(www.arya-tv.com) गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी अलकनंदा उत्तराखंड के श्रीनगर में गायब होने की कगार पर पहुंच चुकी है. यहां 5 किमी के दायरे में नदी सूख चुकी है. आलम यह है कि अलकनंदा नदी शहर के बीचोबीच एक नाले के रूप में तब्दील हो गई है. ऐसे में गंगा आरती करने वालरें और त्योहारों पर अलकनंदा में डुबकी लगाने वाले श्रद्वालुओं को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
भले ही सरकार अविरल, निर्मल गंगा के तमाम दावें कर रही हो, लेकिन श्रीनगर गढ़वाल में नदी पर किस तरह से अतिक्रमण किया जा सकता है, इसकी बानगी देखने को मिलती है. यहां जीवीके जल विद्युत परियोजना की झील से लेकर पावर हाउस तक शहर के करीब 5 से 6 किमी के दायरे में अलकनंदा सूखने की कगार पर है.
नाले में तब्दील हुई नदी
यहां जल विद्युत परियोजना की झील में नदी का पूरा पानी रोका जा रहा है, जिसे नहर के माध्यम से डायवर्ट कर जीवीके जल विद्युत परियोजना की झील तक पहुंचाया जा रहा है. ऐसे में बांध से लेकर पावर हाउस तक नदी में न के बराबर पानी है. नदी नाले के रूप में तब्दील होने से यहां के पानी की गुणवत्ता भी खराब होने लगी है. रुका पानी सड़ने लगा है, जिससे दुर्गंध आ रही है. पानी में काई जम चुकी है. स्थानीय लोगों की मांग है कि एक तय मात्रा में पानी नदी में छोड़ा जाए.
जलीय जीवों पर भी खतरा
वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश नौटियाल का कहना है कि नदी में पानी के न के बराबर होने से इसका प्रभाव अलकनंदा नदी के इस क्षेत्र में रहने वाले जलीय जीवों पर पड रहा है. बताते हैं कि अगर बांध द्वारा नियमित रूप से पानी नदी में नहीं छोड़ा जाएगा तो उस क्षेत्र में पाई जाने वाली हिमालयी मछलियां व नदी में मिलने वाली जड़ी बूटियों पर भी सकंट गहरा सकता है
एनजीटी से करेंगे शिकायत
मानसून के दौरान कहर बनकर टूटने वाली अलकनंदा नदी मानसून सीजन खत्म होते ही श्रीनगर में पूरी तरह सूख चुकी है. गंगा प्रेमी भौपाल चौधरी ने बताया कि अगर जीवीके परियोजना तय मानकों के अनुसार एक नियमित जल प्रवाह नदी में नहीं छोड़ेगी तो वह मजबूर होकर एनजीटी के पास पहुंचेंगे.