(www.arya-tv.com)सुप्रीमकोर्ट ने दिवालिया कंपनियों के मालिकों और उनके गारंटर बनने पर जबरदस्त झटका दिया है। कोर्ट ने ऐसे प्रमोटर्स और गारंटर्स के खिलाफ इन्सॉल्वेंसी प्रोसीडिंग शुरू करने वाले लेंडर्स के खिलाफ याचिकाएं शुक्रवार को खारिज कर दी। मतलब इन लोगों के मामलों को फिर से खोला जा सकता है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और रवीन्द्र भट्ट की बेंच ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत नवंबर 2019 में जारी नोटिफिकेशन को सही ठहराया।
2019 में सरकार ने कानून पेश किया था
2019 में सरकार ने कानून पेश किया। इस कानून ने बैंकों की गारंटी देने वाली कंपनियों और व्यक्तियों के खिलाफ समानांतर दिवालिया (parallel bankruptcies) होने की अनुमति दी। बैंकों ने पिछले साल रिलायंस ग्रुप के अनिल अंबानी, दीवान हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड के कपिल वधावन और भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड के संजय सिंघल समेत कारोबारियों के खिलाफ दिवालियापन के मामले दायर किए थे।
हाईकोर्ट्स में दायर अपीलों पर मामले रोक दिए गए। इस नोटिफिकेशन में लेंडर्स को इनसॉल्वेंसी प्रोसीडिंग का सामना कर रही कंपनियों के प्रमोटर गारंटर्स के खिलाफ भी इनसॉल्वेंसी प्रोसीडिंग शुरू करने की अनुमति दी गई थी।
महत्वपूर्ण है सुप्रीमकोर्ट का फैसला
सुप्रीमकोर्ट का यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि बैंकों को लोन डिफॉल्ट के कई मामलों में पर्सनल गारंटी को भुनाने में मुश्किल हो रही थी। बड़े प्रमोटर्स अक्सर कर्ज देने वाले को अपनी पर्सनल गारंटी का हवाला देकर अधिक राशि वाले लोन देने के लिए आश्वस्त करते हैं। हालांकि, लोन पर डिफॉल्ट होने के बाद यही प्रमोटर्स बैंकों के पर्सनल गारंटी को भुनाने की कोशिश को कोर्ट में चुनौती देते हैं।
हाईकोर्ट से सुप्रीमकोर्ट में ट्रांसफर की गई थीं याचिकाएं
नोटिफिकेशन को चुनौती देने वाली याचिकाएं पिछले वर्ष अक्टूबर में हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला इस वर्ष मार्च में सुरक्षित रखा था। पर्सनल गारंटी से बैंकों को कंपनी के बकाया रकम चुकाने में नाकाम रहने पर प्रमोटर गारंटर के व्यक्तिगत असेट्स पर भी दावा करने का अधिकार मिलता है।
किंगफिशर से परेशान हैं बैंक
इसका एक बड़ा उदाहरण किंगफिशर से जुड़ा विजय माल्या का है। बैंकों ने विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस को लगभग 9,000 करोड़ रुपए का लोन माल्या की पर्सनल गारंटी पर दिया था। किंगफिशर के लोन पर डिफॉल्ट करने के बाद 2012 से बैंक अपनी राशि को रिकवर करने की कोशिश कर रहे हैं।यह फैसला उधारदाताओं या बैंकों के लिए एक टॉनिक है। क्योंकि यह उन्हें लोन के गारंटरों से बकाया वसूलने की अनुमति देता है, जबकि कंपनियों के खिलाफ दिवालियापन प्रक्रियाएं लंबित हैं। यह संभवतः बैड लोन की दुनिया के सबसे खराब देश में से एक को साफ करने की बैंकों की कोशिश में तेजी ला सकता है।