सख्त लॉकडाउन और कर्फ्यू से एक साल में कश्मीर में पर्यटन कम हुआ, नौकरियां गईं

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  • कश्मीर की डल झील पर शिकारे चलाने वाले सैकड़ों लोग एक साल से बेरोजगार, कोरोनावायरस ने आखिरी उम्मीद भी खत्म कर दी
  • 5 अगस्त से 3 दिसंबर 2019 के बीच कश्मीर की इकोनॉमी को 17,878 करोड़ का नुकसान, कोरोना लॉकडाउन के दो महीनों में 8 हजार करोड़ से ज्यादा का घाटा
  • 370 हटने के बाद कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए 412 लोगों को पीएसए के तहत गिरफ्तार किया, इनमें तीन पूर्व मुख्यमंत्री भी शामिल
  • कश्मीर में आतंकी तंजीमों की भर्ती में भी कमी आई, इस साल 30 जून तक 74 कश्मीरी आतंकी बने, कारण ये है कि अब आतंकी कमांडर एनकाउंटर में मारे जा रहे

(www.arya-tv.com) ‘कश्मीर में अभी जैसे हालात हैं, वैसे कभी नहीं हुए।’ ये कहना है इस्माइल का। इस्माइल बचपन से ही डल झील में नाव चलाने का काम कर रहे हैं। स्थानीय भाषा में इन नावों को शिकारा या हाउसबोट भी कहते हैं। लेकिन, पिछले एक साल से इस्माइल और यही काम करने वाले सैकड़ों लोगों के पास कोई काम नहीं है।

पिछले साल 5 अगस्त को सरकार ने जम्मू-कश्मीर को खास दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। उससे दो दिन पहले ही केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी कर बाहरी लोगों को कश्मीर से निकलने के आदेश दे दिए थे। 3 अगस्त तक यहां की डल झील टूरिस्ट से आबाद थी, लेकिन सरकारी आदेश आते ही हजारों की तादात में टूरिस्ट, स्टूडेंट्स घाटी छोड़कर चले गए थे।

एक अनुमान के मुताबिक, 5.20 लाख टूरिस्ट या बाहरी लोग घाटी छोड़कर चले गए थे। इसने कश्मीर की इकोनॉमी को बर्बाद कर दिया। हालांकि, तीन महीने बाद सरकार ने एडवाइजरी वापस ले ली, लेकिन उसके बाद भी ये टूरिस्ट को लुभाने में नाकाम ही रहा।

इस्माइल जैसे लोगों को हालात सुधरने की थोड़ी उम्मीद भी थी, लेकिन फिर कोरोनावायरस की वजह से लॉकडाउन ने इस उम्मीद को भी खत्म कर दिया।

कोरोनावायरस और उससे लगे लॉकडाउन की वजह से डल झील पर शिकारा चलाने वाले लोगों को जो नुकसान हुआ, उसके लिए भी सरकार ने आर्थिक मदद करने का ऐलान किया था। सरकार की तरफ से लगातार तीन महीने तक हर शिकारे वाले को हर महीने 1 हजार रुपए देने की घोषणा हुई थी। हालांकि, नाव चलाने वालों का कहना है कि वो जिस भयानक बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं, उससे निपटने के लिए ये मदद नाकाफी है।

इस्माइल का कहना है, ‘जो व्यक्ति हर दिन 1 हजार रुपए से ज्यादा की कमाई करता था, उसे हर महीने 1 हजार रुपए की मदद देने का क्या मतलब है?’

हाउसबोट वेलफेयर ट्रस्ट एक चैरिटी संस्था है। ये चैरिटी हर महीने उन 600 शिकारे वालों की मदद करती है, जिनकी कमाई का जरिया सिर्फ टूरिज्म ही था। ट्रस्ट में वॉलेंटियर के रूप में काम करने वाले तारिक अहमद का कहना है कि हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।

तारिक बताते हैं, ‘जो लोग पहले अच्छी कमाई कर रहे थे, अब उनकी आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई है। ऐसे में हम उन परिवारों की मदद कर रहे हैं। उनकी पहचान उजागर न हो, इसके लिए हम उन्हें रात में रिलीफ मटैरियल पहुंचाते हैं।’

  • कालीन का काम भी पूरी तरह से ठप
    इसके अलावा अनुच्छेद 370 पर सरकार के फैसले के बाद लगे लॉकडाउन ने न सिर्फ कश्मीरियों को प्रभावित किया, बल्कि उनकी आजीविका को भी प्रभावित किया। खासतौर से टूरिज्म और हैंडिक्राफ्ट सेक्टर को।

श्रीनगर से 25 किमी दूर एक गांव है। गांव का नाम है रख दसलिपोरा। इस गांव को कालीन बनाने वालों के गांव के नाम से भी जाना जाता है। यहां के ज्यादातर कार्पेट हैंडलूम्स अब बंद हो चुके हैं और कालीन बनाने वाले बुनकर भी इस काम को छोड़कर मजदूरी करने को मजबूर हैं।

कालीन बनाने वाले बुनकरों का कहना है कि पहले अनुच्छेद 370 और उसके बाद कोरोनावायरस ने यहां की हजारों करोड़ों की कार्पेट इंडस्ट्री को बड़ा झटका दिया है।