(www.arya-tv.com) कानपुर देश की आजादी में लड़ाई लड़ने वाले शहीदों की स्थली रही है। उनकी निशानियां भी इस पुराने शहर में मौजूद हैं। चंद्रशेखर आजाद की आखरी निशानी, इस शहर में आज भी मौजूद है। चंद्रशेखर आजाद 1925 में जब काकोरी कांड के बाद फरार चल रहे थे। पुलिस और सीआईडी उनका पीछा कर रही थी। तब आजाद कानपुर में रहने वाले अपने मित्र कांग्रेस अध्यक्ष के यहां छिपने पहुंच गए।
आजाद भेष बदलने में माहिर थे
क्योंकि चंद्रशेखर आजाद भेष बदलने में माहिर थे। इसलिए उन्होंने वहां से अपने कपड़े बदल लिए और अपने मित्र के घर ही अपने कपड़े छोड़कर इलाहाबाद के लिए रवाना हो गया। अगले दिन इलाहाबाद में चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गए। लेकिन उनकी आखिरी निशानी उनकी 100 साल पुरानी टोपी कानपुर में आज भी सहेज कर एक लाइब्रेरी में रखी गई है।
लाइब्रेरी का इतिहास भी काफी पुराना
चंद्रशेखर आजाद की आखिरी टोपी मेस्टन रोड स्थित अशोक पॉलिटिकल लाइब्रेरी में सहेज कर रखी गई है। दरअसल चंद्रशेखर आजाद के मित्र अरोड़ा जी ने यह टोपी लाइब्रेरी की तिलक सोसाइटी को 2017 में धरोहर के रूप में रखने के लिए दी। लाइब्रेरी का इतिहास भी काफी पुराना है। यह लाइब्रेरी 1924 में बनाई गई थी। इसकी आधारशिला पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रखी थी और इसका उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। इसी लाइब्रेरी में चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी 100 साल पुरानी टोपी रखी हुई है।कानपुर के मेस्टन रोड स्थित अशोक पॉलिटिकल लाइब्रेरी के देखरेख करने वाले और तिलक सोसायटी के महामंत्री प्रदीप द्विवेदी ने बताया कि चंद्रशेखर आजाद की यह टोपी उनकी आखिरी निशानी है। क्योंकि यही टोपी पहने हुए उन्होंने काकोरी कांड किया था। इसके बाद वह जब अंग्रेजों से छिपछिपा कर भाग रहे थे। तभी ट्रेन से वह गंगा घाट स्टेशन पर उतर गए। इसके बाद अपने मित्र अरोड़ा जी जो पटकापुर में रहते थे, उनके घर पहुंच गए। उन्होंने बताया 1925 में नारायण प्रसाद अरोड़ा शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे।
यह टोपी उनकी आखिरी टोपी
उनके पुत्र चंद्रशेखर आजाद के मित्र थे। इसलिए आजाद जी उनके घर जाकर छुप गए। उन्होंने बताया क्योंकि चंद्रशेखर आजाद भेष बदलने में माहिर थे, वे अरोड़ा जी के कपड़े बदल कर भेष बदलकर, अपने कपड़े वहीं छोड़कर निकल गए। इसके अगले ही दिन चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद में शहीद हो गए। इसलिए चंद्रशेखर आजाद की यह टोपी उनकी आखिरी टोपी बताई जाती है। जिसे शहीद चंद्रशेखर आजाद की आखिरी निशानी के रूप में लाइब्रेरी में संजोकर रखा गया है।

 
 
	 
						 
						