साइंस का चमत्कार, एआई की मदद से लौटी 19 साल से नि:संतान जोड़े की जिंदगी में खुशियां

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अभिषेक राय

(www.arya-tv.com) मौजूदा समय में लाइफस्टाइल-खानपान में गड़बड़ी और कई प्रकार की प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थियों के चलते क्रॉनिक बीमारियों का खतरा काफी बढ़ गया है। तनाव, नींद की कमी और प्रदूषण जैसी परिस्थितियां न सिर्फ हृदय रोग और डायबिटीज जैसी बीमारियों का कारण बन रही हैं, साथ ही पहले की तुलना में अब बांझपन (इंफर्टिलिटी) भी एक गंभीर वैश्विक समस्या बनती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनियाभर में हर 6 में से 1 दंपत्ति को प्रजनन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। पिछले दो दशकों में पुरुषों के स्पर्म काउंट में भी कमी आई है, जिसके कारण संतान सुख प्राप्त करना भी दंपत्तियों के लिए अब किसी कठिन परीक्षा से कम नहीं है। इसके अलावा महिलाओं में ओवुलेशन डिसऑर्डर, हार्मोनल असंतुलन और पीसीओएस जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं, जो संतान प्राप्ति को और कठिन बना रही है. हालांकि इस संबंध में एक राहत और आशा भरी खबर सामने आ रही है। वैज्ञानिकों की टीम ने एआई की मदद लेते हुए 19 साल से नि:संतान जोड़े को गर्भधारण का सुख प्रदान किया है। इससे दुनियाभर में लाखों ऐसे दंपत्तियों के लिए आस जगी है।

एआई का उपयोग करते हुए गर्भधारण
कोलंबिया यूनिवर्सिटी फर्टिलिटी सेंटर के शोधकर्ताओं ने एआई-निर्देशित विधि का उपयोग करते हुए पहली सफल गर्भावस्था की जानकारी दी है। गर्भधारण के लिए कई बार आईवीएफ और सर्जरी करा चुके इस दंपत्ति को आखिरकार एआई की मदद से गर्भधारण प्राप्त करने में मदद मिली है। इसके लिए एआई आधारित सिस्टम ने 25 लाख से अधिक तस्वीरों का विश्लेषण किया और 3.5 मिलीलीटर वीर्य के सैंपल में दो स्वस्थ स्पर्म सेल की खोज की, जिसका इस्तेमाल डॉक्टर्स की टीम ने आईवीएफ के लिए किया और दंपत्ति के जीवन में संतान सुख की उम्मीद जगी है। रिपोर्ट के मुताबिक पुरुष एजुस्पर्मिया से पीड़ित था जिसमें वीर्य में बहुत कम या बिल्कुल भी शुक्राणु नहीं होते हैं, इसके कारण गर्भधारण कठिन हो जाता है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
द लैंसेट जर्नल में इसकी रिपोर्ट प्रकाशित की गई है। शोधकर्ताओं ने बताया कि लगभग 40% बांझपन से ग्रस्त दम्पतियों में पुरुष जिम्मेदार होते हैं। इनमें से लगभग 10-15% पुरुषों में एजोस्पर्मिया की समस्या होती है। कोलंबिया यूनिवर्सिटी फर्टिलिटी सेंटर के निदेशक जेव विलियम्स कहते हैं, वीर्य का सैंपल आमतौर पर जांच के दौरान बिल्कुल सामान्य लग सकता है, लेकिन जब आप माइक्रोस्कोप से देखते हैं, तो आपको कोशिकाओं के मलबे का एक समुद्र जैसा दिखाई देता है। जिन दंपत्तियों में पुरुषों के कारण बांझपन का खतरा होता है उनमें बायोलॉजिकल चाइल्ड होने की संभावना बहुत कम होती है। हालांकि एआई ने इसमें हमारी मदद की है। प्रोफेसर विलियम्स ने शोधकर्ताओं और अन्य चिकित्सकों की एक टीम बनाकर एआई की मदद से एजोस्पर्मिया से पीड़ित पुरुषों के सैंपल से दुर्लभ शुक्राणु कोशिकाओं की पहचान की और उसकी मदद से गर्भधारण कराया। कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रजनन विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हेमंत सूर्यवंशी कहते हैं, “हमारी टीम में उन्नत इमेजिंग तकनीकों, माइक्रोफ्लुइडिक्स और प्रजनन एंडोक्रिनोलॉजी के विशेषज्ञ शामिल थे, जो दुर्लभ शुक्राणुओं को खोजने और अलग करने में मदद कर रहे थे।

नि:संतान जोड़े को मिला गर्भधारण का सुख
इस मामले में एआई की स्टार (स्पर्म ट्रैकिंग एंड रिकवरी) विधि की मदद ली गई। इसका परीक्षण ऐसे मरीज पर किया गया जो लगभग 20 वर्षों से परिवार शुरू करने की कोशिश कर रहा था और इसके लिए कई उपाय कर चुका था। मरीज से 3.5 मिलीलीटर वीर्य का सैंपल लिया गया। लगभग दो घंटों में, स्टार ने 25 लाख इमेज को स्कैन किया और इसमें से 2 शुक्राणु कोशिकाओं की पहचान की, जिनका उपयोग दो भ्रूण बनाने और गर्भधारण के लिए किया गया। विशेषज्ञ कहते हैं, ये दुनिया का पहला मामला है, हालांकि इस निष्कर्ष का सैंपल साइज बस यही एक केस पर आधारित है। इसकी प्रभाविकता के लिए हमें और लोगों पर परीक्षण की आवश्यकता है। प्रोफेसर विलियम्स कहते हैं, भ्रूण बनाने के लिए आपको केवल एक स्वस्थ शुक्राणु की आवश्यकता होती है। एजोस्पर्मिया से पीड़ित पुरुषों की मदद करने में लंबे समय से चली आ रही बाधाओं को दूर करने में इस तकनीक से मदद मिलने की उम्मीद है।

क्या है स्टार विधि?
इस साल की शुरुआत में एआई की स्टार (स्पर्म ट्रैकिंग एंड रिकवरी) विधि दुनिया के सामने आई थी जो एजोस्पर्मिया से ग्रस्त पुरुषों के वीर्य के सैंपल को स्कैन करने के लिए हाई इमेजिंग तकनीक का उपयोग करती है। ये एक घंटे से भी कम समय में 80 लाख से अधिक इमेज लेती है। सैंपल में शुक्राणु कोशिकाओं की पहचान के लिए एआई का उपयोग किया जाता है जिसमें छोटे, बाल जैसे चैनलों वाली एक माइक्रोफ्लुइडिक चिप शुक्राणु कोशिका वाले वीर्य के सैंपल के हिस्से को अलग कर देती है ताकि इसका उपयोग भ्रूण बनाने के लिए आईवीएफ में किया जा सके।