(www.Arya Tv .Com) लखनऊःआनंद आश्रम की संस्थापिका साध्वी गुरु मां आशुतोषाम्वरी को समाधि में गए आज पूरे 17 दिन हो गए हैं. इन्होंने 28 जनवरी 2024 को अपने गुरु दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के संस्थापक आशुतोष महाराज को उनके शरीर में वापस लाने के लिए समाधि लेने की बात कहकर समाधि ले ली थी. इन्होंने जाते वक्त अपने शिष्यों से कह दिया था कि उनके शरीर को संरक्षित किया जाए, क्योंकि वह अपने गुरु आशुतोष महाराज को जगा कर वह अपने शरीर में वापस आएंगी.
अब इस पूरे मामले में एक नया मोड़ आ गया है, क्योंकि आनंद आश्रम के प्रवक्ता बाबा महादेव ने घोषणा कर दी है कि 28 फरवरी से पहले ही मां आशुतोषाम्वरी लौट आएंगी. उन्होंने कहा है कि जब वह समाधि ले रही थीं तब इन्होंने कहा था कि एक महीने के लिए ही समाधि लेना अगर इससे ज्यादा वक्त लगा तो वह भी अपना शरीर त्याग देंगे और अपनी गुरु मां के बगैर नहीं रह पाएंगे. यही वजह है कि अब 28 फरवरी को एक महीना पूरा होने जा रहा है, उन्हें पूरी उम्मीद है कि 28 फरवरी से पहले ही मां अपने शरीर में लौट आएंगी. जब से मां ने समाधि ली है तब से लेकर अब तक आश्रम की छत पर लगातार महामृत्युंजय मंत्र का जाप चल रहा है.
आशुतोष ने आशुतोषाम्वरी को सपने में कही थी यह बात…
आनंद आश्रम के प्रवक्ता बाबा महादेव ने बताया कि आशुतोषाम्वरी ने समाधि में जाने से पहले आश्रम के हर एक व्यक्ति से कहा था कि आशुतोष महाराज उनके सपने में आए थे और कहा था कि ‘उन्होंने सिर्फ एक साल के लिए समाधि ली थी लेकिन दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने उनके शरीर को डीप फ्रीजर में बंधक बना रखा है इसलिए तुम आओ और मुझे जगाओ’… इस सपने को गंभीरता से लेने के बाद ही मां ने समाधि ली है क्योंकि जब महापुरूष समाधि लेते हैं तो उनको समाधि से जगाने के लिए कोई शिष्य ही जाता है और जगाता है.
आश्रम की कमान अब इस व्यक्ति के हाथों में
बाबा महादेव ने बताया कि आश्रम की कमान इन दिनों बाबा आशुतोषाम्बर के हाथों में है, जो कि एमए इकोनॉमिक्स से किए हुए हैं. गोल्ड मेडलिस्ट हैं और पीसीएस की तैयारी कर रहे थे. द्विवेदी खानदान से ताल्लुक रखते हैं. उनके नाना दयाशंकर मिश्र बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में बड़े प्रोफेसर थे. मां के आध्यात्मिक बेटे हैं बाबा आशुतोषाम्बर. उन्होंने बताया कि मां ने समाधि से पहले यह कहा था कि समाधि के दौरान उनका सिर बाबा अपने गोद में ही रखें. यही वजह है कि जब से उन्होंने समाधि ली है तब से बाबा उनके सिर को अपनी गोद में लेकर बैठे हैं.