B’Day Spcl: हवा में लहराता हेडन का विकेट, तो जमीन पर हथेलियां पटकते रहें श्रीसंत

Game

2010 का दिसंबर। भारतीय टीम तीन मैच की टेस्ट सीरीज खेलने के लिए दक्षिण अफ्रीका दौरे पर थी। पहला टेस्ट हुआ सेंचुरियन में। भारतीय टीम हार गई। डरबन में दूसरा टेस्ट 26 दिसंबर से शुरू हुआ। टेस्ट का चौथा दिन था। सीरीज बचाने के लिए धोनी एंड कंपनी जी-जान लगाए हुए थी।

भारत ने मेजबानों के सामने जीत के लिए 303 रन का लक्ष्य रखा था। दक्षिण अफ्रीका ने तीन विकेट गंवाकर 123 रन बना लिए थे। क्रीज पर मौजूद थे जैक कैलिस और एबी डीविलियर्स। दो ऐसे बल्लेबाज जो विरोधी टीम के मुंह से जीत को छीन लाने में माहिर थे। कप्तान धोनी इस जोड़ी को तोड़ने की पूरी कोशिश कर रहे थे। इसी दौरान एक गेंद आई और इस जोड़ी को तोड़कर टीम इंडिया के लिए जीत का एक दरवाजा खोल दिया।

पारी के 35वें ओवर की दूसरी गेंद। एक पटकी हुई गेंद, टप्पा खाने के बाद कैलिस के मुंह की तरफ बिजली की रफ्तार से दौड़ी। रवि शास्त्री के शब्दों में कहे तो, किसी कोबरा नाग की तरह कैलिस को डंसने के लिए झपटी (शास्त्री तब कमेंट्री कर रहे थे)।

गेंद की गति इतनी तेज थी कि कैलिस हवा में उछलते, आड़े-तिरछे होते हुए भी खुद को संभाल नहीं सके और गेंद उनके ग्लव्स को चूमती हुई गली में खड़े सहवाग के हाथों में जाकर ही शांत हुई। अगर आप क्रिकेट के फैन हैं, तो इस गेंद को लगातार देखते ही रहना चाहेंगे। उस गेंद में एक अलग ही एग्रेशन था और गेंदबाज था शांताकुमारन श्रीसंत। याद है, या भूल गए। कोई नहीं यादें ताजा कर देते हैं। आज श्रीसंत का बर्थडे है।

रणजी ट्रॉफी में हैट्रिक लेने वाला केरल का इकलौता गेंदबाज
श्रीसंत, भयंकर जोशीला गेंदबाज। मैदान पर किसी से भी लड़ जाना। उटपटांग हरकतें कर देना। ये सब उसकी आदत का एक हिस्सा रहा। कई बार तो उसका एग्रेशन अपनी टीम पर ही भारी पड़ जाता, लेकिन इन सब के बीच एक चीज में श्रीसंत माहिर था, जिसके लिए टीम इंडिया में आया और वो थी गेंदबाजी। श्रीसंत जब गेंद फेंकता तो गेंद की सीम बुलेट की तरह एकदम सीधी पिच से टकराती।

अभी तक मुझे वैसी सधी हुई सीम किसी भी गेंदबाज की नजर नहीं आई है। श्रीसंत जो अपने करियर की शुरुआत में लेग स्पिनर बनना चाहता था, लेकिन दिल यॉर्कर से लगा बैठा और बन गया तेज गेंदबाज। अपनी तेज गेंदबाजी को धारदार बनाने के लिए एमआरएफ पेस फाउंडेशन पहुंचा।

वहां से उसने अपने तरकश में तमाम तीर भरे और फिर भारतीय टीम की कैप के लिए मैदान में कूद गया। रणजी ट्रॉफी में हैट्रिक लेने वाला केरल का इकलौता गेंदबाज बना। 2005 में भारतीय टीम में जगह मिली और श्रीलंका के खिलाफ वन-डे डेब्यू हुआ।

श्रीसंत ने पहले मैच से ही अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी। नई गेंद से कहर मचा देता। श्रीसंत क्रिकेट के मैदान पर छा गया, लेकिन उसे बस मैदान पर छा जाने भर से संतोष नहीं हुआ। वह चकाचौंध की दुनिया में छा जाना चाहता था, जिसने उसके करियर के ग्राफ को टॉप पर पहुंचने से पहले ही नीचे की राह पकड़ा दी।

