(www.arya-tv.com) देशभर के आर्य समाज मंदिरों में होने वाली शादियों की मान्यता पर सवाल उठाने वाले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई है। दरअसल हाईकोर्ट ने हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादियां कराने वाले आर्य समाज को स्पेशल मैरिज एक्ट के नियमों का पालन करने के लिए कहा था। इसके बाद ही उन्हें शादी का सर्टिफिकेट जारी करने की अनुमति मिलेगी। इस फैसले के बाद आर्य समाज मंदिरों की शादियों पर सवाल खड़ा होने लगा। लोग मंदिरों में फोन कर यह पूछने लगे कि क्या उनकी शादी को मान्यता मिलेगी या नहीं। मगर हाईकोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी है।
हिंदू मैरिज एक्ट से भी पुराना है आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट का इतिहास
आर्य समाज मंदिर की शादियों को वैधता देने के लिए आजादी से पहले अंग्रेजों ने आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट को साल 1937 में पारित किया था। भारत में दूसरी जाति में शादी करने की इजाजत नहीं होने की वजह से कई लोगों ने आर्य समाज को अपनाया क्योंकि यहां उनके साथ जाति के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाता था। वैदिक रीति-रिवाजों को अनुसार होने वाली आर्य समाज की शादी को वैधता देने के लिए आर्य मैरिज वैलिडेशन एक्ट लाया गया। जिसमें वर-वधू के अलग-अलग जाति के होने पर भी उनके विवाह को मान्यता दी जाती थी। इस एक्ट में यह भी साफ लिखा गया था कि अगर वर-वधू शादी से पहले हिंदू के अलावा किसी अन्य धर्म से होंगे तब भी उनका विवाह अमान्य नहीं माना जाएगा। यह एक्ट आज भी भारत में लागू है जिसे सभी आर्य समाज मंदिर अपनाते हैं।
आजादी के 8 साल बाद साल 1955 में भारत में हिंदू मैरिज एक्ट लागू किया गया। जिसमें हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के रिवाजों को शामिल किया गया। आर्य समाज द्वारा शादी के सर्टिफिकेट भी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत ही जारी होते हैं।
हाईकोर्ट ने आर्य विवाह पर लगाई रोक
साल 2016 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने आर्य समाज मंदिर में होने वाली शादियों पर सवाल उठाया था। कोर्ट का यह मानना था कि आर्य समाज के नाम पर कुछ संस्थाएं शादी का बिजनेस चला रही हैं। यहां कानूनी नियमों का पालन भी नहीं करते हैं। इसलिए अब आर्य समाज मंदिर भी स्पेशल मैरिज एक्ट के सभी नियमों का पालन करने के बाद ही सर्टिफिकेट जारी करेगा।
संस्था को विवाह कराने के 30 दिन पहले पब्लिक नोटिस जारी करना होगा ताकि कोई भी व्यक्ति शादी से पहले आपत्ति दर्ज करा सके। यह नियम स्पेशल मैरिज एक्ट में अपनाया जाता है। साथ ही कपल को कानूनी तौर पर सुरक्षा मिलती है। इसमें दोनों पक्ष किसी भी धर्म से हो सकते हैं। हाईकोर्ट ने आर्य समाज मंदिर में होने वाली शादियों पर रोक लगा दी थी और उन्हें मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने से भी रोक दिया था। जिस कारण आर्य समाज मंदिर की शादियों पर सवाल खड़ा हो गया था।
कोर्ट की तरफ से यह आदेश आने के बाद आर्य समाज ईकाईयों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने आर्य समाज के पक्ष में फैसला लिया और उन्हें फिलहाल हिंदू मैरिज एक्ट का पालन करने के लिए कहा गया। एमपी हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी गई। हालांकि इस मामले में अंतिम फैसला आना अभी बाकी है।
आर्य समाज की शादी के बाद कपल को नहीं मिलती सुरक्षा
