(www.arya-tv.com) कारगिल का युद्ध जब शुरू हुआ, तब दुश्मन के जीतने की संभावना 99 फीसदी और हमारे जीत की संभावना सिर्फ 1 फीसदी ही थी. दुश्मन इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त था कि वह न केवल इंडियन आर्मी के हर अटैक को रोक देगा, बल्कि 3-4 महीने आराम से ऊपर बैठा रहेगा. इस बीच, वह नेशनल हाईवे-1 से एक भी ट्रक नहीं गुजरने देगा. बर्फ बारी शुरू होते ही ऑपरेशन के पार्ट-2 को अंजाम दिया जाएगा. जिसके तहत, सियाचिन और लेह-लद्दाख को कैप्चर कर भारत का नक्शे बदलने का मंसूबा था.
कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि कारगिल में घुसपैठ के पीछे पाक सेना का मूल इरादा सियाचिन गलेशियर और लेह-लद्दाख पर कब्जा करना था. अपने इस इरादे को पूरा करने के लिए वह सियाचिन ग्लेशियर और लेह-लद्दाख की सारी सप्लाई बंद करना चाहता था. पाक सेना से अपने इन इरादों को पूरा करने के लिए 1996 से ही तैयारी शुरू कर दी थी. यह तैयारी इतनी गोपनीय तरीके से की जा रही थी कि पाक सेना ने इसकी भनक अपने राजनीतिक आकाओं तक को भी नहीं लगने दी थी.
नेशनल हाईवे-1 पर क्यों थी पाक सेना की निगाह
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि नेशनल हाईवे-1 को नेक ऑफ इंडिया कहा जाता है. यह नेशनल हाईवे द्रास और लद्दाख को मेन भारतीय लाइन श्रीनगर से जोड़ता है. गर्मियों में इसी हाईवे से ट्रकों के जरिए सप्लाई सियाचिन और लेह-लद्दाख में भेजी जाती है. सर्दियों के दौरान, ये इलाके इसी सप्लाई पर निर्भर करते हैं. क्योंकि सर्दियों में यह हाईवे पूरी तरह से बंद हो जाता है और सप्लाई सिर्फ हेप्टर और एयरक्राफ्ट के जरिए संभव होती है. पाकिस्तान का जो गेम प्लान था कि अगर सियाचिन और लेह-लद्दाख की सप्लाई रोक दें तो ये इलाके पूरी तरह से आइसोलेट हो जाएंगे. फिर इन इलाकों के एक तरफ पाकिस्तान है और दूसरी तरह चीन. ऐसे में इन इलाकों पर बहुत आसानी से कब्जा किया जा सकेगा.
गुपचुप तरीके से पाक ने खरीदे वॉर इक्विपमेंट
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि दुनिया की सभी आर्मी एक-दूसरे की खरीद पर कड़ी नजर रखती हैं. सैन्य खरीद-फरोख्त की मदद से किसी सेना के इरादों और भविष्य की रणनीति का बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है. पाक आर्मी को यह पता था कि भारतीय सेना की कड़ी निगाह उसकी गतिविधियों पर लगातार बनी हुई है. लिहाजा, उसने तीन साल के अंतराल में छोटे-छोटे देशों के जरिए छोटी-छोटी संख्या में अपने ऑपरेशन से जुड़े इक्विपमेंट खरीदे, जिसमें बेस्ट क्वालिटी के स्नो बूट, स्नो टेंट, स्नो जैकेट्स आदि शामिल थे. इसके अलावा, पाक सेना ने माउंटेन ऑपरेशन से जुड़े कई वैपन और इक्विपमेंट भी तीन साल के अंतराल में इकट्ठा कर लिए थे. छोटी संख्या में दूसरे देशों के जरिए हुई खरीद की वजह से पाक सेना के मंसूबों को नहीं पहचाना जा सका.
एनएलआई में तैनात किए गए रेगुलर आर्मी के कमांडो
कैप्टन अखिलेश सक्सेना बताते हैं कि जैसे हमारे यहां बॉर्डर पर बीएसएफ है, वैसे ही पाकिस्तान ने बॉर्डर पर अपनी एनएलआई फोर्स को तैनात कर रखा है. जब भी युद्ध होता है तब बीएसएफ और एनएनआई पीछे जाती है और फ्रंट पर युद्ध लड़ने के लिए भारतीय सेना और पाक सेना आमने सामने आ जाती है. कारगिल युद्ध से पहले पाकिस्तान ने अपनी एनएलआई को पीछे नहीं हटाया. बल्कि अपनी रेगुलर आर्मी के कमांडो और अधिकारियों को एनएलआई में तैनात करना शुरू कर दिया. जिससे किसी को उनके मंसूबों के बारे में खबर न लगे. भारतीय सीमा में दाखिल कराने से पहले इन सभी कमांडोज को विशेष प्रशिक्षण दिया गया, जिससे विपरीत परिस्थितयों और माइनस टेंपरेचर के बीच अपने मंसूबों को अंजाम दे सकें.
छोटी-छोटी टुकडि़यों में पाक कमांडो से कराई गई घुसपैठ
पाकिस्तानी सेना को अच्छी तरह से पता था कि सर्दियों के समय भारतीय सेना सेटेलाइट के जरिए पूरे इलाके में निगरानी करती है. लिहाजा, उसने दो-तीन कमांडोज की छोटी टुकड़ी बनाई और उन्हें सफेद कपड़े पहनाकर घुसपैठ कराई. जिससे बर्फ के बैकग्राउंड में इन कमांडोज की हरकत हो सेटेलाइट से पकड़ा ना जा सके. मार्च आते-आते हजारों की संख्या में पाकिस्तानी कमांडो मस्कोह से बटालिक सेक्टर तक पूरी तरह से फैल गए. उन्होंने भारतीय सेना की खाली पड़ी विंटर वेकेटेड पोस्ट पर कब्जा कर लिया. इसके अलावा, अपने साथ लाए सीमेंट और लोहे से नए बंकर बना लिए. पाकिस्तानी सेना अपनी रणनीति के तहत उन सभी लोकेशन पर पोजीशन लेकर बैठ गई, जहां से नेशनल हाईवे-1 पर नजर रखी जा सके.