(www.Arya Tv .Com) उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब समेत कई राज्यों के किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं. 13 फरवरी से शुरू हो रहे किसानों के ‘दिल्ली चलो’ (Delhi Chalo) आंदोलन में 150 से ज्यादा संगठन शामिल हैं. 2020-21 में जब किसान आंदोलन हुआ था, तब किसानों को दिल्ली में घुसने की इजाजत मिल गई थी, लेकिन इस बार पहले से धारा 144 लगा दी गई है. दिल्ली की सारी सीमाएं सील कर दी गई हैं. इस बार के किसान आंदोलन (Farmers Protest 2.0) के चेहरे भी बदल गए हैं.
इस बार किसानों की जो सबसे प्रमुख मांग है वह एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य से जुड़ी है. किसानों की मांग है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी दी जाए और सभी फसलों को एमएसपी के दायरे में लाया जाए. इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल की खरीद को अपराध घोषित किया जाए.
आखिर क्या है एमएसपी? (What is MSP or Minimum Support Price)
एमएसपी यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस (Minimum Support Price) या न्यूनतम समर्थन मूल्य. MSP वह दर है जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है. यह किसानों की उत्पादन लागत से कम से कम डेढ़ गुना अधिक होती है. केंद्र सरकार फसलों की एक न्यूनतम कीमत (Crop Rates) तय करती है. किसान को अपनी फसल की एमएसपी (MSP) के तहत निर्धारित कीमत मिलती ही मिलती है, चाहे बाजार में दाम जो हो.
इसको और सरल शब्दों में कहें तो मान लीजिये कि किसी फसल की MSP 20 रुपये तय की गई है, और बाजार में वो फसल 15 रुपये में बिक रही है तो भी सरकार, किसानों से उस फसल कों 20 रुपये में ही खरीदेगी.
कब शुरू हुई MSP?
केंद्र सरकार ने साल 1966-67 में पहली बार एमएसपी (Minimum Support Price) पेश किया गया था. ऐसा तब हुआ जब स्वतंत्रता के समय भारत को अनाज उत्पादन में बड़े घाटे का सामना करना पड़ा. तब से लगातार एमएसपी की व्यवस्था चल रही है. 60 के दशक में सरकार ने सबसे पहले गेहूं पर एमएसपी की शुरुआत की ताकि किसानों से गेहूं खरीद कर अपनी पीडीएस योजना या राशन के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों में बांट सके.
कितनी फसलों पर मिलती है एमएसपी?
केंद्र सरकार हर फसल पर एमएसपी नहीं देती. वर्तमान में कुल 23 फसलों पर एमएसपी या न्यूनतम समर्थन मूल्य देती है. इन फसलों को ‘अधिदिष्ट फसल’ (Mandated Crops) की कैटेगरी में रखा गया है. इनमें 14 खरीफ फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं. इन फसलों के अलावा गन्ने के लिये ‘उचित और लाभकारी मूल्य’ (FRP) की सिफारिश भी की जाती है.
कौन सी हैं वो फसलें?
अनाज: धान, गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, जौ
दाल: चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर,
तिलहन: सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, तिल, नाइजर या काला तिल, कुसुम
अन्य फसल – गन्ना, कपास, जूट, नारियल
कौन तय करता है MSP?
कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले ‘कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेस’ और दूसरी संस्थाएं एमएसपी से जुड़ा सुझाव देती हैं. एमएसपी को लागू करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की ही होती है. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) समय कृषि लागत औप मूल्य आयोग द्वारा कृषि लागत समेत विभिन्न कारकों पर भी विचार किया जाता है.
क्या हर किसान को मिल रहा है लाभ?
केंद्र सरकार भले ही एमएसपी तय करती हो, लेकिन देश को सभी किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. 2014 में बनी शांता कुमार कमेटी के मुताबिक देश के सिर्फ 6 फीसद किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिल पाया है. इसके अलावा बिहार जैसे कई राज्यों में एमएसपी की व्यवस्था लागू ही नहीं है. बिहार में पैक्स (प्राइमरी एग्रीकल्चर कॉपरेटिव सोसाइटीज) के जरिये अनाज खरीद होती है.
इस बार किसानों का नेता कौन?
2020-21 में जो किसान आंदोलन हुआ था, उसकी अगुवाई राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चढूनी जैसे दो प्रमुख नेता कर रहे थे. इस बार टिकैत और चढूनी दोनों आंदोलन से गायब हैं. पंजाब के किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल और सरवन सिंह पंढेर इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं. दल्लेवाल
किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के नेता हैं.