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अभिषेक राय
दुनिया में तकनीक की बादशाहत को लेकर चल रही खींचतान के बीच चीन ने एक ऐसी कामयाबी हासिल की है, जिसने पश्चिमी देशों की नींद उड़ा दी है। चीन के शेंझेन की एक हाई-टेक लैब में वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन का प्रोटोटाइप (नमूना) तैयार कर लिया है, जो दुनिया की सबसे एडवांस सेमीकंडक्टर चिप बना सकती है। यह वही तकनीक है जिसे रोकने के लिए अमेरिका ने कई वर्षों से पूरी ताकत झोंक रखी थी।
‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ से हो रही तुलना
इस प्रोजेक्ट की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी तुलना यूएस के परमाणु बम बनाने वाले ‘मैनहैटन प्रोजेक्ट’ से हो रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस मिशन में नीदरलैंड की दिग्गज कंपनी ASML के पूर्व इंजीनियरों को शामिल किया गया है। इन विशेषज्ञों को फर्जी नामों और नकली आईडी कार्ड के साथ लैब में रखा गया है ताकि उनकी पहचान उजागर न हो सके।
क्या है यह तकनीक और क्यों है खास?
इस मशीन को EUV (एक्सट्रीम अल्ट्रावॉयलेट लिथोग्राफी) कहा जाता है। यह तकनीक इंसानी बाल से भी हजारों गुना पतली सर्किट लाइनों को सिलिकॉन की प्लेट पर उकेरती है। वर्तमान में इस तकनीक पर केवल डच कंपनी ASML का कब्जा है। जितनी बारीक सर्किट होगी, चिप उतनी ही पावरफुल होगी। चीन की यह मशीन फिलहाल अल्ट्रावॉयलेट लाइट पैदा करने में सफल रही है, हालांकि अभी इससे वर्किंग चिप निकलना बाकी है।
हुवावे निभा रहा है मुख्य भूमिका
चीन की दिग्गज टेक कंपनी हुवावे (Huawei) इस पूरे प्रोजेक्ट की धुरी बनी हुई है। बताया जा रहा है कि कंपनी के वैज्ञानिक और इंजीनियर हफ्ते भर लैब में ही सोते हैं और उनका बाहरी दुनिया से संपर्क पूरी तरह कटा रहता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय प्राथमिकता में रखा है ताकि चिप के मामले में अमेरिका पर निर्भरता को पूरी तरह खत्म किया जा सके।
चुनौतियां अभी बाकी हैं
भले ही चीन ने प्रोटोटाइप बना लिया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसे पूरी तरह वर्किंग कंडीशन में लाने में अभी समय लगेगा। चीन का लक्ष्य 2028 तक इससे चिप उत्पादन शुरू करना है, लेकिन जानकारों के मुताबिक 2030 तक का समय अधिक वास्तविक लगता है। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने चीन को एडवांस पार्ट्स बेचने पर पाबंदी लगा रखी है, इसलिए चीन पुराने मशीनों के पार्ट्स और सेकंड-हैंड मार्केट से सामान जुटाकर अपना काम चला रहा है।
