(www.arya-tv.com) कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई पूरे देश के लिए गर्व का दिन है। ये तारीख विजय के साथ युद्ध भूमि में देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले वीर सपूतों को याद करने का दिन है। आगरा के 10 जवानों ने कारगिल युद्ध में अपनी शहादत दी थी। शहीद जाबांज आज भी अपने परिवारों के दिलों में जिंदा है। नायाब सूबेदार लायक सिंह और खंदौली के धर्मवीर सिंह के परिवारीजन हर दिन उनकी पूजा करते हैं। घरवालों का कहना है कि वो आज भी उनके साथ हैं।
पुलिस की नौकरी छोड़ सेना में हुए थे भर्ती
आगरा की बाह तहसील के कोरथ गांव में कई फौजी परिवार हैं। गांव के लायक सिंह ने वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया था। 21 जुलाई 1999 को दुश्मनों से मुंह तोड़ जवाब देते हुए वो शहीद हो गए। उनकी शहादत पर पूरे गांव को फक्र है। परिवार के सदस्य शहीद लायक सिंह को अपने से जुदा नहीं कर पाए। उनकी याद में उनकी पत्नी शकुंतला देवी ने गांव में 26 जनवरी 2001 को शहीद स्मारक बनवाया।
स्मारक बनने के बाद से परिवार के लोगों ने शहीद की पूजा शुरू कर दी। पत्नी शकुंतला, उनकी देवरानी और बच्चे हर दिन सुबह-शाम उनकी आरती उतारते। घर में जो खाना बनता, पहले शहीद की प्रतिमा पर उसका भोग लगाया जाता। ये सिलसिला पिछले 22 साल से चल रहा है। शहीद के घरवालों ने बताया कि लायक सिंह का पहले पुलिस में चयन हो गया था, लेकिन उन्हें फौज में जाना था। ऐसे में पुलिस की नौकरी ज्वाइन न कर, उन्होंने फौज की नौकरी को चुना। वो हमेशा कहते थे कि देश के लिए कुछ करना है।
अब शहीद के भाई का परिवार निभा रहा परंपरा
शहीद की पत्नी शकुंतला देवी बच्चों की पढ़ाई के लिए गांव से शहर चली गईं। अब वो आगरा में रहती हैं। उनके जाने के बाद शहीद की पूजा की जिम्मेदारी शकुंतला देवी की देवरानी रजनी सिंह निभा रही हैं। शहीद के भतीजे रोहित सिंह ने बताया कि हर दिन सुबह शाम ताऊ जी की मूर्ति पर दीपक जलाया जाता है। 15 अगस्त, 26 जनवरी को पूरा गांव शहीद स्मारक पर आता है। कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई को भी गांव के लोग आते हैं और पुष्पांजलि अपिर्त करते हैं
मलूपुर के धर्मवीर को बहन बांधती हैं राखी
खंदौली के गांव मलूपुर के रहने वाले चौ. धर्मवीर सिंह 19 साल की उम्र में कारगिल में शहीद हो गए थे। धर्मवीर 18 साल की उम्र में फौज में भर्ती हुए। एक साल बाद ही कारगिल युद्ध में उन्होंने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। 30 मई 1999 को उनकी शहादत हुई। उनकी याद में घरवालों ने गांव में मूर्ति लगवाई। धर्मवीर छह भाई-बहन थे। चार बहन और एक छोटा भाई था। छोटे भाई का निधन भी आठ साल पहले हो गया। घरवाले हर दिन धर्मवीर की मूर्ति की पूजा करते हैं। रक्षाबंधन पर चारों बहने मूर्ति को राखी बांधती हैं। गांव वाले भी धर्मवीर की शहादत के किस्से अपने बच्चों को सुनाते हैं।