इस डिप्लोमेसी की सफलता पर मुहर लगा दी।
क्या चीन की पांडा डिप्लोमेसी का जवाब है भारत की योग डिप्लोमेसी
साल 1936 में जापान से जंग लड़ने में मदद करने पर चीन की फर्स्ट लेडी सूंग मे-लिंग ने अमेरिका को दो पांडा गिफ्ट किए थे। हालांकि इससे पहले भी चीन ने दूसरे देशों में पांडा भेजे थे, लेकिन 1936 में पहली बार ऐसा हुआ था कि चीन ने किसी देश को आधिकारिक तौर पर तोहफे में पांडा दिए हों। इसे चीन में पांडा डिप्लोमेसी की शुरुआत के तौर पर देखा जाता है।
पांडा गिफ्ट करने की डिप्लोमेसी 1984 तक जारी रही। कई ऐसे मौके आए जब चीन ने किसी देश से नजदीकियां बढ़ाने के लिए उसे पांडा गिफ्ट किया। 1957 में सोवियत रूस के हेड क्लिमेंट वोर्शिलोव चीन गए। इस दौरान चीन ने उन्हें पिंग-पिंग और कीकी नाम के दो पांडा गिफ्ट किए थे। हालांकि कुछ ही समय बाद रूस ने एक मेल पांडा के बदले फीमेल पांडा देने की मांग की ताकि वो उनकी आबादी को रूस में बढ़ा सके।