साइबर बैंकिंग फ्राॅड्स से खुद को कैसे बचाएं

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(www.arya-tv.com)पिछले दशक में भारत की बैंकिंग प्रणाली में काफी प्रगति हुई हुई है। उन्नत तकनीकों का उपयोग महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा है। एटीएम और इंटरनेट बैंकिंग पहले से ही लोकप्रिय था। आईएमपीएस, मोबाइल वैलेट्स और अंत में यूपीआई के जरिए मोबाइल बैंकिंग की शुरूआत से बैंकिंग के स्वरूप में अक्षरशः बदलाव आया है। आज, बैंक की शाखाओं में जाने की जरूरत कभी-कभार ही पड़ती है। बैंकिंग की सारी सुविधाएं मोबाइल पर ही उपलब्ध हैं।

भारत पंचाल – चीफ रिस्क आॅफिसर, मध्य-पूर्व और अफ्रीका, एफआईएस के मुताबिक, भारतमें दुनिया की सर्वोत्तम भुगतान प्रणाली है, जिससे बैंकिंग आसान व सुविधाजनक बन चुका है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है और वो है – सुरक्षित ट्रांजेक्शंस कीचिंता। जालसाजों द्वारा विभिन्न तरीकों का प्रयोग कर ग्राहक के खाते की गोपनीय जानकारियां चुरा ली जाती हैं। अक्सर लोग कार्ड क्लोनिंग के शिकार हो जाते हैं। कार्डक्लोनिंग में धोखे से कार्ड का डेटा काॅपी कर लिया जाता है और बाद में उसका दुरूपयोग किया जाता है। और इसके बारे में ग्राहक को खबर तक नहीं लगती। इस तरहकी धोखेबाजी में, जालसाजों द्वारा एटीएम में एक डिवाइस लगा दिया जाता है, जिसका पता लगा पाना काफी मुश्किल होता है।

जब कोई व्यक्ति अपना एटीएम कार्ड मशीन मेंडालता है, तो उस स्किमिंग डिवाइस (क्षिप्रग्रामी पठन उपकरण) द्वारा मैग्नेटिक स्ट्राइप(चुंबकीय पट्टी) से डेटा काॅपी कर लिया जाता है। उस डुप्लिकेट कार्ड और काॅपी किये गये पिन कोड का उपयोग कर, एटीएम से पैसा निकाला जा सकता है। आज जालसाजों द्वारा मोबाइल और इंटरनेट बैंकिंग को सबसे अधिक निशाना बनाया जा रहा है। पिछले वर्ष मोबाइल बैंकिंग में धोखाधड़ी के बहुत ही अधिक मामलों को अंजाम दिया गया है। इस प्रकार के धोखाधड़ी का सबसे बड़ा कारण फिशिंग तकनीक की सोशल इंजीनियरिंग है, जहां जालसाज अधिकांशतःस्वयं को किसी बैंक का प्रतिनिधि होेने का भ्रम पैदा करते हैं।

वे इस जानकारी को हासिल करने के लिए कई कारण बताते हैं और व्यक्तिगत जानकारी जैसे कि ग्राहक की आईडी, नेट बैंकिंग पासवर्ड, एटीएम पिन, ओटीपी, कार्ड की समाप्ति तिथि, सीवीवीआदि मांगने की कोशिश करते हैं। आज,मोबाइल बैंकिंग में यूपीआई का प्रमुख रूप से उपयोग होने लगा है। जब किसी कार्डको क्लोन किया जाता है, तो इसमें ग्राहक की कोई भी गलती नहीं होती है, लेकिन जबयूपीआई में जालसाजी होती है, तो उसमें ग्राहक जाने-अनजाने निश्चित रूप से शामिल होता है। जब किसी व्यक्ति के पास काॅल आती है कि उनके द्वारा पहले कराये गये किसी बीमा (जो कि उन्होंने कभी नहीं कराया है) का पैसा उनके खाते में आ सकता है या फिर यह कहा जाता है कि आपने कई वर्ष पहले कुछ पैसों का भुगतान कियाथा वो आपको मिलने वाला है, तो कृपया इस तरह के झांसे में कतई न आएं।

