उमर अब्दुल्ला ने कब्रिस्तान का गेट फांदा तो अखिलेश यादव ने बीजेपी पर कसा तंज, बोले- तुम यूं ही हर बात पर…

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जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को 13 जुलाई, 1931 को डोगरा सेना की गोलीबारी में मारे गए 22 लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए नक्शबंद साहिब कब्रिस्तान का गेट फांदकर अंदर प्रवेश किया. उन्होंने आरोप लगाया कि वहां जाने से रोकने के लिये उनके साथ ‘धक्का-मुक्की’ की गई, लेकिन वह आज रुकने वाले नहीं थे.

यह नाटकीय दृश्य अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस सहित विपक्षी दलों के कई नेताओं को शहीद दिवस के मौके पर कब्रिस्तान जाने से रोकने के लिए 13 जुलाई को घर पर नजरबंद किये जाने के एक दिन बाद देखने को मिला.

उमर अब्दुल्ला के इस कदम पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रतिक्रिया दी है. 28 सेकेंड का वीडियो शेयर कर अखिलेश ने भारतीय जनता पार्टी और केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन पर तंजा कसा.

सपा चीफ ने लिखा कि तुम यूँ ही हर बात पर पाबंदियों का दौर लाओगे, तो जब बदलेगी हुकूमत तो तुम ही बताओ तुम किस सरहद को फांद कर जाओगे.

शहीद स्मारक तक एक ऑटो रिक्शा में पहुंचे उमर अब्दुल्ला
बता दें नेशनल कॉन्फ्रेंस अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला खानयार चौक से शहीद स्मारक तक एक ऑटो रिक्शा में पहुंचे, जबकि शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू स्कूटी पर पीछे बैठकर स्मारक तक पहुंचीं.

सुरक्षा बलों ने श्रीनगर के व्यस्त क्षेत्र में खानयार और नौहट्टा की ओर से शहीद कब्रिस्तान जाने वाली सड़कों को सील कर दिया था.

जैसे ही उमर अब्दुल्ला का काफिला पुराने शहर के खानयार इलाके में पहुंचा, वह अपनी गाड़ी से उतर गए और कब्रिस्तान तक पहुंचने के लिए एक किलोमीटर से अधिक पैदल चले, लेकिन प्राधिकारियों ने कब्रिस्तान का द्वार बंद कर दिया था.

इसके बाद, मुख्यमंत्री कब्रिस्तान के मुख्य द्वार पर चढ़ गए और ‘फातिहा’ पढ़ने के लिये कब्रिस्तान परिसर में घुसे. उनके सुरक्षाकर्मियों और नेशनल कॉन्फ्रेंस के कई अन्य नेताओं ने भी ऐसा ही किया, जिसके बाद आखिरकार गेट को खोल दिया गया.

उमर अब्दुल्ला ने उन्हें और उनके दल को शहीदों के कब्रिस्तान में प्रवेश करने से रोकने पर उपराज्यपाल और पुलिस की कड़ी आलोचना की.

हमें यहां ‘फातिहा’ पढ़ने की अनुमति नहीं दी- उमर अब्दुल्ला
उमर अब्दुल्ला कहा, ‘यह दुखद है कि जो दावा करते हैं कि सुरक्षा और कानून-व्यवस्था उनकी जिम्मेदारी है, उन्हीं के निर्देश पर हमें यहां ‘फातिहा’ पढ़ने की अनुमति नहीं दी गई. हमें रविवार को घर में नजरबंद रखा गया.

नाराज मुख्यमंत्री ने कहा, ‘उनकी बेशर्मी देखिये कि उन्होंने आज भी हमें रोकने की कोशिश की. उन्होंने हमारे साथ बदसलूकी करने की कोशिश की. पुलिस कभी-कभी कानून भूल जाती है. मुझे आज क्यों रोका गया, जब पाबंदी कल के लिये थी.’ उन्होंने कहा, ‘हर मायने में यह एक स्वतंत्र देश है.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन वे हमें अपना गुलाम समझते हैं. हम गुलाम नहीं हैं. हम सेवक हैं, लेकिन जनता के सेवक हैं. मुझे समझ नहीं आता कि वर्दी में रहते हुए भी वे कानून की धज्जियां क्यों उड़ाते हैं?’

अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने और उनकी पार्टी के नेताओं ने उन्हें पकड़ने की पुलिस की कोशिशों को नाकाम कर दिया.

अब्दुल्ला ने कहा, ‘उन्होंने हमें पकड़ने की कोशिश की, हमारे झंडे को फाड़ने की कोशिश की, लेकिन सब कुछ व्यर्थ गया. हम यहां आए और ‘फातिहा’ पढ़ा. उन्हें लगता है कि शहीदों की कब्र केवल 13 जुलाई को यहां होती हैं, लेकिन वे सालभर यहीं हैं.’

उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल प्रशासन उन्हें कितने दिन शहीदों को श्रद्धांजलि देने से रोक पाएगा. उन्होंने कहा कि अगर 13 जुलाई को नहीं, तो यह 12 जुलाई या 14 दिसंबर, जनवरी या फरवरी को.

‘लेकिन मैं मजबूत इरादों वाला हूं…’
उन्होंने कहा, ‘हम जब चाहेंगे, तब यहां आएंगे.’मौके से सामने आए वीडियो में वर्दीधारी लोगों को उमर अब्दुल्ला और उनकी टीम के साथ धक्का-मुक्की करते हुए देखा गया.

सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक वीडियो साझा करते हुए उन्होंने लिखा, ‘यह वह धक्का-मुक्की है, जिसका मुझे सामना करना पड़ा, लेकिन मैं मजबूत इरादों वाला हूं और मुझे रोका नहीं जा सकता था. मैं कोई गैरकानूनी या अवैध काम नहीं कर रहा था. दरअसल, इन ‘कानून के रक्षकों’ को बताना चाहिए कि किस कानून के तहत वे हमें फातिहा पढ़ने से रोकने की कोशिश कर रहे थे.’

अब्दुल्ला ने एक अन्य पोस्ट में कहा, ‘गैर-निर्वाचित सरकार ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की, जिससे मजबूरन मुझे नौहट्टा चौक से पैदल चलना पड़ा. इन्होंने नक्शबंद साहिब का गेट बंद कर दिया, जिससे मुझे दीवार फांदनी पड़ी. इन्होंने मेरे साथ धक्का-मुक्की करने की कोशिश की, लेकिन मैं आज रुकने वाला नहीं था.’