(www.arya-tv.com)IVF ट्रीटमेंट की सफलता भी इंसान के रंग पर निर्भर करती है। यह दावा नई रिसर्च में किया गया है। ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एम्ब्रायोलॉजी अथॉरिटी की रिसर्च कहती है, गोरों के मुकाबले अश्वेत लोगों में फर्टिलिटी ट्रीटमेंट सफल होने की संभावनाएं कम होती हैं।
रिसर्च के मुताबिक, IVF के जरिए 30 से 34 साल की अश्वेत मरीजों का औसतन बर्थ रेट 23 फीसदी था वहीं, श्वेत मरीजों में यही आंकड़ा 30 फीसदी था। साउथ एशियाई मरीजों का बर्थ रेट्स 25 फीसदी रहा।
क्या होता है आईवीएफ
आईवीएफ यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, गर्भधारण की एक कृत्रिम प्रक्रिया है। आईवीएफ प्रक्रिया से जन्मे बच्चे को टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है। यह तकनीक उन महिलाओं के लिए वरदान की तरह है जो किन्ही कारणों से मां नहीं बन पाती हैं।
4 साल तक चली रिसर्च
शोधकर्ताओं ने 2014 से 2018 तक रिसर्च की। रिसर्च में सामने आया कि 31 फीसदी अश्वेतों में प्रजनन से जुड़ी समस्या है। इसकी वजह फेलोपियन ट्यूब में दिक्कत होना है। गोरे और अश्वेत के बीच इतना फर्क क्यों हैं, इस पर शोधकर्ता सैली शेशायर का कहना है, इसका सटीक जवाब देना मुश्किल है लेकिन बर्थ रेट कम होने की वजह आर्थिक तंगी और शरीर में पहले से मौजूद बीमारियां जैसे मोटापा हो सकती है।
इसके अलावा अश्वेत मरीजों में उम्र बढ़ने के साथ हृदय रोग होने का खतरा ज्यादा रहता है। एक यह भी वजह है जो गर्भधारण करने में दिक्कत बढ़ाती है।
बच्चे न होने के कारण तलाक हो रहे
रॉयल कॉलेज की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. क्रिस्टीन इकेची का कहना है, प्रजनन क्षमता और इसके इलाज के सफलता घटने के जो परिणाम सामने आए हैं उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। बच्चे न होने पर पति-पत्नी के जीवन पर निगेटिव असर पड़ता है। वे तनाव और बेचैनी से घिरे रहते हैं। कई मामलों में रिश्ते टूट भी जाते हैं। इसलिए इसकी वजहों को जानना जरूरी है।