हरिशंकर तिवारी की शवयात्रा गोरखपुर से गांव के लिए निकली:वाराणसी हाईवे पर लंबा जाम

# ## Gorakhpur Zone

www.arya-tv.com) पूर्वांचल के बाहुबली पंडित हरिशंकर तिवारी की शव यात्रा गोरखपुर से उनके गांव टांड़ा के लिए निकाली गई है। जैसे- जैसे यात्रा आगे बढ़ रही है लोग का काफिला बढ़ता ही जा रहा है। गोरखपुर-वाराणसी हाईवे पर लंबा जाम लग गया है। दो बजे के बाद उनका अंतिम संस्कार बड़हलगंज में मुक्ति पथ पर होगा।

मंगलवार शाम 7.30 बजे गोरखपुर के धर्मशाला बाजार स्‍थ‍ित त‍िवारी हाता में अपने आवास पर हरिशंकर ने आखिरी सांस ली। वह करीब 88 साल के थे। लंबे समय से बीमार चल रहे थे।1985 में पहली बार विधायक बने हरिशंकर
हर‍िशंकर त‍िवारी का जन्म बड़हलगंज के टांड़ा गांव में 5 अगस्त, 1935 को हुआ था। वे चिल्लूपार विधानसभा सीट से 1985 में पहली बार विधायक चुने गए। यह चुनाव उन्होंने जेल में बंद रहते हुए लड़ा था। जीत का यह सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो 2002 तक जारी रहा। 2007 में पूर्व पत्रकार राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को मात दी। गोरखपुर विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से प्रदेश की राजनीति में आने वाले हरिशंकर तिवारी चिल्लूपार सीट से लगातार 6 बार विधायक चुने गए। 1997 में उन्होंने जगदंबिका पाल, राजीव शुक्ला, श्याम सुंदर शर्मा और बच्चा पाठक के साथ मिलकर अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस की स्थापना की।

हर सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल रहे हरिशंकर तिवारी
उत्तर प्रदेश में सरकार चाहे जिसकी रही हो, लेकिन पंडित हरिशंकर तिवारी के प्रभाव में कभी कमी नहीं आई। हर सरकार के मंत्रिमंडल में उनका नाम शामिल रहता था। भाजपा के कल्याण सिंह ने 1998 में जब बसपा को तोड़कर सरकार बनाई, तो उन्हें हरिशंकर तिवारी का भी समर्थन मिला। कल्याण सरकार में हरिशंकर तिवारी साइंस और टेक्नोलॉजी मंत्री थे।

वहीं 2000 में जब राम प्रकाश गुप्त मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने हरिशंकर तिवारी को स्टांप रजिस्ट्रेशन मंत्री बना दिया। इसी तरह 2001 में जब राजनाथ सिंह ने बीजेपी सरकार की कमान संभाली, तो, उन्होंने भी हरिशंकर तिवारी को मंत्री बनाया था। हरिशकंर तिवारी 2002 में बनी मायावती की सरकार में भी शामिल रहे। मायावती के इस्तीफे के बाद अगस्त 2003 में बनी मुलायम सिंह यादव की सरकार में भी हरिशंकर तिवारी मंत्री थे।2007 में पहली बार हारे थे चुनाव
2007 में पूर्व पत्रकार राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को मात दी। इस चुनाव में पहली बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा पड़ा। इसके बाद 2012 में दोबारा हार के बाद हरिशंकर तिवारी ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटे विनय शंकर तिवारी को दे दी।