(www.arya-tv.com)उत्तर प्रदेश में बलरामपुर जिले से 28 किलोमीटर की दूरी पर तुलसीपुर क्षेत्र में स्थित 51 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ देवीपाटन का अपना एक अलग ही स्थान है। नवरात्र के दौरान यहां दूर दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस कोरोना महामारी के बीच भी भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिली। लोग सुबह से ही मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच रहे थे। हालांकि इस दौरान न तो कहीं सोशल डिस्टेंसिंग दिखाई दी और न ही ज्यादातर लोग मास्क लगाए नजर आए।
शनिवार की सुबह 4 बजे से ही शक्ति पीठ देवीपाटन पर श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। यहां पहुंचने के लिए प्रमुख साधन रेलवे को माना जाता है लेकिन रेलवे की सुविधा बन्द होने के कारण लोग अपने साधन जीप, कार व बसों से यहां पहुंच रहे है जिससे मंदिर के आस पास काफी भीड़ है। भोर के वक्त से लोग लाइन में लगकर माँ पाटेश्वरी के दर्शन के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे है।
देवीपाटन के पीठाधीश्वर मिथिलेश नाथ योगी द्वारा भोर के वक्त मा पटेश्वरी के दर्शन पूजन के बाद सभी भक्तों के लिए मंदिर में जाने के द्वार खोल दिये गए। महंथ मिथलेश नाथ के द्वारा हवन कोरोना गाइडलाइंस के अनुसार हवन पूजन किया गया।
शक्तिपीठ देवीपाटन के मुख्य द्वार पर थर्मल स्क्रीनिंग के बाद ही मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है। हालांकि दूर दराज से आने वाले तमाम लोग कोरोना जैसी भयंकर महामारी के प्रति लापरवाह दिख रहे है। मंदिर आये करीब 30% लोग न तो मास्क लगाए हुए हैं न ही अपने मुह और नाक को ढकते हुए शोशलडिस्टेंसिंग पालन ही कर रहे हैं जिसके चलते कोरोना संक्रमण का खतरा बना हुआ है।
जानिए क्या है शक्तिपीठ देवीपाटन का इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी देवी सती के पिता दक्ष प्रजापति द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था लेकिन उस यज्ञ में भगवान शंकर को आमंत्रित तक नही किया गया जिससे क्रोधित होकर व अपने पति भगवान शंकर के हुए अपमान के कारण यज्ञ कुण्ड में अपने शरीर को समर्पित कर दिया था।
इस बात की सूचना जब कैलाश पति भगवान शंकर को हुई तो वह स्वयं यज्ञ स्थल पहुंचे और भगवान शिव ने अत्यंत क्रोधित होकर देवी सती के शव को अग्नि से निकाल लिया और शव को अपने कंधे पर लेकर ताण्डव किया। जिसे पुराणों में शिव तांडव के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव के तांडव से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई जिसके बाद भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को विच्छेदित कर दिया। जिससे भगवान शिव का क्रोध शांत हो सका।
विच्छेदन के बाद देवी सती के शरीर के भाग जहां जहां गिरे वहां वहां शकितपीठों की स्थापना हुई। बलरामपुर जिले के तुलसीपुर क्षेत्र में ही देवी सती का वाम स्कन्द, पट के साथ यहीं गिरा था। इसीलिए इस शक्तिपीठ का नाम देवीपाटन पड़ा और यहां विराजमान देवी को मां पाटेश्वरी के नाम से जाना जाता है।
