- डॉ. कफील कहते हैं, कन्हैया-उमर खालिद मेरे अच्छे दोस्त हैं, राजनीति में कब जाऊंगा नहीं जानता? अभी बाढ़ पीड़ित और कोरोना मरीजों के लिए काम करना चाहता हूं
- वो कहते हैं, उनकी इंसाफ की लड़ाई को राजनीतिक बना दिया और उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया गया, वरना जब जेल जाता था तो कोई मदद को नहीं आया
(www.arya-tv.com)8 महीने से जेल में बंद गोरखपुर के डॉक्टर कफील खान को मंगलवार रात 12 बजे जेल से रिहा किया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी रिहाई के आदेश दिए थे। डॉ. कफील देशभर में मशहूर हो गए हैं, इसकी क्या वजह है? क्या वो खुद को कन्हैया कुमार, शेहला राशिद या इन जैसों के बराबर मानते हैं? इस सवाल पर कफील कहते हैं कि “मैं इन सबके संपर्क में रहा हूं, मैं इनके बराबर हूं या नहीं, ये लोगों को जज करना है। मैं चाहें कन्हैया कुमार हो, जिग्नेश मेवाणी हो, चंद्रशेखर हो या उमर खालिद हो, इन सबके संपर्क में रहा हूं। हम एक अच्छे दोस्त की तरह मिलते हैं, बात करते हैं। कहीं-कहीं मंच भी शेयर किया। कन्हैया के लिए तो मैं बेगूसराय में चुनाव प्रचार में भी गया था।”
जब मुझे पुलिस पकड़कर ले जाती है तो कोई मदद को नहीं आता
राजनीति में जाएंगे या नहीं? इस पर कफील कोई साफ जवाब तो नहीं देते, लेकिन कहते हैं कि आगे जाकर पता चलेगा। वो कहते हैं कि “उनकी इंसाफ की लड़ाई राजनीतिक बन गई और हो सकता है कि उनका राजनीतिक इस्तेमाल किया गया हो। जब मुझे पुलिस पकड़ कर ले जाती है तब कोई मदद के लिए आगे नहीं आता। लेकिन, जब जनता मेरे लिए सड़क पर उतरी तो सारी पॉलिटिकल पार्टियां सपोर्ट करने आ जाती हैं।”
कफील कहते हैं कि “मैंने अब तक 3000 कैम्प लगाए, 50 हजार बच्चों को दवाएं बांटीं और उनका फ्री इलाज किया है। इसके लिए किसी सरपंच या विधायक की मदद की जरूरत पड़ती ही है। फिर चाहें वो भाजपा का हो या कांग्रेस का, उससे फर्क नही पड़ता है। इससे कुछ गरीब लोगों का भला हो जाता है।”
आदित्यनाथ मेरा सस्पेंशन खत्म करें, मैं कोरोना वॉरियर बनना चाहता हूं
कफील फिलहाल राजनीति में नहीं आना चाहते बल्कि वो कोरोना वॉरियर बनकर बाढ़ पीडितों की मदद करना चाहते हैं। कफील कहते हैं कि “मेरी सीएम योगी आदित्यनाथ से अपील है कि मेरा सस्पेंशन खत्म किया जाए। ताकि मैं रिसर्च कर सकूं और कोरोना वॉरियर की तरह काम कर सकूं। मैं नई वैक्सीन का ट्रायल खुद पर करवाना चाहता हूं। बिहार-असम और केरल में बाढ़ वाले इलाकों में कैम्प भी लगाना चाहता हूं।”
उत्तर प्रदेश सरकार ने मुझे ही नहीं, मेरे परिवार को भी प्रताड़ित किया
सोशल एक्टिविस्ट बनने के बाद उनका परिवार कितना और कैसे प्रभावित हुआ है? इस सवाल पर कफील खान कहते हैं, “मुझसे ज्यादा मेरे परिवार ने भुगता है। 65 साल की मेरी बूढ़ी मां को कोरोना के बीच अलीगढ़ से इलाहाबाद तक भटकना पड़ा और वकीलों के पैर पकड़ने पड़े। सुप्रीम कोर्ट में लड़ना कोई आसान काम नहीं है। हाईकोर्ट के आर्डर में साफ कहा गया है कि जब से बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन कांड हुआ है, न सिर्फ डॉ. कफील को, बल्कि उनके पूरे परिवार को उत्तर प्रदेश सरकार की मशीनरी ने उनको प्रताड़ित किया है।”
कफील कहते हैं कि “मैं एसटीएफ का शुक्रगुजार हूं जिन्होंने मेरा एनकाउंटर नहीं किया। सिर्फ टॉर्चर किया। मुझे 5 दिन तक खाना नहीं दिया। फिजिकली टॉर्चर किया और मेंटली भी। 8 महीने तक सिर्फ मुंह बंद करने के लिए कि जो बच्चे मर गए, उनके बारे में बात मत करना, बीआरडी के बारे में बात मत करना।”
एनआरसी आया तो हम लोग सड़कों पर आएंगे
क्या आपको भी लगता है कि एनआरसी और सीएए मुसलमानों का आंदोलन बन गया है? इस सवाल पर कफील कहते हैं, “ये कभी मुसलमानों का आंदोलन नहीं था। यह भारतीयों का आंदोलन था। मैं कभी सीएए के खिलाफ था ही नहीं। हमारे गृहमंत्री के अनुसार सीएए नागरिकता देने का कानून है, उसका कोई विरोध नहीं होना चाहिए। मैंने भी कभी उसका विरोध नहीं किया। मैं एनपीआर और एनआरसी का विरोध करता हूं। जब एनआरसी आएगा तो सीएए एक खतरनाक हथियार बन जाएगा। एनआरसी आया तो हम लोग सड़कों पर आएंगे ही आएंगे।”
यूपी में विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस और लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा एक हुए, क्या ये सिर्फ अपने फायदे के लिए एक होते है? इस सवाल पर कफील कहते हैं कि उन्हें फिलहाल इतनी पॉलिटिक्स नहीं आती।