रामनगरी में कार्तिक माह प्रारंभ होने के साथ ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु कल्पवास कर रहे हैं। सरयू के तट स्थित दर्जनों मंदिरों में एक माह रहकर दर्शन पूजन और धार्मिक अनुष्ठान की परंपरा को संपन्न किया जाएगा, जिसे कार्तिक पूर्णिमा स्नान कर अनुष्ठान को पूर्ण आहुति दी जाएगी।
साल के 12 महीनों में हर मास का अपना धार्मिक महत्व है। अलग-अलग तीर्थों में अलग-अलग मास में कल्पवास का विधान है। इस परम्परा में तीर्थ नगरी अयोध्या में कार्तिक कल्पवास की परम्परा सनातन काल से है। इस परम्परा के निर्वहन के लिए यहां लाखों श्रद्धालु पहुंच चुके है। इन श्रद्धालुओं ने विभिन्न आश्रमों में आश्रय लिया है। सरयू के तट पर कल्पवास के लिए आश्विन पूर्णिमा से जप अनुष्ठान व दर्शन-पूजन के साथ सत्संग की दिनचर्या शुरु हो गई थी, जहां प्रतिदिन प्रातःकाल श्रद्धालु सरयू नदी के पवित्र जलधारा डुबकी लगाकर पूजन कर दीपदान की परंपरा को संपन्न कर रहे हैं । इस वर्ष कार्तिक परिक्रमा पर अत्यधिक भीड़ होने की संभावना है। 31 अक्टूबर को देवोत्थानी एकादशी पर पंचकोसी परिक्रमा की जाएगी। 5 नवम्बर को पूर्णिमा होगी।
रोज करते हैं रामलला का दर्शन
महाराजगंज से आईं महिला श्रद्धालु सविता देवी ने कहा कि एक माह के लिए अपने परिवार और सभी घर के कार्यों को छोड़कर भगवान की आराधना पूजन के लिए कल्पवास कर रहे हैं। हर रोज सुबह स्नान के बाद राम मंदिर, हनुमानगढ़ी सहित अन्य मंदिरों में दर्शन पूजन के बाद अपने स्थान पर हवन पूजन करते हुए भगवान से कामना करते हैं कि हमारा परिवार और समाज खूब तरक्की करे। आने वाली समय सभी समस्याएं समाप्त हों।
तीसरी बार आया हूं कल्पवास करने
कल्पवासी राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि इस बार हमारा तीसरा वर्ष है। पिछले तीन साल से अयोध्या में इस कल्पना पूरा करने के लिए आते हैं। हमारे साथ गांव के चार और लोग भी हैं। यहां पर अनुष्ठान पूजन करते हैं। बताया कि आने वाली 14 कोसी परिक्रमा व पंचकोसी परिक्रमा के बाद पूर्णिमा स्नान करते हुए इस समय कल्पवास को पूरा करेंगे।
