(www.arya-tv.com)करीब 28 साल पहले उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के एक छोटे से गांव मटौर का रहना वाला एक लड़का एमएससी बॉटनी की पढ़ाई के लिए उत्तराखंड गया। कॉलेज में दाखिला लिया और कुछ दिन पढ़ाई भी की। इस बीच कुछ ऐसी जगहों पर जाने का मौका मिला जहां उसने जड़ी-बूटी की खेती देखी। खेती करने वाले लोगों से थोड़ी बातचीत की और कॉलेज आकर इसके बारे में खूब पढ़ा। फिर पढ़ाई बीच में ही छोड़कर अपने गांव पहुंचा और वहां जड़ी-बूटी की खेती शुरू कर दी। यह कहानी है अशोक चौहान की जो आज करीब 300 एकड़ जमीन पर मेडिसिनल प्लांट की खेती कर रहे हैं।
अशोक कहते हैं, ‘मैंने शुरुआत 5 बीघा से की, इसमें हल्दी और तुलसी लगाई। जिसमें एक लाख रुपए की लागत आई, लेकिन छह महीने बाद ही यह तैयार हुई और मुझे लागत से दोगुना फायदा हुआ।’
आज अशोक अपनी और लीज पर ली गई करीब 300 एकड़ जमीन पर 6 पार्टनर के साथ मेडिसिनल प्लांट की खेती करते हैं। इससे हर पार्टनर को साल में करीब 20-25 लाख का मुनाफा होता है। इसके अलावा वे करीब 350 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। अशोक कहते हैं ‘मेरा उद्देश्य किसानों को ट्रेडिशनल खेती के साथ-साथ क्लिनिकल खेती में भी लाना है।’
सफेद मूसली उगाने की कोशिश में हुआ 10 लाख का नुकसान
अशोक ने बताया, ‘5 बीघा में डबल मुनाफे के बाद मेरा हौसला बढ़ा और मैंने अगले साल 10 बीघा और उसके अगले साल 50 बीघा में मेडिसिनल प्लांट की खेती की। 1995 में मैंने अपने खेतों में सफेद मूसली उगाने की कोशिश की, लेकिन इसमें करीब 8 से 10 लाख रुपए का नुकसान हुआ, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। तब मुझे समझ आया कि सफेद मूसली के लिए मेरी जमीन और मौसम सही नहीं था। इसके बाद मैंने उत्तराखंड के कुछ शहरों में भी लोगों को साथ जोड़कर मौसम और जमीन के मुताबिक खेती करना शुरू किया।’
अशोक अब अपने खेतों में सर्पगंधा, सतावरी, एलोवेरा, अकरकरा, केवकंद, कालमेघ चित्रक, अनंतमूल, मैदा छाल जैसे करीब 25 से ज्यादा मेडिसिनल प्लांट की खेती कर रहे हैं।
दादा-परदादा वैद्य थे, लोगों के इलाज के लिए घर में उगाते थे औषधीय पौधे
अशोक बताते हैं ‘हमारे दादा-परदादा अपने जमाने में वैद्य का काम करते थे, उस समय गांव के आसपास के लोग उनकी हाथ से बनी दवाई का इस्तेमाल कर ठीक हो जाते थे। दादा-परदादा औषधीय पौधे घर में उगाते थे, ताकि लोगों का इलाज किया जा सके। दादा के बाद पिताजी को भी मेडिसिन प्लांट की नॉलेज थी, तो उन्होंने भी इस काम को जारी रखा। वे कहते थे कि कहीं डॉक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है, हमारे आस-पास ऐसी औषधियां पाई जाती हैं कि जिससे हम छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। इसलिए, मैंने इसकी पढ़ाई करने का फैसला लिया था। तब तक मुझे इसकी खेती और व्यवसाय के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।’