कहीं दलितों के मसीहा न बन जाएं अखिलेश, क्यों मायावती ने आकाश को दी थी खुली छूट?

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(www.arya-tv.com) देश में आबादी और सबसे बड़े राजनीतिक क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश ने इस बार के लोकसभा चुनाव में बता दिया है कि यूपी अब सिर्फ बातें नहीं काम मांगता है। ये वही प्रदेश है जहां पीएम मोदी का चुनाव क्षेत्र बनारस है, जहां धर्म की धुरी अयोध्या पर घूमती राजनीति है, जहां कर्म प्रधान विश्व को जोड़ने का संदेश देती मथुरा नगरी है। एक ऐसा प्रदेश जहां सरकार चलाने वाले धुरंधर बुलडोजर बाबा योगी आदित्यनाथ स्वयं मुख्यमंत्री हैं। इतना सब कुछ पॉज़िटिव होने के बावजूद इस बार भाजपा की ऐतिहासिक हार हुई है या यूं कहें कि लोकसभा चुनाव 2024 में पूरी की पूरी नरेंद्र मोदी सरकार भी बैकफुट पर है।

अखिलेश ने खुद को दलित नेता के रूप में स्थापित किया

2014 से 2024 तक पूरे कार्यकाल में अपने मन की बात सुनाने वाले पीएम मोदी भी सबको बुलाकर इंटरव्यू देने को मजबूर हो गए। पूरे लोकसभा चुनाव के हर चरण में जब जब यूपी में वोटिंग हुई उसने भाजपा की धड़कनें बढ़ाए रखीं। इसका पूरा श्रेय अखिलेश यादव के पीडीए और बसपा से टूटते दलितों के अरमानों को जाता है। जिसमें अखिलेश यादव ने खुद को बतौर मुखर दलित नेता के तौर पर स्थापित कर लिया है या यूं कहें कि अब दलित वोटर उन्हें अपने मसीहा के तौर पर भी देख रहा है। जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती को भी यही डर दूसरे चरण के चुनाव से सता रहा था कि कहीं अखिलेश यादव को ही दलित अपना मसीहा न मान लें।

दलितों ने सपा सुप्रीमो पर जताया भरोसा

हाल में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा से नाराज सवर्ण और मायावती से नाराज दलितों ने अखिलेश यादव के ऊपर भरोसा दिखाया। इसमें सबसे खास बात है कि चुनाव के दूसरे चरण से ही अखिलेश यादव संविधान बचाओ का नारा देने लगे थे। उसी दौरान राहुल गांधी ने हर एक रैली में कहा कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है, इसीलिए 400 पार का नारा दे रही है।

बसपा को नहीं मिला दलितों का वोट

वहीं, तीसरे और चौथे चरण से ठीक पहले मध्य यूपी के साथ बुंदेलखंड में अखिलेश यादव ने सीधे तौर पर मायावती का नाम लेकर उन्हें भाजपा का प्लान बी बताया। साथ ही कहा कि उन्हें वोट देने का मतलब सीधे भाजपा को फायदा और आरक्षण समाप्त। अब तक बसपा का साथ देने वाले दलित जिसका 19 प्रतिशत वोट फिक्स था जिसके दम पर मायावती अपनी पार्टी का हर एक टिकट करोड़ों रुपये में बेचती थीं वो सरकने लगा।

सपा को 37 सीटों पर मिली जीत 

एक ओर जहां 2019 के लोकसभा में सपा और बसपा के साथ मिलकर लड़ने पर मायावती की सीटें बढ़ गईं तो वहीं सपा के वोट प्रतिशत में कमी देखी गई थी। जबकि इस बार सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो बसपा शून्य पर आउट हो गई जबकि सपा को ऐतिहासिक 37 सीटें मिलीं। वहीं, शून्य चल रही कांग्रेस को भी 6 सीटें मिलीं।