गोरखपुर। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित घंटाघर वह एतिहासिक स्थल है जहां अंतेष्टि से पहले जनता दर्शन दर्शन के लिए आजादी के आन्दोलन में प्राण न्योछावर करने वालों में काकोरी कांड के महानायक स्व. राम प्रसाद बिस्मिल का पार्थिव शरीर रखा गया था आज उस स्थान पर विरासत गलियारा का निर्माण किया जा रहा है।
घंटाघर के आस-पास की दुकानें खंडहर में बदल गयी है और लोग इस बात की प्रतीक्षा में हैं कि इस विरासत गलियारा पंडित विस्मिल गलियारा के स्प में स्थापित होगा और यहीं पंडित विस्मिल का प्रतिमा घंटाघर में लगेगी। आजादी के आन्दोलन में प्राण न्योछावर करने वालों में काकोरी कांड के महानायक स्व. राम प्रसाद बिस्मिल का नाम इतिहास केस्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्हें 19 दिसम्बर 1927 को गोरखपुर जिला जेल में फांसी दी गयी थी। देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए चले संघर्ष के लंबे कालखंड में काकोरी ट्रेन एक्शन का अविस्मरणीय योगदान है।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के इस अभूतपूर्व प्रतिकार ने बर्तानिया हुकूमत की चूलें हिला दी थीं। इस प्रतिकार के बाद तेज होती गई स्वतंत्रता आंदोलन की आंधी के चलते दो सौ साल तक देश पर शासन करने वाली अंग्रेज साम्राज्य को अगले बीस साल के अंदर भारत छोड़ देने को मजबूर होना पड़ा। इस महान बलिदानी पंडित बिस्मििल का शव बर्बर अंग्रेजों ने तीन दिनों तक गोरखपुर के घंटाघर पर लटकाये रखा था। इस क्रान्तिकारी शायर का यह शेर आज भी प्रेरणा देता है। …शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले । वतन पर मिटने वालों का यही बांकी निशां होगा देश की गुलामी की जंजीरों से रिहायी दिलाने वाले अमर क्रान्तिकारियों में पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का नाम सबसे ऊपर लिखा जायेगा। उत्तर प्रदेश का गोरखपुर जिला जेल पंडित बिस्मिल के जीवन के आखिरी दिनों का साक्षी है जहां अन्त में इस क्रान्तिकारी को फांसी की सजा दी गयी। वर्ष 1857 के गदर की घटनाओं के बाद क्रान्तिकारी आन्दोलन के सम्बंध में उत्तर प्रदेश में जो पहला बलिदान मातृ वेदी पर हुआ वह काकोरी षडयंत्र के नाम से राष्ट्रीय आजादी के इतिहास में प्रसिध्द हुआ जिसके नायक थे पंडित राम प्रसाद बिस्मिल।
पंडित बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 में शाहजहांपुर में हुआ था। इनके पितामह ग्वालियर राज्य के मूल निवासी थे और दादा गृहकलह से उब कर शाहजहांपुर में आकर बस गये । जिस विस्मिल को परतंत्र भारत की जालिम ब्रिटिश सरकार की अदालत ने उत्तर भारत से सशस्त्र क्रांतिकारी दल का मुख्य कार्यकर्ता और नेता घोषित कर प्राण दंड प्रदान किया वह बिस्मिल क्रान्तिकारी आन्दोलन में कैसे आये यह कहानी भी मार्मिक हैं। 1915 तक बिस्मिल आर्य समाज के माध्यम से राजनीति में रूचि लेना शुरू कर दिये थे।
इन्हीं दिनों में सोमदेव जी नामक एक महात्मा से इनकी मुलाकात हो गयीं जो इन्हें धार्मिक और राजनीतिक उपदेश देने लगे। स्वामी बिस्मिल से अक्सर कहा करते थे कि एन्ट्रेस पास करके यूरोप यात्रा करना इटली जाकर महात्मा मैजिन की जन्मभूमि का दर्शन अवश्य करना। सन 1916 में लाहौर षडयंत्र का मुकदमा चला और भाई परमानंद को फांसी की सजा मिली। इस खबर को पढकर बिस्मिल के बदन में आग लग गयी। उन्होंने बिचारा कि अंग्रेज बडे अत्याचारी हैं इनके राज्य में न्याय नहीं है, जो इतने बडे महानुभाव को फांसी की सजा दे दी। बिस्मिल ने प्रतीज्ञा किया कि इसका बदला जरूर लूंगा और जीवन भर अंग्रेजी राज्य को विध्वंस करने का प्रयत्न करता रहुंगा। बिस्मिल मैट्रिक में पढ रहे थे उसी समय पंडित गेंदालाल दीक्षित के सम्पर्क में आये और वे मैनपुरी षडयंत्र में दीक्षित की काफी सहायता किया। इस षडयंत्र में दीक्षित जी जब पकडे गये तो बिस्मिल ने उन्हें छुडाने के लिए 15 विद्यार्थियों को साथ लेकर एक ब्रिटिश सरकार के कारकून के घर को लूटा।
