महात्‍मा गांधी के त्‍याग का प्रतीक बरगद का पेड़

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मेरठ (www.arya-tv.com) महात्मा गांधी की मौजूदगी को मेरठ हमेशा महसूस करता है। गांधीजी दो बार मेरठ आए, और उनके पदचिह्न् आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। गांधी को देखने और सुनने वाले भी मेरठ में अभी मौजूद हैं।गांधीजी वर्ष 1920 और 1929 में मेरठ आए थे। इतिहासकार केडी शर्मा बताते हैं कि वैश्य अनाथालय, कैसल व्यू, डीएन कालेज, टाउनहाल, मेरठ कालेज, असौड़ा हाउस आदि कई स्थलों पर गांधीजी आए थे। पहली बार 22 जनवरी 1920 को गांधीजी डीएन कालेज आए थे। जब वह कालेज में पहुंचे तो उन्हें फूल माला से लाद दिया गया।

उनके सम्मान में एक बड़ा जुलूस निकला था। गांधीजी दोबारा 1929 में मेरठ आए थे। उस समय जब वह मेरठ कालेज पहुंचे तो छात्रों ने गांधीजी को एक चांदी की प्लेट और सौ स्वर्ण मुद्राएं दी थीं। छात्रों ने यह सहयोग असहयोग आंदोलन के लिए दिया था। मेरठ कालेज में एक ऐतिहासिक बरगद का पेड़ गांधीजी के त्याग को बताता है। महात्मा गांधी ने 1943 में जब 21 दिन का उपवास किया था। उसकी सफलता पर मेरठ कालेज में यह बरगद लगाया गया। इस बरगद को लगाते समय 194 घंटे का अखंड हवन भी किया गया था।

मेरठ में सदर क्षेत्र में रहने वाले 94 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमरनाथ गुप्ता गांधीजी से दो बार मिल चुके हैं। वह उनके संत स्वभाव से इतने प्रभावित हुए थे कि कई बार दिल्ली जाकर उनकी प्रार्थना में शामिल हुए। अमरनाथ ने नौ अगस्त 1942 को सीएबी में अंग्रेजों के झंडे को उखाड़ फेंका था। अमरनाथ बताते हैं कि वह गांधीजी से पहली बार बच्चा पार्क में पंडित रामस्वरूप शर्मा के आवास पर मिले थे। फिर दूसरी बार बुढ़ाना गेट पर मिले थे। गांधीजी संत की तरह थे। वह लोगों से बहुत आत्मीयता से मिलते थे। उनका स्वभाव बहुत ही सरल था। वह उनसे मिलने दिल्ली भी जाते थे। गांधीजी के सचिव प्यारेलाल से लंबे समय तक उनका साथ भी रहा।