(www.arya-tv.com) सिविल जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में ज्ञानवापी-मां श्रृंगार गौरी मामले की सुनवाई चल रही थी। हिंदू और मुस्लिम पक्ष के वकील अपनी-अपनी दलीलें दे रहे थे। इसी बीच हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग का मुद्दा उठा दिया। दोनों पक्षों के बीच इस बात पर बहस होने लगी कि मस्जिद में मिला शिवलिंग नुमा आकृति वाला पत्थर कितना पुराना है?
शिवलिंग नुमा आकृति वाला पत्थर कब का है, इसे जानने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से जांच और कार्बन डेटिंग कराने की बात कही गई। अदालत ने गुरुवार को सभी पक्षों को सुनने के बाद सुनवाई की अगली तारीख 7 अक्टूबर तय कर दी। कोर्ट का फैसला आने में अभी 1 हफ्ते का वक्त है
।लंदन के लेखक ने लिखा- हमले के बाद पुजारियों ने छिपा दिया था असली शिवलिंग
लंदन के लेखक MA शेरिंग की किताब ‘सेक्रेड सिटी आफ द हिंदूज’ में विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी एक कहानी का जिक्र मिलता है। शेरिंग ने किताब में लिखा कि 18 अप्रैल 1669 में औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर पर हमला करने का फरमान जारी किया। उसकी सेना ने मंदिर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया, लेकिन इसमें विराजित स्वयंभू ज्योतिर्लिंग पर आंच तक नहीं आई। क्योंकि उस दिन भगवान की रक्षा मंदिर के पुजारी कर रहे थे।
किताब में ये भी लिखा गया है कि औरंगजेब की सेना को आते देख मंदिर के पुजारियों ने शिवलिंग को ज्ञानवापी कूप के पास कहीं छिपा दिया। या ऐसा भी संभव है कि मंदिर के पुजारी शिवलिंग को बचाने के लिए उसे लेकर ज्ञानवापी कूप में कूद गए हों।
कार्बन डेटिंग के लिए सैंपल में C14 कार्बन होना जरूरी
कार्बन एक केमिकल एलीमेंट है। इसमें लगभग 3 तरह से मुख्य आइसोटोप्स हैं। तीनों में से 2 आइसोटोप्स C12 और C13 एक जगह टिके होते हैं, जबकि तीसरा आइसोटोप C14 मूवेबल होता है । C14 का निर्माण कॉस्मिक किरणों और आकाशीय बिजली से पृथ्वी के वायुमंडल में होने वाली n-p रियेक्शन की प्रक्रिया के दौरान होता है ।
C14 की मदद से डेटिंग करने के लिए चारकोल जैसे किसी सैंपल का होना जरूरी है,जिसमें C14 उपलब्ध हो। C14 की विशेषता है कि लिए गए सैंपल में यह एक निश्चित रेट के अनुसार डिसइंटीग्रेट होता जाता है और लगभग 5730 ± 40 वर्षों में आधा रह जाता है। वैज्ञानिक डेटिंग के लिए लाए गए सैंपल में पाए गए C14 कार्बन की मात्रा की तुलना डिसइंटीग्रेशन के स्टैंडर्ड रेट से कर के सैंपल की डेट पता करते हैं। इस तकनीक से 50 हजार साल पुरानी वस्तु की उम्र पता की जा सकती है।
साइंटिफिक डेटिंग के लिए एक्सिलरेटेड मास स्पेक्ट्रोमीट्री यानी AMS, ऑप्टिकल स्टिमुलेटेड ल्युमिनेसेंस यानी OSL और थोरियम-230 डेटिंग का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है।भारत में पहली रेडियोकार्बन डेटिंग लैब 1960 में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च यानी TIFR में स्थापित की गई। इसके बाद लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पैलियोसाइंस,अहमदाबाद स्थित फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी और हाल ही में मुंबई विश्वविद्यालय में नेशनल लेवल की लैब शुरू की गई हैं।