साल 2007। टी-20 का पहला विश्व कप। दूसरा सेमीफाइनल। भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया। वही ऑस्ट्रेलिया जिससे हम हर विश्व कप में हारते हुए आ रहे थे, लेकिन इस बार नतीजा बदलने जा रहा था, क्योंकि इतिहास हर बार खुद को दोहराता नहीं, बदलता भी है।

युवराज सिंह की तूफानी बल्लेबाजी ने ऑस्ट्रेलियाई खेमे में उस शाम खलबली मचा दी थी। युवी ने महज 30 गेंदों में पांच चौके और इतने ही छक्के की मदद से 70 रन पीट दिए थे, लेकिन ऑस्ट्रेलिया तो, ऑस्ट्रेलिया थी। गिलक्रिस्ट, हेडन, साइमंड्स, माइक हसी, ये वो धुरंधर थे, जो भारतीय गेंदबाजों की धज्जियां उड़ाने के लिए काफी थे।

मैथ्यू हेडन और गिलक्रिस्ट आते ही भारतीय गेंदबाजों पर पर हावी होने लगे। गिलक्रिस्ट हालांकि जल्दी ही आउट हो गए, लेकिन हेडन ने गेंद की सिलाई उधेड़नी जारी रखी। इरफान पठान, हरभजन सिंह, आरपी सिंह। सभी ने खूब रन लुटाए थे। हेडन अपनी लय में बल्ला भांज रहे थे।

तभी श्रीसंत अपना आखिरी ओर फेंकने लिए रन अप पर पहुंचे। पारी का 15वां ओवर। ऑस्ट्रेलिया को जीत के लिए 36 गेंदों में 59 रन की दरकार थी। सामने थे साइमंड्स। पहली तीन गेंदे साइमंड्स ने खेली। चौथी गेंद का सामान करने के लिए हेडन स्ट्राइक पर पहुंचे।

श्रीसंत ने साइड बदली और राउंड द विकेट आकर 138.9 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से यॉर्कर…। हेडन का विकेट हवा में लहरा गया। स्टेडियम शोर से गूंज उठा, तिरंगा हवा में झूम उठा। टीवी के सामने बैठे दर्शक सोफे और कुर्सियों से मुठ्ठी बांधे उछल पड़े और श्रीसंत पिच पर अपनी हथेलियां पटकने लगा।

मैदान पर बदतमीजियां बढ़ती गईं
इस एक विकेट ने इतिहास को बदला था। हमारे मन में बैठे ऑस्ट्रेलियाई नाम के भय को इस विकेट ने उखाड़ फेंका था। उस गेंद के बाद वर्षों से भारत के सामने चला आ रहा ऑस्ट्रेलिया का दबंग अंदाज कपूर की तरह हवा में उड़ गया। जो अखबार पहले टीम इंडिया की हार की सुर्खियों से हलाकान रहते थे, अगले दिन विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया से हमारी जीत की खबरों से पटे पड़े थे।

श्रीसंत, जिसके पास अथाह टैलेंट था, लेकिन वो कहीं और खर्च हो गया। मैदान पर उनकी बदतमीजियां बढ़ती गईं। उद्दंडता के कारण कई बार उनकी मैच फीस काटी गई, लेकिन श्रीसंत के लिए ये सब शायद एक फैशन बन गया था। अपनी टीम के खिलाड़ियों से भी उलझे।

हरभजन वाले थप्पड़ विवाद ने जमकर फजीहत कराई, लेकिन फिर भी श्रीसंत ने कभी पीछे मुड़कर देखने की जहमत नहीं उठाई। पलटकर ये नहीं देखा कि आखिर उन्होंने क्या गंवा दिया। श्रीसंत ने अपने दाएं हाथ की दो अंगुलियों के बीच गेंद को फंसाकर फेंकने का हुनर गंवा दिया। अब वापसी तो मुश्किल है, लेकिन दो विश्व कप की ट्रॉफी के साथ श्रीसंत की तस्वीर सुकून देती है। हैप्पी बर्थडे श्रीसंत…