
लखनऊ। रात के तकरीबन आठ बज रहे थे। ठंड मतलब भर की थी। मोटी चद्दर ओढ़कर मैं भी चाय की चुश्की ले रहा था, तभी फोन की घंटी बजी। उधर से आवाज आई कि एक गाय चिनहट के पास घंटों से तड़प रही है। मेरा भी मन मानों व्यथित हुआ। चाय का प्याला टेबल पर रखते हुए सबसे पहले लखनऊ के एक गोरक्षक के पास फोन घुमाया। मैंने उनको बड़ी उम्मीद के साथ फोन किया था कि वह खुशी खुशी इस मामले को संजीदगी से लेंगे। दुर्भाग्य से उनके फोन पर घंटी नहीं गई तो मैंने ह्वाट्सएप पर गाय की तस्वीरें भेजते हुए उक्त गोरक्षक से मदद मांगी।
इस पर खुद को गोरक्षक कहने वाले उस व्यक्ति ने ह्वाट्सएप पर ही 5 शब्द टाइप करके जवाब दे दिया ‘नगर निगम लखनऊ की सहायता लें’। इसके बाद उनका कोई जवाब नहीं आया। न तो उन्होंने गाय का हाल जानने में दिलचस्पी ली और न ही इस बात पर कि मदद पहुंची भी या नहीं। इतना ही नहीं खुद को गोरक्षक कहने वाले उस व्यक्ति के मुख से संवेदना के दो शब्द तक नहीं निकल सके। उस जवाब के बाद मैं उनसे मदद की कोई अपेक्षा भी नहीं कर सकता था।

चूंकि मामला नगर निगम की सीमा क्षेत्र से बाहर का था और पंचायत स्तर पर किसी अधिकारी से मेरा कोई संपर्क नहीं था। इसलिए मेरे पास दूसरा कोई आॅप्शन नहीं था। मैंने नगर निगम लखनऊ के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी एके राव को फोन घुमाया।

राव जी से मैं अभी अपनी बात कह भी न पाया था कि उनके मुंख से दो शब्द निकले। ‘…अरे! ओह!’ इन शब्दों में संवेदना थी। गाय के प्रति उदारता थी। उन्होंने मुझसे दो बातें पूछी, ‘ क्या आपने किसी का नंबर हमे भेजा है, क्या पूरा पता भेजा है।’ मेरा जवाब था हां मैंने भेज दिया है। राव जी ने दो टूक जवाब दिया, अभी मदद पहुंचेगी।

खैर 20 से 25 मिनट में एक डाले पर नगर निगम के तीन लोग मौके पर पहुंचे। गाय का हाल जाना और फिर इलाज के लिए उसे गोशाला ले गए। एक तरफ नगर निगम अपनी सीमा से बाहर जाकर गाय के उचित इलाज की व्यवस्था में जुट गया वहीं दूसरी तरफ खुद को गोरक्षक कहने वाले उस व्यक्ति ने अब तक उस गाय की स्थित का जायजा तक नहीं लिया।

ऐसे गोरक्षकों से गो सेवा और गो संरक्षण की उम्मीद करना बेईमानी है। बहरहाल किन्हीं कारणों से मैं उन तथाकथित गोरक्षक का नाम नहीं लिख रहा हूं। पर उनको आइना दिखाने के लिए उन तक ये खबर जरूर पहुंचा दूंगा। हे प्रभु! ऐसे तथाकथित गोरक्षकों से गाय माता के बचाएं।