इस मामले में आईएमएस लॉ कॉलेज नोएडा के प्रोफेसर अक्षय कुमार कहते हैं कि भारत में विवाह के लिए दो सिस्टम अपनाए जाते हैं। पहला कोर्ट मैरिज दूसरा धार्मिक। कोर्ट मैरिज पूरी तरह से कानूनी है, इसके लिए भारत में स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 का पालन किया जाता है। धार्मिक शादी के लिए हर धर्म के लिए अलग एक्ट बना हुआ है। जैसे कि हिंदू मैरिज एक्ट 1955, मुस्लिम मैरिज एक्ट 1954 और द इंडियन क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 । यह सभी नियम भी कानूनी रूप से मान्य है। आर्य समाज में होने वाली शादियां हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत आती है।
प्रोफेसर अक्षय बताते हैं कि आर्य समाज में हिंदू रीति-रिवाजों से विवाह कराया जाता है और इसी का प्रमाण पत्र दिया जाता है। जिससे यह सिद्ध हो सके कि मंदिर में इस जोड़े ने विवाह किया था। हिंदू मैरिज एक्ट में इसे शादी का अंतिम प्रमाण पत्र माना गया है। आर्य समाज में शादी से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया जाता। न ही विवाह के बाद कपल की सुरक्षा की कोई जिम्मेदारी ली जाती है। अगर आर्य समाज में स्पेशल मैरिज एक्ट लागू किया जाता तो उन्हें भी विवाह संपन्न कराने से 30 दिन पहले पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ेगा। आपत्तियां दर्ज करनी होगी और तीन महीने में निवारण करने के बाद शादी कराई जाएगी। मगर आर्य समाज संस्था इसके लिए तैयार नहीं है।
प्रोफेसर अक्षय का यह भी कहना है कि देशभर में लोग आर्य समाज के नाम पर कई नकली संस्थाएं भी चला रहे हैं। पैसे के लालच में वह विवाह कराने से पहले किसी भी एक पक्ष का धर्म भी बदलवा देते हैं। शादी कराने के बाद नकली सर्टिफिकेट जारी किए जाते हैं। मगर कोर्ट में रजिस्ट्रेशन नहीं होने पर कपल को पुलिस सुरक्षा नहीं मिलती। इसलिए वह आगे भी परेशान रहते हैं। फर्जी संस्थाओं की समस्या इतनी ज्यादा है कि खुद आर्य समाज संस्था फर्जीवाड़े से लोगों को सावधान करने के लिए अपनी वेबसाइट पर प्रचार करती है। वेबसाइट पर रजिस्टर्ड आर्य समाज मंदिरों की लिस्ट भी जारी की गई है।
क्या है आर्य समाज और आर्य विवाह ?
आर्य समाज असल में एक हिंदू धर्म सुधार आंदोलन है। जिसे आज से 147 साल पहले सन 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती ने शुरू किया था। यह संस्था हिंदू धर्म की कुरीतियों का विरोध करती थी। हिंदू धर्म के वेदों को आधार बनाकर काम करती है।
करीब 150 साल पहले तक महिलाओं के विवाह के लिए परिवार को दहेज इकट्ठा करना पड़ता था। वहीं, बाल विधवा की दूसरी शादी नहीं की जाती थी। आर्य समाज इस सभी प्रथाओं के खिलाफ खड़ा हुआ। यहां कम खर्च पर हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हुए विवाह संपन्न कराए जाने लगे। जिसमें सिर्फ वर-वधू की इजाजत मायने रखती थी। इसलिए आर्य समाज आम जनता के बीच काफी प्रचलित रहा।
समाज से कुरीतियों को दूर करने के लिए बना था आर्य समाज
दिल्ली के आंबेडकर कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर डॉ तारा शंकर बताते हैं कि आर्य समाज की स्थापना तब हुई जब भारत में जातिवाद की समस्या बढ़ी हुई थी। उस समय ऐसी कुप्रथाएं चलती थी, जिसमें महिलाओं और सामाजिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को दबाया जाता था। तब आर्य समाज बदलाव की किरण लेकर आया था।
यहां अंतरजातीय विवाह, बाल वधू पुनर्विवाह पर बात हुई। साथ ही स्त्रियों और शूद्रों को यज्ञ करने और वेद पढ़ने का अधिकार मिला। यहां मृत्यु के बाद तेरहवी या पिंड दान के लिए बहुत खर्चा नहीं कराया जाता था। शादी में कन्यादान होता था मगर दहेज नहीं स्वीकारा जाता। आर्य समाज में मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि व अन्ध-विश्वासों को भी अस्वीकार गया। छुआछूत व जातिगत भेदभाव का जमकर विरोध किया गया। यही कारण है कि बदलते भारत में कई लोगों ने इसे अपनाया।