आखिर भारत को वापस मिल गया छत्रपति शिवाजी महाराज का ऐतिसाहिक ‘वाघ नख’

# ## International

(www.arya-tv.com)नई दिल्ली:हिन्दू हृदय सम्राट के तौर पर पूरे देश में पूजे जाने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज का ऐतिसाहिक ‘वाघ नख’ आखिर भारत को वापस मिल ही गया। एक लंबे इंतजार के बाद पुरात्तव विभाग के अधिकारी 17 जुलाई को शिवाजी महाराज के इस ‘वाघ नख’ को लेकर लंदन से मुंबई एयरपोर्ट पहुंचे ।आपको बता दें कि छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता की कहानी दुनिया भर में प्रचलित है. लेकिन उनके शौर्य गाथा में ‘वाघ नख’ का एक अलग ही महत्व है. ‘वाघ नख’ से ना सिर्फ शिवाजी महाराज ने अपने दुश्मनों को धारासायी किया था, बल्कि कई बार छत्रपति शिवाजी की जान भी बचाई थी। इस ‘वाघ नख’ को भारत लाने के बाद अब इसे महाराष्ट्र के सतारा ले जाया जाएगा जहां 19 जुलाई से इसका प्रदर्शन किया जाएगा। चलिए आज हम आपको ‘वाघ नख’ के बारे में विस्तार से बताते हैं। आखिर ये ‘वाघ नख’ छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए क्यों था इतना खास।

‘वाघ नख’ आखिर होता क्या है ?

‘वाघ नख’ को अगर सरल शब्दों में समझें तो ये एक तरह का हथियार था, जो उस दौर में आत्मरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता था। ‘वाघ नख’ को विशेष तौर पर ऐसे डिजाइन किया गया था जो हथेली में लेते ही ऐसे फिट हो जाता था जिसे इसका इस्तेमाल करने वाला अपनी रक्षा में इस्तेमाल में ला सके। इस हथियार में खास तौर पर चार नुकीली छड़ें होती हैं जो एक बाघ के पंजे की तरह दिखती थी। इससे जब दूसरे पर वार किया जाता था तो इसके वार से सामने वाले की मौत तक हो जाती थी. ये हथियार बेहद घातक माना जाता था।

आखिर लंदन कैसे पहुंचा ‘वाघ नख’?

अब ऐसे में आपके मन में ये सवाल उठ सकता है कि जब यह ‘वाघ नख’ छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रमुख हथियारों में से एक था तो ये आखिर लंदन पहुंचा कैसे ? दरअसल, हुआ कुछ यूं था कि 18वीं शताब्दी में शिवाजी महाराज का यह ‘वाघ नख’ को उस समय मराठा साम्राज्य की राजधानी सतारा में रखा गया था। 1818 में मराठा पेशवा ने इसे ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी को गिफ्ट के तौर पर दे दिया था। 1824 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी का यह अधिकारी भारत से लंदन लौटा तो ये अपने साथ ‘वाघ नख’ को लेकर चला गया। लंदन पहुंचने के कुछ वर्षों बाद इसे वहां की एक म्यूजियम में रखा गया।

‘वाघ नख’ का शिवाजी महाराज ने किया था सबसे पहले इस्तेमाल?

कहा जाता है कि ‘वाघ नख’ को एक हथियार के तौर पर सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही किया था। ‘वाघ नख’ को ऐसे तैयार किया गया था कि इसके एक ही वार से किसी को भी मौत के घाट उतारा जा सके। ‘वाघ नख’ के दोनों तरफ एक रिंग होती है. इसे हाथ की पहली और चौथी उंगली में पहनकर ठीक तरह से हथेली में फिट किया जाता था।

इसी ‘वाघ नख’ से शिवाजी ने अफजल खान का चीरा था पेट

इतिहासकारों की मानें तो 1659 में शिवाजी महाराज ने अफजल खान का पेट चीर दिया था। अफजल खान बीजापुर सल्तन के सेनापी थे। शिवाजी महाराज ने जब अफजल खान का पेट चीरा था तो उस दौरान बीजापुर सल्तनत के प्रमुख आदिल शाह और शिवाजी महाराज के बीच युद्ध चल रहा था। इसी युद्ध के दौरान जब अफजल खान ने छल से शिवाजी को मारने की योजना बनाई थी और उन्हें मिलने के लिए बुलाया था।शिवाजी महाराज ने अफजल खान के इस निमंत्रण को स्वीकार किया था। इसी मुलाकात के दौरान जब अफजल खान ने शिवाजी को गल लगाने के साथ उनके पीठ में खंजर से हमला करने की कोशिश की, तो पहले से ही सतर्क शिवाजी महाराज ने इसी ‘वाघ नख’ से अफजल खान का पूरा पेट एक ही वार में चीर दिया था। अफजल खान को मौत के घाट उतारने के बाद से ही छत्रपति शिवाजी महाराज का यह ‘वाघ नख’ शौर्य का प्रतीक बना हुआ है।