मौनी अमावस्या जानिए क्यों मनाया जाता है, इससे क्या होता है लाभ इस लिए करते है गंगा स्नान

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वाराणसी (www.arya-tv.com) मौनी अमावस्या के अवसर पर वाराणसी के विभिन्‍न गंगा घाटों पर आस्‍था का हुजूम उमड़ पड़ा। मौनी अमावस्‍या के मौके पर गंगा के विभिन्‍न घाटों के किनारे श्रद्धालुओं ने गंगा नदी में पुण्‍य की डुबकी लगाई और स्‍नान के बाद दान की परंपरा का निर्वाह किया। मौन की महत्‍ता को श्रद्धालुओं ने परखा और मां गंगा के जल से उदयाचल भगवान भाष्‍कर को अर्घ्‍य प्रदान किया। वहीं गंगा में स्‍नान करने के बाद आस्‍थावानों ने बाबा दरबार में भी हाजिरी लगाई और साल भर के लिए पुण्‍य बेला पर बाबा का आशीर्वाद मांगा।

कोहरे में लिपटी मौनी अमावस्‍या की सुबह के मौके पर आस्‍था गंगा के साथ ही गोमती और वरुणा आदि नदियों के तट पर उमड़ा और परंपरा के अनुसार लोगों ने पुण्‍य की डुबकी लगाई और यथा संभव दान की परंपरा का भी निर्वहन किया। तड़के से ही गंगा में आस्‍थावानों ने पुण्‍य की डुबकी लगानी शुरू की तो दिन चढ़ने तक आस्‍था नदियों के तट पर नजर आती रही। वहीं गंगा में स्‍नान करने वालों ने बाबा दरबार में भी हाजिरी लगाई और जरूरतमंदों को दान कर पुण्‍य की कामना भी की। वहीं विभिन्‍न मंदिरों में भी सुबह से दर्शन पूजन का अनवरत क्रम शुरू हुआ जो दिन चढ़ने तक कायम रहा।

माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी मौनी अमावस्या पर स्नान दान के लिए भोर से ही श्रद्धालुओं की जुटान हुई। मौन की महत्ता को ध्यान में रखते हुए लोगों ने काशी में गंगा के विभिन्न घाटों पर स्नान ध्यान किया। तिल-गुड़, गरम वस्त्र समेत शीत ऋतु से बचाने वाली वस्तुओं का दान किया। साथ ही श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन किया। इसके लिए कतार लगी रही। माघ माह का यह प्रमुख स्नान पर्व मंगलवार को पड़ने से भौमवती अमावस्या का भी मान रहा। मान्यता है कि औमवती अमावस्या पर काशी में गंगा, खासकर दशाश्वमेध और प्रयागराज संगम तट से स्नान करने से सहस्त्र गुणा सूर्य ग्रहण स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।

अमावस्या 31 जनवरी को दिन में 1.15 बजे ही लग गयी थी। उदय व्यापिनी ग्राह्य होने से पर्व मंगलवार को मनाया जाएगा। इस पवित्र तिथि पर मौन रहकर अथवा मुनियों के समान आचरण पूर्वक स्नान-दान करने का विशेष महत्व है। इस दिन त्रिवेणी अथवा गंगातट पर स्नान-दान की अपार महिमा है। मौनी अमावस्या को नित्यकर्म से निवृत्त हो स्नान करके तिल, तिल के लड्डू, तिल का तेल, आँवला, वस्त्र आदि का दान करने का विधान है। इस दिन साधु, महात्मा तथा ब्राह्मणों के सेवन के लिए अग्नि प्रज्वलित करना चाहिए तथा उन्हे कम्बल आदि जाड़े के वस्त्र देने चाहिए।