(www.arya-tv.com)कभी-कभी हम सुनते हैं कि दिल टूटने से किसी व्यक्ति की मौत हो गई। लेकिन मेडिकल साइंस में इसे ‘टैकोत्सुबो कार्डियोमायोपैथी’ या ‘ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम’ से मौत कहा जाता है। इस सिंड्रोम में हृदय कोशिकाओं के दो अणुओं माइक्रोआरएनए -16 और माइक्रोआरएनए -26 ए का स्तर बढ़ जाता है। ये अवसाद, चिंता और तनाव जुड़े होते हैं।
इससे हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। साथ ही बाएं हृदय कक्ष का आकार बदल जाता है। इसका कारण जीवन की तनावपूर्ण घटनाएं होती हैं। लंदन इंपीरियल कॉलेज के अध्ययन में यह दावा किया गया है। यह शोध कार्डियोवास्कुलर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस शोध से दिल टूटने के इलाज का बेहतर मार्ग खुलेगा। इससे आगे कई मौतें रोकी जा सकेंगी।
‘ब्राेकन हार्ट सिंड्रोम’ से सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ होती है। इसके अलावा दिल की धड़कन रुक सकती है। इस स्थिति को पहली बार जापान में 1990 में पहचाना गया था। अध्ययन के मुताबिक ब्रिटेन में हर साल हजारों लोग इस सिंड्रोम से गुजरते हैं और इसका सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर होता है।
इस सिंड्रोम का फिलहाल कोई इलाज नहीं है
शोध में शामिल प्रोफेसर सियान हार्डिंग कहते हैं, ‘ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम एक गंभीर स्थिति है। अब भी इसके कई रहस्य सामने नहीं आए हैं।’ ब्रिटिश हार्ट फाउंडेशन के एसोसिएट मेडिकल डायरेक्टर मेटिन अवकिरन ने कहा, ‘फिलहाल इस सिंड्रोम के बार-बार के हमले को रोकने का कोई इलाज नहीं है।’