बोर्ड परीक्षा में फेल बन गया ‘सैराट’ का ‘टॉपर’

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वह 1992 का मई या जून महीना था , दसवीं कक्षा की परीक्षा दिए हुए मेरे जैसे कई छात्र रिजल्ट आने का इंतज़ार कर रहे थेl  ‘सैराट’ जैसी फिल्म से देशभर में मशहूर हुए नागराज मंजुले ने अपने रिजल्ट के दिनों के बारें में बताते हुए कहा कि “रिजल्ट आया और पता चला कि मैं फेल हो गया हूंl मेरे सबसे खराब नंबर गणित और अंग्रेजी में आए थेl अंग्रेज़ी में तो सिर्फ 6 नंबर थे “

“उन दिनों दसवीं कक्षा के रिजल्ट को कुछ ज़्यादा ही महत्व दिया जाता थाl आजकल करियर के बहुत से विकल्प खुल चुके हैं , ” फिर भी मुझे लगता है कि रिजल्ट का दिन आज भी छात्रों के लिए उतना ही मायने रखता हैं,”  मुझे गणित विषय में कतई दिलचस्पी नहीं थी. A

गणित और अंग्रेजी का खौफ

नागराज पढ़ाई के मामले में एकदम सामान्य छात्र थेl लेकिन उन्हें गणित और अंग्रेजी से उन्हें बहुत डर लगता थाl  आपके लिए ये हैरानी की बात होगी लेकिन एक से बढ़कर एक मराठी फिल्मों का निर्देशन करने वाले नागराज को मराठी विषय में 100 में से सिर्फ 42 नंबर मिले थेl उन्हें थोड़ा दिलासा दिया था इतिहास-भूगोल और विज्ञान विषयों ने “दसवीं के इम्तेहान में गणित विषय में 150 में सिर्फ 32 अंक मिले थेl गणित के अलावा अंग्रेजी से भी उन्हें बिलकुल पंसद नहीं थी .

रिजल्ट के बाद

नागराज बताते हैं, “जब हम अपनी मातृभाषा बोलना शुरू करते हैं, तो हमें सबसे पहले उस भाषा का ग्रामर नहीं सिखाया जाताl”  व्याकरण का अध्ययन तो बाद में किया जाता हैंl मातृभाषा छोड़कर और भाषाएं सीखते वक्त सबसे पहले ग्रामर से पाला पड़ता हैंl जिसे ग्रामर में दिलचस्पी नहीं हैं, वह तो भाषा सीखने में दिलचस्पी नहीं लेताl बस ऐसा ही कुछ अंग्रेज़ी के मामले में मेरे साथ हुआl

नागराज कहते हैं, “दसवीं में मैं दो विषयों में फेल हुआ हूं, इस बात का सबूत मार्कशीट के रूप में हाथ में आने के बाद थोड़ा झटका लगाl” दसवीं क्लास में फेल होना उस वक्त मानों पाप थाl ऐसा माना जाता था कि फेल हुए मतलब पूरी जिंदगी खत्मl  पड़ोसी, आसपास के लोग और रिश्तेदार भी कहने लगे कि तेरा अब कुछ नहीं होने वाला.

फेल होना अच्छा साबित हुआ…

उस वक्त नागराज के पिता ने उनका साथ दियाl नागराज बताते हैं, “मुझे उस वक्त बहुत हौंसला मिलाl दसवीं की परीक्षा जीवन का अंत नहीं, यह बात पिताजी ने मुझे समझाई थीl”  उन्होनें कहा था कि तुम भी अपने जीवन में कामयाबी हासिल करोगेl फेल होना मानो नागराज के लिए अच्छा ही साबित हुआl नागराज बताते हैं, “अगर मैं पास हो जाता, तो आज जो कुछ मैंने हासिल किया है क्या वो कर पाता? ये सवाल अक्सर मैं खुद से पूछता हूंl”  “अपने दोस्तों में मैं अकेला फेल हुआ थाl सब दोस्त अपनी-अपनी राह चल दिए और मैं अकेला पड़ गया इस अकेलेपन ने मुझे सोचने का मौका दियाl” मैं खूब सोचता थाl बहुत किताबें पढ़ता थाl शायद उस वक्त ने ही मुझ में एक निर्देशक की नींव डालीl

जिंदगी सिखाती है

नागराज कहते हैं कि जो शिक्षा हमें स्कूल नहीं देते, वो जिंदगी देती हैl ऐसा बिल्कुल नहीं है कि पास होकर हम बहुत बड़ा तीर मार लेते हैं और ऐसा भी नहीं है कि फेल होना कोई शर्म की बात हैl”  ज़िंदगी में खुश रहना अलग बात हैl उसका ताल्लुक न तो पास होने से और न ही फेल होने से हैl नागराज के मुताबिक़ ऐसा नहीं है कि अच्छी ज़िदगी बिताने के लिए ज़रूरी चीज़ें स्कूल में ही सीखने को मिलेl

खुद का उदाहरण

अपना  खुदका धंधा शुरू करने का आइडिया स्कूल से नहीं आताl वो हमें तजुर्बे और अपनी बुद्धि से आता हैl इसलिए फेल होने से कुछ खत्म नहीं होताl  यह कहते वक्त नागराज खुद का उदाहरण देते हैं-

वो अंत में कहते हैं, “दसवीं कक्षा में दो विषयों में फेल होने के बावजुद भी मैंने अपनी लाइफ की स्टोरी खुद लिखीl”  इस स्टोरी में राष्ट्रीय पुरस्कार जैसे कई अच्छे और खुद पर गर्व महसूस करने वाले पड़ाव भी आएl अगर मुझ जैसा सामान्य व्यक्ति सब हासिल कर सकता हैं, तो आप क्यों नहींl जो रिज़ल्ट आया है उसे अपनाओ और अपना सफर शुरू करोl