UP में भारत बंद का हाल:बाजार खुले रहे-रास्ते रहे जाम

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(www.arya-tv.com)पश्चिमी यूपी में भारतीय किसान यूनियन का गढ़ कहे जाने वाले मुजफ्फरनगर में मंडियों में रोजाना कि तरह ही मंगलवार को भी काम हुआ। यहां सुबह 4 बजे से आढ़ती अपनी गद्दी पर बैठे रहे तो किसान अपना-अपना सामान बेचने को पहुंचे। हालांकि मंडी में जितनी भीड़ होनी चाहिए उतनी भीड़ आज नहीं थी। एक किसान ने बताया कि ज्यादातर किसान इस वजह से अपना माल नहीं लाये कि कहीं भारत बन्द की वजह से गाड़ियां न रोक दी जाए। कहीं उनका नुकसान न हो। किसानों ने साफ किया कि यहां भारत बन्द का असर बहुत नहीं है। ऐसा ही कुछ नजारा UP के दूसरे शहरों में भी नजर आया। ज्यादातर जगहों पर कुछ लोगों ने रोड जाम किया, ट्रेन रोकी बाकी बाजार रोजाना की तरह खुले रहे।

दरअसल, किसान आंदोलन समर्थक किसान दलों ने और विपक्षी दलों ने मिलकर 8 दिसंबर को भारत बंद का एलान किया था, लेकिन यूपी में भारत बंद पूरी तरह अपना असर नहीं दिखा पाया।

कारण नम्बर 1: टॉप किसान लीडर्स ने बॉर्डर पर संभाल रखी है बागडोर
पहली बार किसानों ने भारत बन्द का एलान किया था। आशंका जताई जा रही थी कि इसका सबसे बड़ा असर पश्चिमी यूपी में देखने को मिलेगा लेकिन पश्चिमी यूपी में भारत बन्द अपना कोई बड़ा असर नहीं छोड़ पाया। इसके पीछे की मुख्य वजह है कि किसान यूनियन के जो बड़े नेता हैं उन्होंने दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन की बागडोर संभाल रखी है। पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ और सहारनपुर जैसे जिलों में जो छोटे नेता हैं उन्हें पुलिस ने पहले ही नजरबंद कर दिया या फिर हिरासत में ले लिया। ऐसे में छिटपुट नेताओं ने अपने स्तर पर कहीं रोड जाम की तो कही किसान कम संख्या में मंडी में पहुंचे।

कारण नम्बर 2: एकजुट नहीं हो पाया यूपी का किसान
एक वक्त होता था कि जब किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ऐलान करते थे तो पूरे यूपी से किसान उनके समर्थ में पहुंचते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है।  दरअसल, किसान भी राजनीतिक दलों की तरह अलग अलग खांचे में बंट गए हैं। उनके पास प्रभावी नेतृत्व नहीं रह गया है। यूपी के किसान एकजुट नहीं रह गए हैं। यही वजह है कि जब जरूरत पड़ी तो एकजुटता नहीं दिखाई दी।

कारण नम्बर 3:UP के किसानों पर MSP का कोई असर नहीं है
यूपी के किसानों का मंडी में शोषण होता है। यह न सरकार से छुपा है न ही किसान नेताओं से। लेकिन उसके लिए कुछ नहीं होता है। ऐसे में जब किसान का अनाज मंडी में नहीं बिकता तो वह मंडी के बाहर जो पैसा मिलता है। बिना चिकचिक बेच देता है। दरअसल, कृषि कानून से यूपी के किसानों कोई दिक्कत नहीं है। किसानों के बिल में कुछ नया नहीं है। सब पहले से ही चल रहा था। साथ ही पश्चिमी यूपी में ज्यादातर गन्ना किसान है। वह भी राजनीतिक दलों के खांचे में बंटे हैं। जोकि एकजुट नहीं हैं।

कारण नम्बर 4: पुलिस की सख्ती और भाजपा शासित राज्य होने का भी पड़ा असर
यूपी में भाजपा की सरकार है। ऐसे में योगी सरकार ने पहले से ही भारत बन्द को लेकर कमर कस ली थी। योगी सरकार ने प्लानिंग के तहत जो नेता उपद्रव या हंगामा कर सकते थे या अपना असर छोड़ सकते थे उन्हें या तो नजरबंद करा दिया या फिर हिरासत में ले लिया। चूंकि किसान नेता ज्यादातर बॉर्डर पर है ऐसे में यूपी के अलग अलग शहरों में भी भारत बन्द का असर कम हुआ। प्रदीप कहते हैं कि सत्ता पक्ष समर्थक आज मंडी भी पहुंचे और बड़ी संख्या में बाजारों में भी खूब दिखे। यही वजह रही कि यूपी में असर कम रहा।

कारण नंबर 5: राजनीतिक दलों की उदासीनता भी भारी पड़ी
7 दिसंबर को लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने किसानों के समर्थन में धरना दिया। वहीं आज भारत बन्द के दौरान ज्यादातर सपा, कांग्रेस के नेता या तो घरों में नजरबंद कर दिए गए या फिर हिरासत में ले लिए गए।  जिस तरह सत्ताधारी दल ने प्लानिंग के तहत भारत बन्द को बेअसर करने की कोशिश की उसी तरह विपक्षी दलों को भी अपनी रणनीति बनानी चाहिए। यही पर विपक्षी दल पीछे हो जाते है। अब आप देखिए बसपा ने भारत बन्द का समर्थन तो किया लेकिन उनका एक भी आदमी सड़क पर नहीं दिखा।  यह जन सरोकार का मुद्दा है अगर विपक्षी दल एकजुटता और रणनीति के साथ आते तो यूपी में भारत बन्द अपना असर जरूर छोड़ता।