
चुसे हुए गन्ने को नींबू के साथ कोल्हू में डालें। बार बार कई बार, पलट पलट के इतनी बार कि बूंद बूंद भी रस गिरना बंद हो जाए। उसके बाद उस फोक्कल को हांथ में उठाएं और फिर उसकी स्थिति का आंकलन करें। यकीन मानिए…यूपी में उस फोक्कल से ज्यादा बदतर स्थिति पत्रकारों की पाएंगे। 10 प्रतिशत पत्रकारों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें। इसमें 5 प्रतिशत वो पत्रकार हैं जो टॉप पोजीशन पर हाई पैकेज पर काम कर रहे हैं और 5 प्रतिशत वो पत्रकार हैं जो पूर्व में इतना धन जमा कर चुके हैं कि 10—20 साल कोरोना संकट में भी बिना घर से निकले आसानी से मस्ती में काट सकते हैं।
बाकी बचे 90 प्रतिशत पत्रकार….ओह! माफी चाहेंगे, पत्रकार नहीं मजदूर कहिए। …क्योंकि उनकी जिंदगी दिहाड़ी मजदूर से कम नहीं। अगर महीने की सैलरी…अजी माफी…सैलरी नहीं मजदूरी कहिए। …बंद हो जाती है तो घर का दूध पानी तक बंदी के कगार पर आ जाता है। अब लगभर 5 महीने कोरोना के हो चले हैं। छोटे, मंझिले अखबारों को विज्ञापन कम हुआ तो पहले मालिकों ने छपाई बचाने के लिए ई पेपर शुरू किया और अब छटनी प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस प्रक्रिया में तमाम छोटे, मंझिले, बड़क्के, नन्हके हर प्रकार के पत्रकारों की देहाड़ी प्रक्रिया खत्म होने वाली है। बहरहाल अखबार, टीवी, इंटरनेट पर, अमीर गरीब, मिडिल क्लास सबकी कोरोना ने कमर तोड़ दी है, लेकिन अभी तक कुछ एक माध्यमों को छोड़ दें बाकी सबकी नजरों में पत्रकार हीरो की तरह डटा हुआ है।
इंटरनेट, अखबार चैनलों में पत्रकारों की अभी तक कमर नहीं टूटी है। कोरोना और व्यस्तताओं के चलते बड़े बड़े पत्रकार संगठन , नेता इस विषय को लेकर अभी तक सरकार और जिम्मेदारों को ज्ञापन स्यापन नहीं दे पाए हैं। इसको लेकर एक संगठन से हमारी बात भी हुई तो संगठन के उच्च पदाधिकारियों ने कहा कि इसको लेकर हमने सर्वे करा लिया है। ज्यादातर पत्रकार अभी दोनों टाइम खाना खा रहे हैं इसलिए अभी ज्ञापन स्यापन थोड़ा जल्दबाजी होगी। बहरहाल हमारी बातचीत फरहा हो गई है। आप सभी किस भी प्रकार की उम्मीद न करें। खर्चे और कम करें। कोरोना अभी जाने वाला नहीं है। बचे रहें। खुद को और अपने परिवार को बचाकर रखें। आप सभी पर बहुत जिम्मेदारियां हैं।