संवाद को बेवड़ों की भाषा देते हुए आपका सनातन-बोध नहीं जागा :मिथिलेशनंदिनी शरण

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(www.arya-tv.com)  सनातन धर्म के प्रसिद्ध चिंतक और हनुमत निवास के महंत डाक्टर मिथिलेशनंदिनी शरण ने आदिपुुरुष के डायलाग के विवाद को लेकर उसके लेखक मनोज मुंतशिर के माफी मांगने को अस्वीकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि सहानुभूति का नाटक बन्द करके अपराध स्वीकार करना सीखें, वही प्रायश्चित का प्रथम चरण है।

मिथिलेशनंदिनी शरण ने आगे लिखा है कि बोली का एक बड़ा अर्थपूर्ण शब्द है ‘थेंथर’, इसका अर्थ समझते हैं ? और..हाँ यदि अभी भी इस कुत्सित प्रयास के पक्ष में हैं तो स्पष्ट बताइए कि अपना तर्क कैसे रखना पसन्द करेंगे और पार न पाने पर कौन सा दण्ड अपने लिए चुनेंगे ?

उन्होंने मनोज को ट़विटर पर जबाब देते हुए कहा है कि युगों ने जिनको मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजा, आदि कवि ने धर्म विग्रह कहा, गोस्वामी जी ने परमार्थ रूप ब्रह्म , उनके चरित्र को हॉली वुड की घटिया प्रतिकृति बनाते हुए आप हिचके नहीं। जिन हनुमान् को पीढियां बुद्धिमतां वरिष्ठम् कहती आई हैं उनके संवाद को बेवड़ों की भाषा देते हुए आपका सनातन-बोध जागा नहीं।

डॉ मिथिलेशनंदिनी शरण आगे कहते हैं कि अपने बचाव में श्रीराम कथा की लोक-परम्परा में ‘दादियों-नानियों’ की भाषा को लांछित करते हुए मातृत्व का मान स्मरण नहीं हुआ। अभी भी आपका वही दम्भी स्वर अपने पक्ष में ‘अनगिनत तर्क’ देने को आतुर है, तो बताइए ये तर्क वाद कहाँ करना चाहेंगे ट्विटर पर या कहीं और ?

उड़िया की एक कहानी के जरिए मुंतशिर को सीता के मामले में ललकारा

उन्होंने लिखा कि दशकों पूर्व एक उड़िया कहानी का हिंदी अनुवाद पढ़ा था। कहानी में एक चित्रकार एक मजदूर स्त्री को अपने सामने इस आग्रह के साथ बैठाता है कि वह उसको देखते हुए कोई चित्र बनाना चाहता है। प्रथम दिवस के रेखांकन के उपरान्त जब चित्रकार उस मजदूर स्त्री को उसकी एक दिन की मजदूरी देता है तो अधिक रुपए देखकर वह स्त्री चकित हो जाती है। वह पूछती है कि केवल बैठे रहने के लिए इतने रुपए क्यों ? चित्रकार उस स्त्री को प्रभावित करते हुए कहता है कि तुम नहीं जानतीं, मैं अशोक वाटिका में बैठी विरहिणी सीता का चित्र बना रहा हूँ, तुम्हारी भाव भंगिमा और देह दशा उनके अनुरूप है, मेरा यह चित्र लाखों में बिकेगा।

मजदूर स्त्री जब यह जान पाती है कि चित्रकार उसकी तुलना देवी सीता से कर रहा है तो वह हाथ में लिए हुए रुपए फेंक देती है। वह चित्रकार से कहती है कि मैं यह पाखण्ड कदापि नहीं कर सकती। मेरा शरीर, मेरा जीवन और यहाँ तक कि मेरा दुख, कुछ भी मेरे पास ऐसा नहीं है जो देवी सीता की तुलना कर सके। आपको देवी सीता के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। चित्रकार ने उसे बहुत रोकना चाहा पर वह चित्रकार के इस प्रयास की भर्त्सना करती हुई बाहर चली गई।

उन्होंने आगे कहा कि यह कथा #आदिपुरुष के निर्माताओं ने न पढ़ी होगी। पढ़कर भी इसका मर्म वे समझ पायेंगे इसमें सन्देह है। बिकाऊ कंटेंट खोजते इन लोगों ने नैतिकता बेचकर शब्द खरीद लिए हैं। इनसे किसी मूल्यबोध की अपेक्षा नहीं। आश्चर्य तो इसपर है कि सनातन की दुहाई देकर सहानुभूति की भिक्षा माँग रहे @manojmuntashir कितने निर्लज्ज भाव से अपने अपराध की रक्षा में लगे हैं। इस ढिठाई की सही प्रतिक्रिया तो @ajeetbharti जी ही दे रहे हैं।