चीन ने कैसे जीती वायु प्रदूषण के खिलाफ घनघोर जंग, अब क्यों वहां नहीं होता स्मॉग, दिखने लगा नीला आसमान

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(www.arya-tv.com)अभी सर्दियां शुरू भी नहीं हुई हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर दिल्ली-एनसीआर (Delhi NCR) में वायु प्रदूषण (Air Pollution) यानि जहरीली हवा का संकट बढ़ने लगा है. सांस लेना दूभर होने जैसे-जैसे जाड़े के दिन आएंगे, आसमान में स्मॉग (Smog) और जहरीली हवा का प्रकोप भी गहराएगा. कभी चीन (China) में हवा की क्वालिटी (Air Quality) की स्थिति हमसे भी कहीं ज्यादा खराब थी. लेकिन चीन इससे जिस तरह निपटा है. वो वाकई हैरतअंगेज तो है ही और हमें सीखना भी चाहिए.

पांच छह साल पहले तक चीन में वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर थी कि सर्दियों में स्मॉग से आसमान नजर आना बंद हो जाता था. चीन में कई दिनों के लिए स्कूल बंद कर दिये जाते थे. कई शहरों में वायु प्रदूषण के चलते सूरज नहीं दिखता था. बीजिंग का हर शख्स मास्क पहनकर घूमता नजर आता था. अब चीन में ये हाल नहीं है. दुनियाभर में चीन के वायु प्रदूषण की आलोचना होने लगी थी. ऐसे में ये सवाल जाएज है कि चीन ने ये सब कैसे कर दिया.पिछले छह सालों में चीन में PM2.5 (पार्टिकुलेट मैटर 2.5) एक तिहाई से कम हो चुका है. दरअसल पार्टिकुलेट मैटर का मतलब है हवा में मौजूद खतरनाक बारीक कण. ये जब 2.5 से ज्यादा हो जाता है तो हवा में जहरीली तत्व बढ़ने लगते हैं. मुख्य तौर पर पार्टिकुलेट मैटर 2.5 बेहद छोटे कण होते हैं. वो मनुष्य के बाल की चौड़ाई से 30 गुना छोटे होते हैं. ये हमारे फेफड़े के अंदर के हिस्से में बैठ जाते हैं.

यहां ये भी जानना जरूरी थी कि वर्ष 2012 तक चीन के 90 प्रतिशत शहरों की आबोहवा निर्धारित मानकों से ज्यादा थी. 74 बड़े शहरों में केवल आठ शहरों में ही वायु प्रदूषण निर्धारित स्तर से कम था. वहां वायु प्रदूषण से हर साल पांच लाख लोगों की मौत समय से पहले हो जाती थी. ऐसे में वो स्थिति आ गई जब चीन की सरकार ने तय किया कि अब तो कुछ करना ही होगा.

चीन की सरकार ने क्या किया
चीन ने वर्ष 2013 में नेशनल एयर क्वालिटी एक्शन प्लान लागू किया. सरकार ने करीब 19 हजार करोड़ रुपए की योजनाएं बनाईं. इस पर युद्ध स्तर पर अमल शुरू कर दिया. हालांकि जब इसे लागू किया गया तो लोगों को खासी दिक्कतें हुईं. इसकी बहुत आलोचना भी हुई. लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई. उस समय चीन में ये कदम उठाए गए

– कारखानों को उत्तर चीन और पूर्वी चीन से दूसरे स्थानों पर ले जाया गया या बंद कर दिया गया
– बहुत से कारखानों में उत्पादन कम किया गया
– कोयले का उपयोग बहुत कम कर दिया गया
– बेकार वाहनों को सड़कों से हटाया गया. बीजिंग, शंघाई और गुआंगझोऊ में सड़कों पर कारों की संख्या कम कर दी गई.

– कोयले से चलने वाले नए प्लांट्स को मंजूरी देनी बंद कर दी गई. अगर दी भी गई तो उन्हें बीजिंग और बड़े शहरों से दूर रखा गया.
– एयर प्यूरीफायर पर जोर देना शुरू किया गया
– ताजी हवा के गलियारे बनाए गए, जिसमें बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण हुआ
– बड़े शहरों में लो कॉर्बन पार्क बनाए गए यानि वो इलाके जो कम कॉर्बन का उत्सर्जन करे
– चीन में औद्योगिक प्रदूषण सबसे ज्यादा था, लिहाजा उसे कंट्रोल करने की कोशिश भी उतनी ही ज्यादा की गई.
– सबसे ज्यादा जोर कोयले के इस्तेमाल को आधा से ज्यादा कम करने का था. कई कोयले की खदानें भी बंद कर दी गईं

घरों के चूल्हों का क्या हुआ
बीजिंग में 2013 से पहले 40 लाख से ज्यादा घरों, स्कूलों, अस्पतालों और आफिसों में कोयले का इस्तेमाल ईंधन के रूप में होता था. जाड़े से बचने के लिए वो सबसे मुफीद साधन था. सरकार ने एक झटके में इस पर रोक लगा दी. इसकी जगह घरों को नेचुरल गैस या बिजली हीटर मुहैया कराए गए. हालांकि ये इतना आसान नहीं था.

अब तक कितना काबू हो पाया है
ग्रीन पीस और दूसरी पर्यावरण से जुड़ी संस्थाओं का कहना है कि बीजिंग और चीन के अन्य शहरों में प्रदूषण में 50 फीसदी से ज्यादा कमी आ चुकी है. बीजिंग में अब नीला आसमान दिखने लगा है. स्कूलों का बंद होना बंद हो चुका है. लोग बगैर मास्क पहने घरों से निकलते हैं. सरकार ने इसके लिए एक नई पर्यावरण नियंत्रण संस्था भी बनाई है. जो किसी भी तरह की कड़ाई से नहीं हिचकती.

चीन में है दुनिया का सबसे बड़ा एयर प्यूरिफायर
इस प्यूरिफायर की ऊंचाई 100 मीटर है. चीन में ये प्यूरिफायर शानक्सी प्रांत के ज़ियान इलाके में मौजूद है. एक दिन में ये प्यूरिफायर एक करोड़ क्यूबिक मीटर स्वच्छ हवा को बाहर फेंकता है. दुनिया का ये सबसे बड़ा प्यूरिफायर चार भागों में काम करता है. पहले हिस्से में ये प्रदूषित हवा को कलस्टर के जरिए खींचता है. फिर इसमें मौजूद ग्रीन हाउस, सोलर एनर्जी से प्रदूषित वायु को गर्म करता है. टावर के ऊपरी हिस्से पर पहुंचने तक प्रदूषित हवा को कई स्तरों पर फिल्टर किया जाता है. इसके बाद प्रदूषित हवा स्वच्छ होकर दोबारा पर्यावरण में मिल जाती है.