(www.arya-tv.com) आदिपुरुष फिल्म को लेकर उठे विवादों पर वाराणसी और अयोध्या के संत समाज ने अपनी बेहद तीखी प्रतिक्रिया दी है। शंकाराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने दर्शकों से अपील की है कि अपने पैसे से यह पाप न खरीदें। वहीं, अखिल भारतीय संत समिति के महासचिव जितेंद्रानंद स्वामी ने कहा कि ऐसे डायलॉग मोहल्ले का टपोरी छाप और लफंगा जैसा लेखक ही लिख सकता है। मनोज ‘मुंतसिर’ ही था, मगर शुक्ला बनने की कोशिश की।
आइए, सबसे पहले जानते हैं कि अविमुक्तेश्वरानंद ने क्या कहा…
ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकाराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद स्वामी ने कहा कि इस फिल्म को हम नहीं स्वीकारते। यह चलचित्र बेहद आपत्तिजनक और पीड़ादायक है। आदिपुरुष में भारत की सनातन आस्था पर प्रहार करते हुए पौराणिक संदर्भों को अश्लीलता के साथ चित्रित किया गया है। यह भारत के महान आदर्शों के चरित्र के साथ खिलवाड़ है। जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकारा तो नहीं जा सकता।
क्या हमने शास्त्रों में देवी-देवताओं के इन्हीं रूपों को जाना था
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि आप अगर कुछ लिखते हैं तो वो भी धर्म और अधर्म हो सकता है। आप अपनी आंखों से भगवान का दर्शन करते हैं तो वह देखना ही धर्म है। यदि आप अपने आंख से मर्यादाविहित चीज देखते हैं तो वो अधर्म है। आदिपुरुष फिल्म देखने वालों ने बताया है कि इस चित्रण से हमारी धारणा खंडित हो रही है। हमने जिन रूपों में देवी-देवताओं को शास्त्रों में पढ़ा और जाना है, वैसा फिल्म में नहीं रखा गया है। हमारे देवी-देवताओं को धर्म के अनुरूप नहीं दिखाया गया है। उनके शब्द और वाणी भी मर्यादा के लायक नहीं है। मैं धर्मसाधकों से अपील करता हूं कि यह फिल्म न देखें।
जितेंद्रानंद स्वामी ने कहा कि आदिपुरुष के डायलॉग लेखन जिस प्रकार से हुए, वो संतों को पच नहीं रहा है। मनोज वास्तव में मुंतसिर ही था, जिसने शुक्ला बनने की कोशिश की। सनातन धर्म में तथ्यों के साथ छेड़छाड़ है। महापुरुषों और परमात्मा का सरलीकरण करना अक्षम्य अपराध है। ये डायलॉग मोहल्ले का टपोरी छाप और लफंगा जैसा लेखक ही लिख सकता है। आज तक के फिल्म इंडस्ट्रीज में ऐसा लफंगा लेखक हमें न स्वीकार्य है और न ही बर्दाश्त। धर्म का क्षेत्र मर्यादा चाहती है। शब्दों का चयन शत्रुओं के लिए भी मर्यादित ही होता है। मर्यादाविहीन पटकथा लेखक और निर्देशक ऐसे कभी स्वीकार्य नहीं किए जा सकते।