(www.arya-tv.com) छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय में बने नए हरगोविंद खुराना सेंटर फॉर लाइफ साइंस रिसर्च सेंटर में ऐसे ईंधन की खोज की जा रही है, जिससे वाहन चलने के बाद शहर में प्रदूषण नहीं फैलेगा। इसके अलावा इस ईंधन का प्रयोग बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज में भी किया जा सकता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने कार्य करना शुरू कर दिया है। 6 माह के अंदर इसके परिणाम भी दिखाई देने लगेंगे।
नाले की काई से तैयार किया जाएगा ईंधन
इस ईंधन को तैयार करने के लिए डॉ. श्रीहर्षा राजपुरा ने नाले की काई का प्रयोग किया है। उन्होंने बताया कि शहर के कई जगहों के नालों से काई को एकत्र किया गया है। अलग-अलग काई से ईंधन बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस ईंधन का प्रयोग सभी डीजल गाड़ियों में किया जा सकेगा। अभी हम लोग पहली स्टेज पर कम कर रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि आने वाले कुछ महीनों में ही हमें बड़ी उपलब्धि हासिल होगी, क्योंकि अभी तक जो भी परिणाम मिले हैं वह काफी सुखद है।
मेटा मेटाबॉलिज्म इंजीनियरिंग और बायोकेमिकल टेक्निक का कर रहे प्रयोग
डॉ. राजपुरा ने बताया कि इस ईंधन को बनाने के लिए हम लोग मेटाबॉलिज्म इंजीनियरिंग और बायोकेमिकल टेक्निक का प्रयोग कर रहे हैं। इस टेक्निक से हम सबसे पहले जो काई लाते हैं, उसे प्यूरिफाई करते हैं। इसके बाद ईंधन बनाने की प्रक्रिया शुरू करते हैं। ईंधन को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए इसमें कई प्रकार के ऐसे केमिकल प्रयोग किए जा रहे हैं, जिससे कि वायु प्रदूषित ना हो। इस ईंधन को बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज में प्रयोग कर सके इसको ध्यान में रखते हुए भी काम किया जा रहा है, क्योंकि अभी जो ईंधन प्रयोग किया जा रहा है उसका सारा धुआं वायु में मिलकर वातावरण को जहरीला बनाने का काम कर रहा है।
बायो हाइड्रोजन ईंधन तैयार कर रहे हैं
डॉ. राजपुरा ने बताया कि हम लोग इस काई के माध्यम से बायो हाइड्रोजन ईंधन को तैयार कर रहे हैं। यह ईंधन सभी डीजल वाहनों के साथ-साथ हवाई जहाज में भी प्रयोग किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि अपनी जलवायु में परिवर्तन बहुत तेजी से होता है। इसको देखते हुए भी यह बायोफ्यूल्स बहुत कारगर साबित होगा।
प्रदूषण के मामले में भारत 13वें नंबर पर
आपको बताते चले कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इस साल मई में प्रदूषित देश को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक टॉप 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत 13वें स्थान पर था। WHO ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि इन देशों में PM 2.5 कि सालाना सघनता सबसे ज्यादा है। प्रदूषण में शामिल वह सूक्ष्म तत्व है जिसे मानव शरीर के लिए सबसे खतरनाक बताया जाता है।