हालांकि यूपीआई का पूरा इकोसिस्टम सर्वोत्तम कोटि की सुरक्षा से बेहद सुरक्षित है, लेकिन ग्राहकों की थोड़ी सी नादानी इस मजूबत सुरक्षा कवच में सेंध लगाने का मौका दे देती है। यूपीआइ्र्र के एप्लिकेशंस में अपनी स्वयं की परतदार सुरक्षा मौजूद है,लेकिन ट्रांजेक्शंस का अंतिम नियंत्रण ग्राहकों के हाथ में होता है। ग्राहक डर यालालच से अनाजन मोबाइल नंबर पर एसएमएस भेजते हैं और बाद में जालसाजों को कार्डसे जुड़ी जानकारी, ओटीपी आदि बता देते हैं, जिसके चलते आखिर में उन्हें अपने पैसों से हाथ धोना पड़ जाता है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), एनपीसीआई और बैंकों ने इस तरह के धोखों से ग्राहकों को बचाने के लिए पर्याप्त कदम उठाये हैं, लेकिन ऐसी कुछ महत्वपूर्णबातें हैं जिन्हें ग्राहकों को याद रखना होगा और ट्रांजेक्शंस करते समय उन्हें अमल में लाना होगा। किसी भी तरह की जालसाजी से बचने के लिए सबसे बड़ी सावधानी यह बरतें कि ग्राहक नेटबैंकिंग यूजर नेम (उपयोगकर्ता नाम) और पासवर्ड, डेबिट याक्रेडिट कार्ड का नंबर, कार्ड की समाप्ति तिथि, सीवीवी और सबसे महत्वपूर्ण रूप से पिन और ओटीपी के बारे में किसी भी स्थिति में कभी भी कोई जानकारी न दें। बैंक द्वारा अपने ग्राहकों से उपरोक्त कोई भी जानकारी कभी भी नहीं मांगी जाती है,इसलिए कभी भी किसी भी व्यक्ति को ऐसी कोई जानकारी न दें।

विशेषकर यूपीआई में, जालसाजों से भेजे जा सकने वाले नकली एसएमएस की तुलना में एप्लिकेशनसे जुड़े नोटिफिकेशंस (सूचनाएं) सर्वाधिक विश्वसनीय एवं वास्तविक होती हैं। इसलिए,परामर्श है कि कुछ भी करने से पहले ऐप्प की सूचनाओं को हमेशा ही ध्यान पूर्वक पढ़ें। साथ ही, ग्राहकों को चाहिए कि वो किसी भी ऐसे संदेहजनक लिंक परक्लिक न करें, जो एसएमएस, व्हाट्सएप्प या ईमेल के जरिए प्राप्त हों। इस तरह के लिंक्सपर क्लिक करने के बाद आप फिशिंग साइट पर चले जाते हैं, जो कि ऐसी नकली वेबसाइट्स होती हैं जो बिल्कुल आपके बैंक की वेबसाइट की तरह दिखती है। यही नहीं, ग्राहकों को कभी भी अपने बैंक की वेबसाइट सर्च इंजन में नहीं खोजनी चाहिए और सीधे उस पर क्लिक नहीं करना चाहिए। यह नकली वेबसाइट हो सकती है। इसकेबजाये, मैन्युअल तरीके से यूआरएल में बैंक की वेबसाइट का पता टाइप करें और यह सुनिश्चित कर लें कि नहीं ।

इसके अलावा, एटीएम में पिन डालते समय की पैड को एक हाथ से ढंक लें। इससे कोई भी आपके कार्ड से जुड़ी जानकारी हासिल नहीं कर सकेगा, भले ही उसकी रिकाॅर्डिंग के लिए कोई कैमरा लगाया गया हो। यदि आप किसी शाॅप, रेस्तरां या पेट्रोल पंप पर कार्ड का उपयोग कर रहे हैं, तो कभी भी दुकानदार या अटेंडेंट को कार्ड अपनी नजर से दूर न ले जाने दें। बैंकिंग तकनीक और इसकी सुरक्षा प्रणालियां काफी आधुनिक हैं और ये आज डिजिटल हाइवे की तरह हैं। बस जरूरत है कि आप सावधानी और सतर्कता से इसका उपयोग करें। यदि एटीएम, पीओएस, नेट बैंकिंग या मोबाइल पर ट्रांजेक्शन होने के दौरान ग्राहक चैकन्ना रहे, तो अधिकांश जालसाजियों से बचा जा सकता है। कृपया याद रखें, तकनीक के पास समाधान मौजूद है, लेकिन जब बात मानव व्यवहार की हो तो हर चीज के लिए इसके पास समाधान नहीं है।