(www.arya-tv.com) गायों और मवेशियों के सरंक्षण को लेकर शासन ने अनेक योजनाएं चला रखी है, लेकिन इन योजनाओं का लाभ धरातल पर नहीं मिल पा रहा है । यही वजह है कि हजारों की संख्या में मवेशी सड़कों पर आवारा घूम रहा है।
मवेशियों को उचित ठिकाना नहीं मिलने के कारण सड़कों को ही इन्होंने आशियाना बना लिया है, जिससे यह मवेशी जहां सड़क दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं तो वहीं फसलों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। जिससे किसानों की फसलों को नुकसान पहुंच रहा है। फसलों को सुरक्षित बचाने के लिए किसान रात रातभर फसलों के आसपास पहरा दे रहे हैं।
प्रत्येक पंचायत में गोशाला निर्माण होना था, लेकिन बाड़ी बरेली ब्लॉक की 106 पंचायतों में से अभी तक महज 2 पंचायत चैनपुर और भारकच्छ में ही गोशाला बनकर तैयार हो पाई है, इनका संचालन भी शुरु हो चुका है।
लेकिन इनकी क्षमता महज 100 -100 पशु होने के कारण यहां अधिक मवेशी नहीं रखे जाते हैं, जिसके चलते गांवों से लेकर शहरों में बड़े पैमाने पर हजारों की संख्या में मवेशी आवारा घूम रहे हैं। वहीं दूसरी ओर गांवों में होने वाली चरनोई की जमीन पर भी दबंगों का कब्जा होने के कारण चरनोई की जमीनें गायब सी हो गई है, इन्हे मुक्त करवाने के लिए पंचायत, पटवारी, राजस्व विभाग के अफसर चुप बैठे हैं, जिससे जहां आम नागरिक परेशान हो रहा है तो वही मवेशियों के लिए भी उचित व्यवस्था नहीं हो रही है।
ग्वाला प्रथा भी हुई बंद
पहले गांवों में एक ग्वाला हुआ करता था, जो ग्रामीणों के मवेशियों को एक बाखर में एकत्रित करता था जिसके बाद वह रोजाना चराने के लिए जंगलों में लेकर जाता था। इस बाखर में ग्रामीण ही भूसा की व्यवस्था करते थे, वहीं यह ग्वाला शाम के समय मवेशियों को ग्रामीणों के घर पहुंचा देता था।
इसके बदले में ग्वाले के लिए ग्रामीण अनाज और राशि देते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों से यह प्रथा खत्म सी हो गई। यही वजह है कि अब मवेशी भी बेसहारा सा हो गया है।
शासकीय रिकॉर्ड में दर्ज , धरातल से गायब चरनोई भूमि
नगरीय क्षेत्र हो या ग्रामीण इलाके में कुल भूमि 2 प्रतिशत जमीन चरनोई के लिए न केवल छोड़ी गई है, बल्कि उसे शासकीय रिकार्ड में दर्ज भी किया गया है। लेकिन वर्तमान में स्थिति यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों की चरनोई भूमि के सर्वे नंबर अब केवल रिकार्ड में ही दर्ज होकर रह गए,जबकि धरातल पर उक्त जमीन या तो भू-माफिया के कब्जे में होकर उस पर खेती की जा रही है या फिर उस पर भवन बना लिए गए। यही वजह है कि जब मवेशियों के लिए चरनोई भूमि ही नहीं बची है।
अतिक्रमण मुक्त करवा रहे हैं चरनोई जमीन
प्रत्येक आबादी वाले गांव में गो गठान की भूमि है। कई स्थानों पर गांव के ही लोगों के द्वारा अतिक्रमण किया गया है, जिसे अतिक्रमण मुक्त कराया जा रहा है विगत दिनों भी प्रशासन के द्वारा लगभग 2 एकड़ शासकीय भूमि से अतिक्रमण मुक्त करवाया गया है।
प्रदेश सरकार की गोपालन योजना भी हुई फेल
प्रदेश सरकार ने देसी नस्ल की गाय या मवेशी पालने पर प्रत्येक पशुपालक को 900 रुपए प्रतिमाह देने की योजना बनाई है, लेकिन सरकार की इस योजना के प्रति आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं, जिसके चलते न के बराबर पशुपालक ही इस योजना का लाभ ले रहे हैं। ग्रामीणों के हिसाब से यह योजना फैल साबित हो रही है । वहीं पंचायतों में भी गोशाला का निर्माण नहीं होने के कारण पशुओं को उचित ठिकाना नहीं मिल पा रहा है।