ISRO में क्यों नहीं नौकरी करना चाहते हैं IITian, क्या है इसके पीछे की वजह?

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(www.arya-tv.com) इसरो में नौकरी (Sarkari Naukri) पाना अधिकांश युवाओं की पहली पसंद होती है. इसमें मिलने वाली सैलरी स्ट्रक्चर की वजह से टॉप टाइलेंटेड लोग नहीं मिल पा रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इसरों के चेयरमैन डॉ. एस सोमनाथ (Dr S Somanath) के अनुसार भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को सैलरी स्ट्रक्चर के कारण देश के प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों – भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) से सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं नहीं मिल रही हैं. एशियानेट के एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “हमारी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को इंजीनियर माना जाता है और उन्हें आईआईटियन माना जाता है. लेकिन वे इसरो में शामिल नहीं हो रहे हैं. अगर हम जाते हैं और आईआईटी से भर्ती करने की कोशिश करते हैं, तो कोई भी शामिल नहीं होता है.”

उन्होंने आगे कहा, ऐसे कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि स्थान महत्वपूर्ण है. “ऐसे लोग शामिल होते हैं” सोमनाथ ने कहा, “लेकिन बहुत ज्यादा नहीं और प्रतिशत मुश्किल से 1 प्रतिशत या उससे भी कम है.” जिनके नेतृत्व में भारत ने चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश और दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र को छूने वाला पहला देश बनकर इतिहास रचा है. इसरो प्रमुख ने एक उदाहरण साझा किया कि जब उनकी टीम इंजीनियरों की भर्ती के लिए एक आईआईटी में गई तो क्या हुआ. इस पर सोमनाथ ने कहा कि वे (टीम) उनके सामने कैरियर के अवसर प्रस्तुत कर रहे थे. कैरियर के अवसरों और काम के प्रकार के बाद उन्होंने इसरो प्रणाली की सैलरी स्ट्रक्चर प्रस्तुत की. जो छात्र वहां बैठे थे, उन सभी की नजरें हाई पे सैलरी पर टिकी थी, जो यहां कभी नहीं मिल सकती थी. प्रेजेंटेशन देखने के बाद 60 फीसदी लोग बाहर चले गए थे.”

इसरो के चेयरमैन के बराबर है कई IIT का औसत प्लेसमेंट
इसरो प्रमुख ने कहा कि संभवत: आईआईटीयन जिस सैलरी से शुरुआत करते हैं, इसरो में वह सबसे अधिक है. पिछले महीने, बिजनेस टाइकून हर्ष गोयनका ने एक ट्वीट में कहा था कि सोमनाथ, जो इसरो में शीर्ष पद पर हैं और अंतरिक्ष विभाग के सचिव भी हैं, उनका वेतन 2.5 लाख रुपये था, जो टॉप IIT में औसत प्लेसमेंट पैकेज है. इसरो में अलग-अलग पदों के लिए अलग-अलग सैलरी स्ट्रक्चर है लेकिन इंजीनियरों के लिए शुरुआती वेतन लगभग 56,100 रुपये है.

चंद्रयान-3 के 7 इंजीनियर इस कॉलेज से है पढ़े 
मोटे पैकेज को प्राथमिकता देने वाले आईआईटियंस के इस चलन को चंद्रयान-3 की सफलता के बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी उजागर किया था. उन्होंने कहा कि सोमनाथ केरल के टीकेएम कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के प्रोडक्ट थे और उनके कई सहयोगियों ने कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, तिरुवनंतपुरम (सीईटी) से ग्रेजुएशन किया था. उन्होंने आगे कहा, CET के कम से कम सात इंजीनियर चंद्रयान-3 की सफलता में शामिल थे. सोमनाथ ने कहा कि पैसा इसरो में लोगों को आकर्षित नहीं कर सकता है और अंतरिक्ष एजेंसी अपने काम के लिए पर्याप्त प्रतिभाओं को काम पर रख रही है. उन्होंने ‘सर्वोत्तम प्रतिभा’ और ‘पर्याप्त प्रतिभा’ के बीच अंतर को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि हजारों छात्रों को IIT के लिए परीक्षा लिखने का अवसर नहीं मिलता है, लेकिन वे समान रूप से प्रतिभाशाली हैं.

छिड़ी बहस
सोमनाथ ने कहा, “प्रतिभाएं सामाजिक स्तर के बहुत व्यापक दायरे में फैली हुई हैं…हजारों और लाखों लोग जिनके पास उस (आईआईटी) प्रकृति की योग्यता है, उन्हें (आईआईटी परीक्षा में बैठने का) अवसर नहीं मिलता है.” यह कहते हुए कि वह उनमें से एक थे. जब मैं छात्र था तो मुझे आईआईटी में जाने के लिए प्रवेश परीक्षा देने का अवसर नहीं मिला. इसका मतलब यह नहीं है कि मैं एक जानकार व्यक्ति नहीं था. ऐसे लाखों लोग आईआईटी परीक्षा नहीं दे रहे हैं.” सोमनाथ ने आगे कहा कि एक प्रतिशत से भी कम आईआईटियन इसरो में शामिल होते हैं, एक बहस छिड़ गई है, कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि कई प्रतिभाओं को अंतरिक्ष एजेंसी में शामिल होना चाहिए क्योंकि आईआईटी में उनकी शिक्षा पर भारी सब्सिडी दी जाती है. हालांकि, कुछ ने छात्रों का यह कहते हुए समर्थन भी किया कि पैसा हर किसी के लिए मुख्य आकर्षण है.