ऋषभ शेट्टी ने एक बार फिर कांतारा वर्ल्ड में जादू बिखेरा है, उनका लेखन, निर्देशन और अभिनय, सब दमदार है साथ ही गुलशन देवैया, रुख्मिणी वसंत और जयराम का अभिनय भी दमदार रहा है। तीन साल पहले आई कंतारा सिर्फ 16 करोड़ में बनी थी, इस बार निर्माता ने ऋ षभ के लिए 125 करोड़ का बजट रखा था और यह पर्दे पर भी साफ दिखाई देता है। एक बार तो हमें यह एहसास होता है कि इतने बजट में इतनी बढ़िया फिल्म कैसे बन सकती है। फिल्म के दृश्य बेहद शानदार हैं, हर फ्रेम खूबसूरत लगता है। तकनीकी रूप से भी फिल्म एकदम सही है। बीजीएम और गाने कमाल के हैं, मैंने कई सालों बाद किसी फिल्म में शास्त्रीय संगीत सुना है। मुझे ये कहानी बहुत पसंद आई, ऋ षभ इसी चीज को भारतीय सिनेमा में लेकर आए।
कहानी वहीं से आगे बढ़ती है, जहां कंतारा खत्म हुई थी और फ्लैशबैक में हमें कदंब राज्य दिखाया जाता है। कदंब राज्य का राजा, जो कंतारा वन चाहता है, लेकिन वहीं मर जाता है, फिर उसका बेटा (जयराम) वहां वापस जाने की हिम्मत नहीं करता। जब बेटा बड़ा होता है तो वो राजा बनता है और उसके एक बेटा (गुलशन देवैया) और एक बेटी (रुखमणी वसंत) होती है। बेटे (गुलशन देवैया) को राजगद्दी पर बिठाकर राजा बना दिया जाता है, लेकिन जो बेटा राजा है, वो अय्या के साथ ही रहता है। यहां, कोई एक नवजात शिशु बर्मी (ऋ षभ शेट्टी) को कंतारा वन में छोड़ देता है और वहां एक महिला, जिसके कोई बच्चे नहीं हैं, उसकी देखभाल करती है। फिल्म शुरू से अंत तक बांधे रखती है, एक भी फ्रेम हमें बोर नहीं करता। एक्शन कोरियोग्राफी कसी हुई है, युद्ध भी दिखाया गया है, वहां तकनीकें भी अच्छी थीं। हमें यह भी देखने को मिलता है कि उस समय के लोग कैसे धीरे–धीरे आगे बढ़ रहे थे। स्क्रीन प्ले को उस समय को ध्यान में रखकर और हर चीज को ध्यान में रखकर दिखाया गया है।